2022 का सच..,जब नेता ने पत्रकारिता से प्रश्न पूछा
पत्रकारिता पर
करारा प्रहार ...?
चलो 2 मिनट के लिए मान लेते हैं कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने झूठ बोला है, या यह भी मान लेते हैं कि भारतीय जनता पार्टी और उसकी प्रोपेगेंडा इंडस्ट्री जो राहुल गांधी की उस कथित झूठ पर जो हाय-तौबा मचा रही है, वह भी झूठा है। तो सच क्या है..? यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है।
क्योंकि राहुल गांधी ने राजस्थान के अपने 100 दिन की भारत जोड़ो यात्रा की वक्त जो प्रश्न खड़ा किया था वह प्रश्न दरअसल भारत की तमाम पत्रकारों के ऊपर था, जो निष्पक्ष पत्रकारिता का नेतृत्व करने का दावा करते हैं.... हालांकि बीच-बीच में राहुल गांधी ने कई बार तंज भी कसा था।
किंतु जब लोकतंत्र के अदृश्य स्तंभ पत्रकारिता से 9 दिसंबर में चीनी सीमा पर मुठभेड़ में हुई घटना की कोई प्रश्न नहीं पूछे गए तब राहुल गांधी ने बेहतरीन आक्रामक तरीके से पत्रकारिता पर हमला कर दिया था। तो पत्रकारिता का नकाब पहने जो लीडरशिप पत्रकारिता के स्वयं को प्रस्तुत करती है हर मौके पर निष्पक्ष पत्रकार होने का उसका नकाब जैसे उतर गया था... बावजूद इसके कि भारतीय पत्रकारिता के सबसे बुरे दौर में देश गुजर रहा है उसकी मूल जड़ में मूल पत्रकारों की पत्रकारिता को कुरेदने का काम राहुल गांधी ने कई बार "सच कहा था, सच कहा था.... " कहकर जैसे पूरी पत्रकारिता पर आक्रमण कर दिया था।
और इसके बाद वह प्रश्न जो अहम मुद्दा था हालांकि चीनी सीमा विवाद में 9 दिसंबर की घटना को लेकर उस पर तत्काल प्रश्न भी आया और जो उत्तर आया राहुल गांधी की तरफ से उसमें उन्हें राष्ट्रीय द्रोही परंपरागत तरीके से फैलाने का काम अपनी परंपरा का निर्वहन करते हुए सत्ताधारी पार्टी ने किया और तमाम प्रकार की नैतिक सीमाओं को भी तोड़ने का काम किया, जैसे मंत्री और सांसद रिजिजू ने कहा कि "वे कांग्रेस के लिए ही नहीं देश के लिए शर्मिंदगी का कारण बन गए हैं", उन्होंने तो यहां तक कहा कि कांग्रेस एक राजनीतिक दल कम और भारत विरोधी गतिविधियों का अड्डा अधिक बन गई है।
बताते चलें यह वही रिजीजू है जिन्होंने न्यायपालिका पर भी लगातार हमलावर रूप अख्तियार कर रखा है। यह अलग बात है कि न्यायपालिका पत्रकारिता जैसी गरीब संस्थान नहीं है इसलिए वह मुंह तोड़ जवाब देती है। तो भाजपा के अध्यक्ष नड्डा ने कहा कि राहुल गांधी देशभक्त नहीं है। जो वह अक्सर अपने विरोधियों को कहते हैं ऐसे में भाजपा की प्रोपेगेंडा इंडस्ट्री जैसा कि कांग्रेस अध्यक्ष ने उन्हें 100 मुख वाला कहा था उनके शब्दों से राष्ट्रद्रोह.. राष्ट्रद्रोह... राष्ट्रद्रोह का स्पीकर बजने लगा।
और यह कोई नई बात नहीं है, आखिर इन्हीं समस्याओं से लड़ने के नए रास्ते के रूप में ही तो राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा में "नफरत की जगह प्यार" का धंधा बढ़ाने के लिए पैदल चल रहे हैं |यह अलग बात है कि उन्हें कितनी सफलता मिलती है|
अगर वह चुपचाप चले चलते तो कोई बात नहीं थी उनकी प्रोपेगेंडा इंडस्ट्री की तरफ से खारिज कर दिए गए नेता के रूप में प्रचारित किए जाने के बावजूद भी जब भी राहुल गांधी कुछ बोलते हैं| प्रोपेगेडा इंडस्ट्री जैसे सुलग जाती है| इस रूप में जवाब देने लगते हैं बहरल हाथी की चाल में राहुल गांधी चलते ही चले जा रहे हैं |
लेकिन यह बात सही है कि जब चीन आए दिन हिंदी चीनी भाई भाई का झंडा उठाकर भारत में झगड़ा करता रहता है और चीन की भाषा को हम समझते भी हैं बावजूद उसके, जैसा कि कांग्रेस नेता चिदंबरम ने कहा है की चीन द्वारा भारत के प्रति शत्रुता प्रदर्शित करने के बावजूद भारत चीन को जितना निर्यात करता है उससे 4 गुना अधिक आयात कर रहा है
