अयोध्या बना महाभारत का कुरुक्षेत्र
- "मंदिर लुट गया है, तो भगवान की ऐसी ही इच्छा रही होगी" -प्रभात झा
- आजाद भारत में राजनीति अब सेवा का माध्यम नहीं रह गई है. वह एक इवेंट की तरह “पॉलीटिकल-इंडस्ट्री” में बदल चुकी है
झोपड़पट्टी में राम-दरबार के सामने
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रामलला के समक्ष शिव-सैनिक मध्यस्थता के लिए अयोध्या में. |
तुम्हारा भारत-राष्ट्र , मेरा सिर्फ महाराष्ट्र....
(त्रिलोकीनाथ)
हस्तिनापुर में इस बात का जंग छिड़ा हुआ है कि
कौन बड़ा हिंदू है,
कौन छोटा. कौन असली हिंदू
है या कौन नकली..,
कौन बाबा रामदेव की तरह “गाय
का शुद्ध-घी” का ब्रांड बेच रहा है और कौन “गंगा मेरी मां” की ब्रांडिंग कर पा रहा है.
अयोध्या, हस्तिनापुर के राजपरिवार का कुरुक्षेत्र है, जहां हिंदुत्व के
संतानों में अंततः सिर्फ 5 गांव कि मांग के तर्ज पर ; तुम्हारा भारत-राष्ट्र , मेरा सिर्फ महाराष्ट्र , चाहता है. पिछले 4 साल से मराठी-शिवसेना अपने स्वाभिमान और हिंदुत्व के
पृथक-पहचान के लिए संघर्षरत रही.
किंतु धोखे से ही सही हस्तिनापुर का राजा पांडवपुत्रों यानी मराठी-शिवसेना को उसका हक नहीं देना चाहता . हालात इस कदर बिगड़ गए कि अपने “शिव” को छोड़ उनके आराध्य भगवान “राम”
जहां जन्मे थे, रामलला के समक्ष शिव-सैनिक
मध्यस्थता के लिए अयोध्या में 25 नवंबर को रणभेरी फूंक दी है. इस प्रकार शिवसैनिकों के साथ उद्धव ठाकरे ने अयोध्या में कहा तारीख बताइए कि निर्माण कब होगा ..?इतनी संख्या में शिव-सैनिक शायद ही महाराष्ट्र के बाहर कभी
कहीं गए हो...?
आजाद भारत में राजनीति अब सेवा का माध्यम नहीं
रह गई है. वह एक इवेंट की
तरह “पॉलीटिकल-इंडस्ट्री” में बदल चुकी है और उद्योगपति भारतीय-लोकतंत्र-बाजार में सत्ता पर कब्जा बनाए रखने के
लिए कभी विश्व हिंदू परिषद के माध्यम से या आर एस एस के माध्यम से अथवा कभी
शिवसेना के माध्यम से प्रशर-पॉलिटिक्स पर निवेश करते रहते हैं. इस बार अयोध्या में हस्तिनापुर का राज-दरबार “प्रशर-पॉलिटिक्स” दबाव की राजनीति के तहत सत्ता पर
काबिज होना चाहता है और मराठी-शिवसेना
, अयोध्या में
विराजमान रामलला के दरबार में यह अर्जी लगा दी गई है कि भगवान महाराष्ट्र की सीटों
का बंटवारा आप करवा दीजिए .
किंतु रामलला-विराजमान पहले से ही परेशान थे की
झोपड़पट्टी से अपने टूटी-फूटी
खंडहर; विवादित मस्जिद कहे या मंदिर स्थल पर वे सर छुपाए बैठे थे. उन्हें अब झोपड़पट्टी में उनके चाहने
वालों ने रखा है.
मध्यप्रदेश के चरित्र=नायक आशुतोष राणा की माने तो “क्या अल्लाह ने मंदिर तोड़ा था, या राम ने मस्जिद तोड़ी थी” गंभीर अनुत्तरित प्रश्नों के बीच झोपड़पट्टी के
राम या अल्लाह के सामने कि राजदरबार के सामने अब कौरव और पांडवों ने समस्या सुलझाने
की बात खड़ी हो गई है...?
