शुक्रवार, 23 नवंबर 2018

आखिर कौन निगल गया पार्टी फण्ड , क्यों मच रहा है शहडोल में फण्ड का रोना ??



  ये अंदर की बात है.....

फंड का फंडा और चुनाव का अंडा


  • भाजपा का प्रबंधन खुले हाथों प्रचार की बजाए डी-कंपनी के हाथों सौंप दिया गया है..?
  • मतदान को मात्र कुछ दिन ही शेष हैं , पॉलीटिकल इंडस्ट्री के व्यापारी बिना कुछ निवेश किए बाजार लूटना चाहते । 





अब इसे प्रबंधन का अभाव कहैं या फिर असफलता की दोनों ही प्रमुख पार्टियां भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस संभाग मुख्यालय की सीट पर फ्लकचुएट करते हुए दिख रहे हैं.




भारतीय जनता पार्टी में ..........


 भगवान भरोसे चल रही राजनीतिक गतिविधि मैं तुलनात्मक तरीके से देखा जाए तो भारतीयजनता पार्टी सत्ताधारी होने के नाते उसके स्थानीय नेता और भाजपा का प्रबंधन खुले हाथों प्रचार की बजाए डी-कंपनी के हाथों सौंप दिया गया है..? चर्चित डी-कंपनी भ्रष्टाचार क्षेत्र में खुलेआम बिहारी अंदाज में शहडोल की नगरपालिका पर आंख मूंदकर धना-धन पर काम की और फर्श से अर्श तक अपनी पहुंच बना ली. 15 साल या कहें 20 साल की सत्ता की राजनीति मे वे डी-कंपनी भाजपा के पैमाने में वशिष्ठ-प्रबंधन का हिस्सा बन गई है. किंतु जो जानते हैं, उन्हें मालूम है की पार्षद के चुनाव में एक वोट की कीमत 5000 तक लगाने का दंभ भरने के बावजूद, निर्दलीय प्रत्याशी से पराजित हो जाने का अनुभव ही इस विधानसभा चुनाव में प्रायोगिक तौर पर वित्तीय प्रबंधन का हिस्सा बन गया लगता है.  अंदरूनी चर्चा में यह बात आम हो गई है की डी-कंपनी कहती है कि रुपए से वोट नहीं खरीदे जा सकते..? अगर रुपए में वोट मिलते तो पार्षद का चुनाव में मुझे कोई नहीं हरा सकता था और इसलिए वातावरण को समझना चाहिए अगर जीतना होगा जयसिंह मरावी को अथवा अन्य लोगों को. तो बिना पैसे के सामान्य रूप से जीत जाएंगे, अन्यथा कोई शिवराज सिंह यहां प्रचार-प्रसार तो कर नहीं रहे कि पैसा पानी की तरह बहाए आ जाए...?

कांग्रेस में ...............



और यही कारण है कि भाजपा भलाई वित्तीय-प्रबंधन में दिखने में कुशल दिखती हो किंतु उसे फायदा इस बात का है की प्रतिद्वंदी कांग्रेस पार्टी के ध्यानसिंह परस्ते अपने कांग्रेस पार्टी में पाकिस्तान से लगभग हाईजैक हो चुके फंड की तकलीफ झेल रहे पार्टी के मुकाबले भाजपा स्वयं को बेहतर मानती. दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी ने यह बात कांग्रेस अध्यक्ष राहुलगांधी के रोड शो का कार्यक्रम समय ही व्यवस्था का हिस्सा बन गई थी की जो आए उसे हाईजैक करो, रही भीड़ की बात ,भाजपा की सभा में नरेंद्रमोदी के लिए लाई गई भीड़ राहुल गांधी के रोड शो मैं स्वाभाविक रूप से भीड़ का हिस्सा बन जाएगी और इस प्रकार राहुल का रोड-शो, सफल रोड-शो में बदल जाएगा. तो सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी, कुछ इसी अंदाज में प्रथमचरण के वित्तीय प्रबंधन में कोई ढील नहीं दी गई. यह तो दुर्भाग्य था प्रबंधकों का कि राहुलगांधी ने अंतिम समय में संभवत: शहडोल से आ रही सूचनाओं के मद्देनजर  रोड-शो का कार्यक्रम निरस्त कर दिया.

थर्ड जेंडर भरपूर मनोरंजन के साथ बाजार में

कहते हैं यहां भी फंड मैनेजमेंट ने बड़ा धोखा दिया की राजनीति सेवा का अवसर है कोई पॉलीटिकल इंडस्ट्री नहीं,  किंतु जब पॉलीटिकल-इंडस्ट्री इस्टैबलिश्ड होगी ही गई है तो उद्योग में कम-निवेश पर उत्पादन भी या तो घटिया आएगा अथवा  बाजार में आपका ब्रांड जो कमल का फूल या फिर हाथ का पंजा या कोई और होगा नहीं चल पाएगा..? क्योंकि अन्य कई लोगों की तरह कुछ लोग तो साधु के भेष में शुद्ध देने की गारंटी में भी बाजार लूट लेते हैं , मतदान को मात्र कुछ दिन ही शेष हैं देखना होगा पॉलीटिकल इंडस्ट्री के व्यापारी बिना कुछ निवेश किए बाजार लूटना चाहते हैं अथवा फंड हाईजैक कर बाजार का हवा का रुख देख रहे हैं क्योंकि कोई एक ही आदिवासी जीतेगा ।   बहरहाल वातावरण 2 = 2 चल ही रहा है यह अलग बात है थर्ड जेंडर भरपूर मनोरंजन के साथ बाजार में नाच-नाच कर वोट भी मांग रहा है अब बाजार भी लूट रहा है..

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