अब तक क्यों नहीं बनी पीएलपीसी..?
सार्वजनिक भूमि संरक्षण प्रकोष्ठ (पी एल पी सी) के जरिए तालाबों नदियों का संरक्षण की बात कहीं हाईकोर्ट ने
जनहित के माध्यम से ये दोनों याचिकाएं पर आदेश पारित करते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने निर्देश किया है इस मामले पर तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए ।देखना होगा कि शासन और प्रशासन उच्च न्यायालय के आदेश के पालन में कितनी प्रतिबद्धता दिखा पाती है अथवा वह भी मात्र आम जनता की तरह मांग पत्र की तरह खारिज हो जाता है....?
तो पहले जान लें कि याचिकाकर्ता की दायर याचिका 7865 मामले में उच्च न्यायालय ने क्या कहा है।
उच्च न्यायालय के प्रकरण क्रमांक का निराकरण करते हुए कहा गया है की शासकीय भूमि पर अतिक्रमण को लेकर मुकदमा दर्ज किया गया है।
उच्च न्यायालय देश के लगभग सभी जिलों से बड़ी संख्या में रिट याचिकाओं, मुकदमों से भरा पड़ा है। की'निस्तारभूमि'/'चर्नोई'/'गोचर/'चारागाह'/'तालाब' की भूमि, तालाब'/'नदी/नदी तल'/'सार्वजनिक पथ'/'श्मशान' पर अतिक्रमण का आरोप /'कब्रिस्तान' आदि को जनहित के रूप में किया गया ।इस निरंतर बनी
रहने वाली समस्या का एक राज्यव्यापी समाधान प्रदान करने के लिए, राज्य के मुख्य सचिव को निर्देश दिया गया कि वह सार्वजनिक भूमि संरक्षण प्रकोष्ठ के रूप में नामित एक स्थायी निकाय तैयार करें, जिसमें जिला कलेक्टर इसके अध्यक्ष और तहसीलदार रैंक के अधिकारी इसके सदस्य हों।सचिव और इसके जैसे अन्य अधिकारीसदस्य, जैसा कि सरकार नामित करने के लिए उचित समझे। पीएलपीसी उपरोक्त संदर्भित भूमि पर अतिक्रमण के बारे में शिकायतें प्राप्त करेगी और सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के आलोक में उसे हटाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करेगी।
ज्ञातव्य है की तालाबों को नष्ट करने में शहडोल नगर विशेष पर भारी लापरवाही बरती गई है जिस कारण लगभग हर तालाब और नाले नदियां अतिक्रमण के दायरे में आ गए हैं साथ ही तालाबों व नालों पर कई कॉलोनाइजर्स ने कब्जा करके रेरा से अनुमति भी ले ली और मकानों को बेच रहे हैं ऐसे में पर्यावरण के क्षेत्र में शहडोल नगर को भारी समस्या का सामना करना पड़ रहा है तालाबों के आसपस अस्पतालों के कचरा का अंबार लगा रहता है जय स्तंभ चौक के पास ही हाल में मुंसा कुमार नाम के अतिक्रमण कारी ने मनमानी तरीके से पेड़ पर लगे हुए पेड़ों को काट डाला है जबकि
इसी तालाब के पास पुलिस महानिरीक्षक का कार्यालय है और समीप में संभागायुक्त का भी कार्यालय है तो जब इन उच्चाधिकारियों के कार्यालयों के आसपास अतिक्रमण कारी नंगा नाच कर रहे हैं तो अन्य स्थानों में चारागाह तालाब नदी नालों और आदिवासी विशेष क्षेत्र के नागरिकों की जमीनों की खुली लूट को कौन रोक सकता है यह बड़ा प्रश्न है जबकि इस मामले में स्पष्ट तौर पर अब हाईकोर्ट ने भी एक तरह का स्मरण करा कर शासन और प्रशासन को पीएलपीसी के जरिए इन सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा के लिए निर्देश जारी किया है तो देखते हैं हमारे जिम्मेदार अधिकारी वर्ग किस हद तक गैर जिम्मेवार बने रह सकते हैं...? न्यायपालिका की आदेश के बाद भी क्योंकि शहडोल के प्रसिद्ध मोहन राम मंदिर तालाब और मंदिर ट्रस्ट के मामले में हाईकोर्ट के आदेश 2013 से आज तक क्रियान्वित नहीं हुए हैं जिससे मंदिर ट्रस्ट का तालाब अतिक्रमणकारियों से नष्ट होता जा रहा है जो कि शासकीय नजूल भूमि का आंशिक हिस्सा भी है यही हाल लगभग हर जगह है एनएच नागपुर रोड स्थित नगर के सीमा में स्थित पोंडा नाला को खत्म करके उसके ऊपर एक कालोनी का निर्माण बिना सरकारी सहमति के नहीं हो सकता था उसकी मकानों की बिक्री धड़ाधड़ हो रही है जो भविष्य में समस्या का कारण भी बनेगी यही हाल बुढार रोड स्थित गोरतारा नेशनल हाईवे के रोड पर नाले पर सरकारी जमीन में कब्जा कर लिए जाने की बात भी सामने आई है यह तो सिर्फ उदाहरण है कि कैसे जिम्मेदार लोग मिलजुल कर माफिया गिरी कर रहे हैं फिर भी पी एल पी सी निष्क्रिय रहना आश्चर्यजनक है। जो साबित करता है कि हाईकोर्ट के आदेश कचरे के डब्बे में पड़े हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें