शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

"एक रूपए ,कश्मीरी पंडितों के लिए" ----(त्रिलोकीनाथ-)--

 



"एक रूपए 

कश्मीरी पंडितों 

के लिए"

--------------(त्रिलोकीनाथ-)-----------------

जब भी कभी ब्राह्मण  में एकता की बात आती है तो उसका चेहरा कुछ भी हो और  राजनीति कितनी भी चले  भारत के आर्यावर्त क्षेत्र का कश्मीर प्रांत ही एक ऐसा प्रांत है जो दुनिया में कश्मीरी पंडित संबोधन के नाम  लगतार वर्षों से पीड़ित और  प्रताड़ित  समाज  का दर्दनक चेहरा बना हुआ है. यह हमारे भाई हैं और हम ब्राह्मण समाज अगर इनके बारे में कुछ नहीं कर पा रहे हैं, लचर लावारिस निरीह बने हुए हैं तो बहुत दुख की बात है...... हम अपनी सद्भावना सिर्फ "एक रूपए कश्मीरी पंडितों के लिए" ये एकत्रित कर के अपने क्षेत्र के कलेक्टर को  उनके हित में क्यों नहीं भेज सकते, सिर्फ सदभावना ही तो है......... इसलिये कश्मीरी पंडित लिए एक रूपए हम एकत्रित करें और अपने कलेक्टर के जरिये उन्हें अपनी  दर्द से निजात के रूप में एकत्रित सद्भावना की बातऔर भेजें. सरकार जो कर  रही है हम अपने भाइयों के लिए एकत्रित सद्भावना क्यों नहीं होना चाहिए.... शायद हमारे एक रूपए कश्मीरी पंडितों के लिए हमारे जिंदा होने के एक प्रमाण पत्र भी तो है 
 

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कश्मीरी पंडित (जिन्हें कश्मीरी ब्राह्मण भी कहा जाता है) और वृहत्तर सारस्वत ब्राह्मण समुदाय का हिस्सा हैं। वे जम्मू और कश्मीर के भारत के केंद्र शासित प्रदेश में एक पहाड़ी क्षेत्र, के पंच गौड़ ब्राह्मण समूह से संबंधित हैं। मुस्लिम प्रभाव के क्षेत्र में प्रवेश करने से पूर्व कश्मीरी पंडित मूल रूप से कश्मीर घाटी में ही रहते थे। मुस्लिम प्रभाव बढ़ने के साथ बड़ी संख्या में लोग इस्लाम में परिवर्तित हो गए। वे कश्मीर जाति के मूल निवासी के तौर पर शेष एकमात्र कश्मीरी हिंदू समुदाय हैं।

कश्मीरी पंडित डोगरा शासन (1846-1947) के दौरान घाटी की जनसंख्या के कृपा-प्राप्त अंग थे। उनमें से 20 प्रतिशत ने 1950 के भूमि सुधारों के परिणामस्वरूप घाटी छोड़ दी, और 1981 तक पंडित आबादी का कुल 5 प्रतिशत रह गए। 1990 के दशक में आतंकवाद के उभार के दौरान कट्टरपंथी इस्लामवादियों और आतंकवादियों द्वारा उत्पीड़न और धमकियों के बाद वे अधिक संख्या में जाने लगे। 19 जनवरी 1990 की घटनाएँ विशेष रूप से शातिराना थीं। उस दिन, मस्जिदों ने घोषणाएँ कीं कि कश्मीरी पंडित काफ़िर हैं और पुरुषों को या तो कश्मीर छोड़ना होगा, इस्लाम में परिवर्तित होना होगा या उन्हें मार दिया जाएगा। जिन लोगों ने इनमें से पहले विकल्प को चुना, उन्हें कहा गया कि वे अपनी महिलाओं को पीछे छोड़ जाएँ। कश्मीरी मुसलमानों को पंडित घरों की पहचान करने का निर्देश दिया गया ताकि धर्मांतरण या हत्या के लिए उनको विधिवत निशाना बनाया जा सके। कई लेखकों के अनुसार, 1990 के दशक के दौरान 140,000 की कुल कश्मीरी पंडित आबादी में से लगभग 100,000 ने घाटी छोड़ दी। अन्य लेखकों ने पलायन का और भी ऊँचा आँकड़ा सुझाया है जो कि 150,000से लेकर 190,000 (लगभग 200,000 की कुल पंडित आबादी का) तक हो सकता है। तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन की एक गुपचुप पलायन संघटित करने में संलिप्तता विवाद का विषय रही जिससे योजनाबद्ध पलायन की प्रकृति विवादास्पद बनी हुई है। कई शरणार्थी कश्मीरी पंडित जम्मू के शरणार्थी शिविरों में अपमानजनक परिस्थितियों में रह रहे हैं।(मुक्त ज्ञानकोश विक.)

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