यानी 2021-22 में व्यापार घाटा 73 अरब अमेरिकी डॉलर का था 174 चीनी कंपनियों ने भारत में पंजीकरण कराया है 3560 भारतीय कंपनियों के बोर्ड के चीनी निर्देशक हैं तो भी चिदंबरम के अनुसार चीनी चौपड़ के खेल को लेकर हम अंधेरे में क्यों हैं |
थोड़ी सी जो पी ली है तो हंगामा क्यों
हमारे जैसे आदिवासी विशेष क्षेत्र के लोगो को सिर्फ इतना समझना चाहिए कि अगर अपने 100 दिन की यात्रा के बाद राहुल गांधी ने उनके अनुसार अगर थोड़ी सी जो पी ली है तो हंगामा क्यों मचाया जा रहा है और राहुल गांधी ने जो पिया था वह जाम दरअसल भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पत्रकारिता के साथ टकराया था ना कि तथाकथित राष्ट्र वादियों के साथ|
यह अलग बात है कि राहुल गांधी का अपना राष्ट्रवाद है और उनके विरोधियों का अपना राष्ट्रवाद है किंतु पत्रकारिता का भी अपना एक राष्ट्रवाद होना ही और जो भारतीय पत्रकारिता का नेतृत्व करने का नकाब पहनते हैं दरअसल उनके राष्ट्रवाद पर ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तंज कसा था और वह सही था, सही था और सही था और यही राहुल गांधी ने कहा था |
तो फिर भारतीय पत्रकारिता को चींटा काटने की बजाए, चींटा सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी अथवा उस प्रोपेगेंडा इंडस्ट्री को क्यों काटा...? तो क्या यह बड़ा कड़वा सच है की भारतीय पत्रकारिता का अपना पृथक अस्तित्व धीरे-धीरे खत्म होकर उन गुलामों की तरह हो गया है जिनके मालिक विपक्षी पार्टी के उनके द्वारा खारिज कर दिए गए नेता राहुल गांधी की बातों पर हंगामा खड़ा कर दिया जाता है| इसको क्यों ना माने की यही पदयात्रा की शुरुआत मैं जो खाकी हाफ पेंट को सुलगन लगाने वाला व्यंग चित्र भारत जोड़ो यात्रा की तरफ से प्रदर्शित किया गया था वह कुछ ज्यादा सुलग रहा है| और तथाकथित राष्ट्रवाद का हक किसके पास है यह पारदर्शी हो रहा है| क्योंकि अगर चीन सीमा का विवाद इतना संवेदनशील है तो उसे सभी सांसदों के साथ चाहे तो गुप्त तौर पर शेयर क्यों नहीं करना चाहिए...? खासतौर से उन सांसदों के साथ जो पिछले कई दशकों से सत्ता पर उसी गोपनीयता को निर्वहन कर रहे थे| उसकी संवेदनशीलता क्या इतनी ही संवेदनशील है जितनी कि हमारे जैसे आदिवासी विशेष क्षेत्र शहडोल में किसी उद्योगपतियों को मनमानी तरीके से उनकी माफिया गिरी के सामने घुटने टेक कर गैर कानूनी कार्यों को संचालित होने दिया जाता है और इस क्षेत्र में भी उसे गोपनीयता बनाकर चाहे मुख्यमंत्री कोई भी हो रखना चाहता है चाहे वह मुद्दा ओरिएंट पेपर मिल्स से सोन नदी के वर्षों पर गैरकानूनी तरीके से पानी निकालकर उसमें प्रदूषित पानी जाने का हो अथवा सत्ताधारी पार्टी के चहेते उद्योगपति अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज के द्वारा शहडोल में बिना अनुबंध किए सीबीएम गैस निकाले जाने का मुद्दा हो|
इन सब पर भी बोलने पर क्या कांग्रेस को राष्ट्रद्रोह का सामना करना पड़ता... तो हालात कुछ इसी प्रकार के हैं...? यह अलग बात है कि भारत में उनके द्वारा खारिज कर दिया गया कांग्रेस नेता राहुल गांधी ही था जिसने चीनी कोरोनावायरस कोविड-19 को पहले पहल भारत में खतरा होने की सूचना दी थी| तब भी राहुल गांधी खारिज कर दिए गए थे| तो बात कुछ तो है, जो हंगामा मचा है.. अन्यथा शायर के यह बात निरर्थक नहीं है कि
हंगामा है क्यों ,बरपा थोड़ी सी जो पी ली है...
चोरी तो नहीं की है... डाका तो नहीं डाला...
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