शनिवार, 7 जनवरी 2023

गैरकानूनी नौकरी करने वालों का संरक्षक कौन...?

मामला शिक्षा क्षेत्र का

गैरकानूनी नौकरी करने वालों का 

संरक्षक कौन....?

कम से कम इस मामले में हमारी सड़ी हुई कानून व्यवस्था अब स्पष्ट रूप से दोगली हो चली है... वह भ्रष्टाचारियों को न सिर्फ संरक्षण देती है बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए अब तो चुनाव लड़ाने के लिए टिकट भी देने के लिए उतावली दिखती है. क्योंकि हमारे नेताओं को मालूम है कि भ्रष्टाचार ही वह ताकत है जिसकी बदौलत वह सत्ता में बने रहकर लोकतंत्र का सुख भोग सकते हैं. और यही कारण है कि शहडोल संभाग में अब भ्रष्ट ब्यूरोक्रेट्स जो प्रमाणित तो है किंतु भ्रष्टाचारियों और राजनेताओं की कठपुतली बनकर विधायिका में कब्जा करने के लिए उतावले दिखते हैं क्योंकि उन्होंने कार्यपालिका में रहकर भ्रष्टाचार को एक गुणवत्तापूर्ण सिस्टम बनाने का काम किया है और नेताओं को इस सिस्टम की आड़ में अपनी रंगरेलियां मनाने में जरा भी झिझक नहीं है. क्योंकि भ्रष्टाचार की सुंदरी उन्हें मोहित किए रहती है। अगर धर्म का नकाब इस सिस्टम को मिल जाए तो वह सोने में सुहागा हो जाता है. क्योंकि भ्रष्टाचार तब भ्रष्टाचार नहीं रहता जब कानून व्यवस्था के संरक्षण करने वाले लोग और उसकी सुरक्षा पर वेतन भोगी कार्यपालिका ऐसे भ्रष्ट सिस्टम को मान्यता देने लगती है. 

देखा गया है की कानून  में स्पष्ट निर्देश है की 26 जनवरी 2001 के बाद यदि किसी भी कर्मचारी के 3 बच्चे हो जाते हैं तो उसे नौकरी योग्य नहीं समझा जाएगा, याने उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही करके उसे सेवा से पृथक भी किया जा सकता है. 22 साल हो गए इसके बावजूद भी 26 जनवरी 2001 को निर्धारित वे गणतंत्र सिर्फ भ्रष्टाचार का बड़ा उत्सव बनकर रह गया है.

खबर है ऐसे में अगर कुछ तथाकथित ईमानदार दिखने वाले अधिकारी वर्ग प्रयास भी करते हैं तो वह भी मात्र ढपोल शंख की तरह बजता नजर आता है क्योंकि आदिवासी विभाग के2020


विकासखंड  में जिन प्रमाणित 33 कर्मचारियों का नाम 26 जनवरी 2001 की बात नियम विरुद्ध बच्चे पैदा करने की सूची में आता है  इन्होंने नियम विरुद्ध तरीके से अपने परिवार को बढ़ाने का काम किया है इस पर बार-बार कार्यवाही भी की गई है. किंतु भ्रष्ट सिस्टम जो आगे चलकर के विधायक बनने के लिए उतावला रहता है वह इन्हें लगातार पोषित कर रहा है.  आज तक इन लोगों के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की गई है. जब भी संबंधित सहायक आयुक्त अथवा उपायुक्त से इस संबंध में बातचीत की जाती है तो वह अपनी रटी रटाई ज्ञान विद्या के आधार पर यह कहने में जरा भी संकोच नहीं करते कि "मेरे संज्ञान में लाया गया है मैं इस पर कार्रवाई करूंगा" और इस तरह वे अपनी सर्विस अवधि को समाप्त कर के चरणों से चले जाते हैं. तब तक यह कार्यप्रणाली इन अधिकारियों और नेताओं के लिए चारागाह की तरह इन्हें और उनके परिवार का पेट भरने के काम में आती है. और इस भ्रष्टाचार को  पारदर्शी तरीके से सब जानते हैं इसलिए यह एक इमानदार सिस्टम की तरह अपनाकाम करता रहता है. और ऐसे ही भ्रष्टाचार के सफल लोग विधायक बनने के लिए राजनीतिक पार्टियों के प्रबल दावेदार बन जाते हैं. क्योंकि उनके पास करोड़ों अरबों रुपए मतदाताओं को खरीदने के लिए उपलब्ध हो जाता है। जो किसी भी राजनीतिक दल के लिए एक सुविधा की बात होती है क्योंकि इसी प्रकार के अन्य भ्रष्टाचार में भी पारदर्शी तरीके से धन संग्रह करते रहते हैं. तो देखना होगा कि उपलब्ध नामों के आधार पर क्या पारदर्शी भ्रष्टाचार के रहनुमा अपनी तथाकथित कर्तव्यनिष्ठा में कुछ कदम आगे बढ़ाएंगे।



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