शुक्रवार, 30 नवंबर 2018

चुनाव के चक्कर में फँस गए, "बजरंगी-भाईजान" ......




    विवाद बजरंगबली और अली का  


चुनाव के चक्कर में फँस  गए,  
      "बजरंगी-भाईजान" ...... 
         
 स्वप्रमाणित दस्तावेजों में सुंदरकांड को अवश्य समझना चाहिए..... और तलाश करने का प्रयास करते हैं कि हनुमान जी, बजरंगबली या बजरंगी-भाईजान किस जाति के थे..? उनके आदर्श दुश्मन देश के साथ के नागरिकों या परिजनों के साथ भी हृदय लगा कर किस प्रकार से  व्यवहार करते थे. हम तो देश की आजादी के बाद भी अच्छे लोगों को, बुरे बनाने में लगे हैं .बल्कि कहे तो मुसलमान तो दूर हिंदुओं में भी मुसलमान पैदा करने में लगे हैं.  ताकि  भारत मे वे सत्ता-सुंदरी का खुला आनंद ले सकें. बहरहाल. इसी बहाने हम वास्तविक हनुमान जी महाराज और आदर्श भगवान राम का अपने दुश्मन देश के अच्छे लोगों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए..? कुछ देर के लिए ही सही आनंद लेते हैं.....
                             ( त्रिलोकीनाथ )

भाजपा और उनके नेताओं के हाल कुछ इस प्रकार से हो गए हैं जैसे- की
"कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय,
या पाये बौराय  नर वा पाये बौराय"

अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष नंदकुमार साय ने प्रमाणित किया है की अपने बजरंगबली जी सलमान खान की माने तो बजरंगी-भाईजान, दलित-जाति के नहीं थे, बल्कि अनुसूचित-जनजाति थे. क्योंकि अनुसूचित-जनजाति में  तिग्गा एक गोत्र है. जिसका अर्थ वानर होता है. इस प्रकार हनुमानजी महाराज आदिवासी थे.?


 इसके पूर्व उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, कि बजरंगबली एक ऐसे लोक देवता हैं जो स्वयं वनवासी हैं, गिर वासी हैं, दलित हैं और वंचित हैं. क्योंकि दलितों के प्रतीक थे इसलिए वे दलित थे.?
 किसी एक अन्य नेता ने भी अपना दावा किया कि बजरंगबली ब्राह्मण थे.और 21वीं सदी में विज्ञान की दुनिया में यदि वर्तमान राजनीति में जनेऊधारी राहुलगांधी को चर्चा के बाद उन्हें ब्राह्मण बताया गया है तो हनुमान जी महाराज भी ब्राम्हण भी थे.?


 हनुमान चालीसा में कहा भी गया है

 "हाथ बज्र औ ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे "

 तो जनेऊ भी पहनते थे, तो ब्राह्मण भी हो गए.?

बहरहाल विवाद इस बात पर हुआ कि योगी ने कहा बजरंगबली चाहिए या अली वैसे तो चुनाव-आचार संहिता में धार्मिक-स्थलों का प्रचार-प्रसार में उपयोग वर्जित है, किंतु जिस प्रकार संविधान की सभी संस्थाओं की मर्यादाओं से खिलवाड़ होता है. उसी प्रकार चुनाव-आचार-संहिता का मजाक मुख्यमंत्री हो या फिर अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष निर्वाचन के दौरान खुलकर बहस का मुद्दा बना रहे हैं.

यहां तक तो ठीक है कि सांप्रदायिक दृष्टिकोण से बजरंगबली और अली में विवाद है, इसके बावजूद अपने सलमानखान बजरंगी-भाईजान पिक्चर बनाकर बजरंगबली को भाईजान के रूप में भी दिखाने का काम किया. किंतु नेताओं  को मालूम है कि इससे उनका वोट-बैंक का धंधा, बोट-राजनीति के लिए पैदा किया गया फर्जी-सारामजन्मभूमि-बाबरीमस्जिद की असफलता को छुपाने के लिए नए सिरे से बजरंगबली और अली को दलित या फिर आदिवासी बनाने का धंधा चल रहा है.., अरे भाई देश की आजादी के बाद जो जाति बजरंगबली की अपने सलमान खान ने चुन लिया है, वही सही लगता है. इसलिए कि अगर रावण की लंका को 2 मिनट के लिए पाकिस्तानी मान ले, उसके भाई विभीषण को भगवान राम ने,  हनुमानजी महाराज ने स्पष्ट रूप से अपने पहले मिलन में ही स्वीकार कर लिया. अब यदि इन दलितों और आदिवासियों की बात को ही माने, मुख्यमंत्री और नंदकुमार साय की बात माने,
तो स्वप्रमाणित दस्तावेजों में सुंदरकांड को अवश्य समझना चाहिए..... और तलाश करने का प्रयास करते हैं कि हनुमान जी, बजरंगबली किस जाति के थे..? उनके आदर्श दुश्मन देश के साथ के नागरिकों या परिजनों के साथ भी हृदय लगा कर किस प्रकार से  व्यवहार करते थे. हम तो देश की आजादी के बाद भी अच्छे लोगों को बुरे बनाने में लगे हैं .बल्कि कहे तो मुसलमान तो दूर हिंदुओं में भी मुसलमान पैदा करने में लगे हैं.  ताकि  भारत मे वे सत्ता-सुंदरी का खुला आनंद ले सकें. बहरहाल.
 इसी बहाने हम वास्तविक हनुमान जी महाराज और आदर्श भगवान राम का अपने दुश्मन देश के अच्छे लोगों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए..? सुंदरकांड में अलग अलग संदर्भ में हुए संवादों का और प्रश्न उत्तरों का कुछ देर के लिए ही सही आनंद लेते हैं.....