पूरा
फैजाबाद, अयोध्या अथवा
लखनऊ तक लोकतंत्र की भीड़-तंत्र, या भेड़-तंत्र अयोध्या को कुरुक्षेत्र बनाने
में तुला हुआ. जहां
महाभारत का शीतयुद्ध हिंदुत्व के राजाओं
को घोषित-अघोषित सत्ता का संदेश दे सकता है. 25 नवंबर की रणभेरी के बाद राममंदिर का मुद्दा
का ब्रांड खिलौने छीनने के डर से
महाराष्ट्र में हिंदुत्व के ब्रांड की फ्रेंचाइजी शिव-सैनिकों को सौंप दी जाए..? कितनी लोकसभा सीटों पर सौदा टिकता है, यह कुरुक्षेत्र में प्रेशर-पॉलिटिक्स के ऊपर निर्भर करेगा.?. आंतरिक राजनीति के चलते 2019 का
लोकसभा चुनाव सत्ता के फिसल जाने का खतरा भी मंडरा रहा है और यदि शिवसैनिकों और बीएचपी विश्व हिंदू परिषद की डोर पकड़े मुख्यालय
आर एस एस और उसका राजनीतिक चेहरा भारतीयजनता पार्टी जो वर्तमान में मोदी की भाजपा
है दोनों के लिए ही स्वाभिमान की लड़ाई में “रामलला-विराजमान
का मुद्दा”
विरासत की जंग के रूप में बदल चुका है .
शहडोल
का मोहनराम मंदिर ट्रस्ट
मध्यप्रदेश में इसी हिंदुत्व के भाजपा की सरकार
15 वर्षों से है.
जहां शहडोल नगर मे भी एक राम मंदिर है जिसे स्वर्गीय मोहनराम पांडे
नामक व्यक्ति के दो बड़े तालाबों जो भी शहर में अपनी 17 एकड़ की भू-भाग पर स्थित है. स्वभाविक है इस पर कब्जा करने के लिए
साधु का नकाब पहने, तो
राजनीतिज्ञ भाजपा का नकाब पहने लोग कब्जा करके लूटने को आतुर है. यह मामला भी उच्च न्यायालय में 2011
से लंबित है.
उच्च न्यायालय द्वारा विवादित पक्षकारों को प्रबंधन से पृथक करते हुए एक “स्वतंत्र एजेंसी” के अधीन राम मंदिर की व्यवस्था रखि
किंतु साधु का रूप रखें एक पक्षकार उच्च न्यायालय के आदेश को जूते की नोक पर रखते
हुए पूरे प्रबंधन पर अपना कब्जा 6 साल से डंके की चोट पर बनाए हुए हैं. लाचार स्वतंत्रएजेंसी जिसमें
प्रशासनिक अधिकारी भी हैं ,
शहडोल के राममंदिर में सिर्फ मूक बधिर होकर किसी तरह स्वयं को तटस्थ बनाए हुए हैं....?
यह अलग
बात है कि मोहनराम मंदिर का तालाब नष्ट-भ्रष्ट हो चुका है मंदिर के अंदर भगवान राम के दरबार में अब सिंधियों
के भगवान झूलेलाल से लेकर कई अन्य साधु-संतों की मूर्तियां कब्जा कर ली है., लगे हाथ दुर्गा महारानी की भी एक
मूर्ति को एक खिड़की में कब्जा करा दिया गया है, इन सब के आड़ में हिंदुत्व के नकली और असली वारिस-दार अपने-अपने तरीके से मोहनराम पांडे की विरासत
मैं दावा किए बैठे हैं. और
वास्तविक बख्शीश-नामा
और मोहनराम पांडे इच्छा उसी तरह झोपड़पट्टी में सांस ले रही है जैसे कि अयोध्या
में रामलला-विराजमान
सांस लेने को संघर्ष कर रहे हैं..
एक सदी के प्रबंधन से मुक्त करते हुए जिला
न्यायालय के आदेश पर मोहनराम मंदिर ट्रस्ट का पुनर्गठन हो रहा था, तो अपने नज़दीकियों को पक्षपात तरीके
से अंजाम देते हुए सुहागपुर एसडीएम गजेंद्रसिंह तब एक भ्रष्ट-ट्रस्ट का जिस प्रकार से रूप दे रहे थे
उससे मंदिर से संबंधित होने वाले खतरों को अगाह कराने के लिए तब के प्रदेश भाजपा
अध्यक्ष और वर्तमान में मोदी सरकार के मध्यप्रदेश में बड़ा चेहरा बने प्रभात झा के
सामने शहडोल सर्किटहाउस में मंदिर की सुरक्षा के लिए बात कही गई, उन्होंने उसे इसलिए नजरअंदाज किया
क्योंकि उनके अपने हिंदू भ्रष्ट-ट्रस्ट
के पक्ष में थे.