लंका निसिचर निकर निवासा। इहाँ कहाँ सज्जन कर बासा।।
मन महुँ तरक करै कपि लागा। तेहीं समय बिभीषनु जागा।।

राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा।


एहि सन हठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होइ न कारज हानी।।

बिप्र रुप धरि बचन सुनाए। सुनत बिभीषण उठि तहँ आए।


की तुम्ह हरि दासन्ह महँ कोई। मोरें हृदय प्रीति अति होई।।

की तुम्ह रामु दीन अनुरागी। आयहु मोहि करन बड़भागी।


सुनहु बिभीषन प्रभु कै रीती। करहिं सदा सेवक पर प्रीती।।

कहहु कवन मैं परम कुलीना। कपि चंचल सबहीं बिधि हीना।


प्रात लेइ जो नाम हमारा। तेहि दिन ताहि न मिलै अहारा।।

-अस मैं अधम सखा सुनु मोहू पर रघुबीर।

कीन्ही कृपा सुमिरि गुन भरे बिलोचन नीर।।7।।

कह सुग्रीव सुनहु रघुराई। आवा मिलन दसानन भाई।

सखा नीति तुम्ह नीकि बिचारी। मम पन सरनागत भयहारी।।

सुनि प्रभु बचन हरष हनुमाना। सरनागत बच्छल भगवाना।


निर्मल मन जन सो मोहि पावा। मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।

नयन नीर पुलकित अति गाता। मन धरि धीर कही मृदु बाता।


नाथ दसानन कर मैं भ्राता। निसिचर बंस जनम सुरत्राता।


सहज पापप्रिय तामस देहा। जथा उलूकहि तम पर नेहा।


अस कहि करत दंडवत देखा। तुरत उठे प्रभु हरष बिसेषा।।

दीन बचन सुनि प्रभु मन भावा। भुज बिसाल गहि हृदयँ लगावा।


अनुज सहित मिलि ढिग बैठारी। बोले बचन भगत भयहारी।।

कहु लंकेस सहित परिवारा।


 कुसल कुठाहर बास तुम्हारा।।

दो 0-तब लगि कुसल न जीव कहुँ सपनेहुँ मन बिश्राम।

जब लगि भजत न राम कहुँ सोक धाम तजि काम।।46।।




तब लगि हृदयँ बसत खल नाना। लोभ मोह मच्छर मद माना।

जब लगि उर न बसत रघुनाथा। धरें चाप सायक कटि भाथा।।

ममता तरुन तमी अँधिआरी। राग द्वेष उलूक सुखकारी।
तब लगि बसति जीव मन माहीं। जब लगि प्रभु प्रताप रबि नाहीं।।

मैं निसिचर अति अधम सुभाऊ। सुभ आचरनु कीन्ह नहिं काऊ।।
जासु रूप मुनि ध्यान न आवा। तेहिं प्रभु हरषि हृदयँ मोहि लावा।।

उर कछु प्रथम बासना रही। प्रभु पद प्रीति सरित सो बही।।
अब कृपाल निज भगति पावनी। देहु सदा सिव मन भावनी।।

एवमस्तु कहि प्रभु रनधीरा। मागा तुरत सिंधु कर नीरा।।
जदपि सखा तव इच्छा नाहीं। मोर दरसु अमोघ जग माहीं।।

अस कहि राम तिलक तेहि सारा। सुमन बृष्टि नभ भई अपारा।।

रावन क्रोध अनल निज स्वास समीर प्रचंड।
जरत बिभीषनु राखेउ दीन्हेहु राजु अखंड।।49(क)।।



जो संपति सिव रावनहि, दीन्हि दिएँ दस माथ।
सोइ संपदा बिभीषनहि सकुचि दीन्ह रघुनाथ।।   49(ख)।।






रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने हजारों साल त्रासदी देने  वाला लंकापति रावण ,  दुश्मन देश के 
मुखिया और उसके परिवार के अच्छे लोगों के साथ कैसा बर्ताव होना चाहिए मर्यादा पुरुषोत्तम राम इस पर दृष्टांत देते हैंऔर अच्छे लोगों को चुनकर बिना कोई लाग लपेट संकोच किए लंका का राजतिलक भी कर देते हैं. और हमारे देश में चुनाव के समय अच्छे दिनों की बात करने वाले पार्टी के लोग, अच्छे नागरिकों को भी हनुमान जी महाराज से अलग करके अली-वाला बताकर सांप्रदायिक-ध्रुवीकरण की वोट की राजनीति खड़ा करने का काम करते हैं कम से कम यह तो भगवान राम के अनुयाई कभी नहीं हो सकते....? और हो भी क्यों आध्यात्मिक दुनिया में संवैधानिक पदों पर बैठे लोग अपनी मर्यादाओं का ख्याल न रखते हुए अपने भगवान हनुमान जी महाराज जो कथित रूप से कलयुग में हमारे राजा हैं उन्हीं की जात पर विवाद खड़ा करते हैं और जात का प्रमाण पत्र बांटने वाले आयोग के अध्यक्ष उन्हें प्रमाण पत्र देने का प्रयास करते हैं..?
  ईश्वर करे निर्वाचन आयोग की आंखें खोलें, भगवान की जाति बताने का काम ना करें क्योंकि जहां भगवान का साम्राज्य चालू होता है, स्पष्ट रूप से कहा गया है जात पात पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि को होय”. बेहतर होता 21वीं सदी मैं लोकतंत्र की ढेर सारी समस्याओं जल, जंगल, जमीन, पर्यावरण और न्याय को तरसती जनता के लिए भी कुछ बातें कहनी और करनी चाहिए .







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