इत्तेफाक से लंबे अंतराल के बाद मध्यप्रदेश के
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के साथ अपनी आशीर्वादयात्रा के शहडोल आगमन के बाद उसी
सर्किट हाउस में प्रभात झा पुनः मिल गए, उनसे बर्बाद हो चुकी लगभग मोहनराम मंदिर के तालाब व उसके हालात पर
उनके संज्ञान में लाया गया,
उन्होंने गंभीरता से सुना और 2012 का भी स्मरण किया. फिर निष्कर्ष दिया कि अगर मंदिर लुट गया है, तो भगवान की ऐसी ही इच्छा रही होगी.
चुकी अयोध्या के राम या कहें रामलला विराजमान
एक बड़ा ब्रांड भारतीय राजनीति में हिंदूवादी राजनैतिक उद्योगपतियों का बड़ा बाजार
है इसलिए वह वहां चिंतित है कितू समझा जाता है कि जैसे ही महाराष्ट्र की सीटों का
बंटवारा शिवसैनिकों और भाजपा के बीच में तय हो जाएगा, वैसे ही रामलला-विराजमान का विवादित विषय हिंदू और
मुस्लिम के रूप में भारतीय लोकतंत्र के बाजार को चर्चा के घेरे में बना रहेगा. की मंदिर बने या मस्जिद..?
चुकी शहडोल एक आदिवासी क्षेत्र है यदि ऐसा नहीं होता
तो जहां 15 साल की भाजपा सरकार रही है यह ने हिंदुत्ववादी सरकार रही है तो उनके ही
हिंदुत्व का नकाब पहने कार्यकर्ता मोहनराम मंदिर को लूटने और मिटाने के लिए सक्रिय
नहीं रहते..?
कहने को तो मोहनराम मंदिर का विकास के लिए
करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं किंतु एक रुपए की भी चाहत न रखने वाला ट्रस्ट करोड़ों रुपए
शासकीय धन के खर्च हो जाने के बाद मोहनराम तालाब का एक बूंद पवित्र पानी के लिए
तरस रहा है. तो
प्रदूषण की समस्या मंदिर ट्रस्टीयों की धरोहर के रूप में सिर्फ अब गंद भर नहीं मार
रही है अन्यथा मोहनराम तालाब शहर की तमाम गंदगी का एक जीता जागता उदाहरण और इस
सच्चाई के साथ एक करीब तीन करोड़ रुपए शासकीय धन ही खर्च हुआ व भ्रष्ट प्रशासनिक
अधिकारियों और भारतीयजनता पार्टी की पालिका-परिषद के तमाम पदाधिकारियों के भ्रष्ट कारनामों का प्रमाण पत्र है. किस प्रकार से हिंदुओं ने मोहनराम
मंदिर को जमकर लूटा...?
तो.., जो कथा शहडोल के मोहनराम मंदिर की है, वास्तव में वही
कथा अयोध्या के रामलला की है
तो.., जो कथा शहडोल के मोहनराम मंदिर की है, वास्तव में वही कथा अयोध्या के रामलला
विराजमान वाले मंदिर की है.
अंतर यह है कि वहां हिंदुओं ने मंदिर भी तोड़ दिया है और उन्हें झोपड़पट्टी पर
पहुंचा दिया और शहडोल में गर्भ ग्रह इसलिए बचा रहा क्योंकि यह प्रॉपर्टी मोहनराम
पांडे की दान-सुधा
प्रॉपर्टी का हिस्सा है.
बाकी हाकोर्ट के अधीन चल रही प्रबंध-समिति के प्रबंधन के चलते साधु-संतों का नकाब पहने पंडित-पुजारियों के बहाने भाजपाइयों ने अपने अपने ढंग से लूटने का काम किया
है.
इसीलिए
कहा जाता है भारत का लोकतंत्र भगवान भरोसे है...., यह एक अलग बात है कि लोकतंत्र का भगवान न्यायालय
में बसता है या जनता में...?
क्योंकि जनता तो बाजार है और हाल में देखा गया उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश भी
सड़क में भी देखा गया कि न्यायाधीश जनता के दरबार, प्रेस के सामने अपने भगवान को जगाने के लिए विनती करते दिखते हैं. देखना होगा अयोध्या, मोदी और योगी के योग से क्या परिणाम देती है, अपने शिवसेना को उनके 5 गांव याने
महाराष्ट्र दे
सकती है ..?
क्योंकि अयोध्या में राम हैं इसलिए वे
झोपड़पट्टी में वास करते हैं,
अगर कृष्ण होते तो बात कुछ और होती.
यही... अयोध्या बने
कुरुक्षेत्र का सच भी है...
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