शनिवार, 9 जुलाई 2022

क्या मन गिरवी हो गया है..? (त्रिलोकीनाथ)

 शोषण के खिलाफ श्रीलंका में लगी आग

और हमारे यहां 

राख में तपिश भी नहीं...

                                                                   ( त्रिलोकीनाथ )

आज गैस सिलेंडर 11 सौ रुपए में खरीदा तो लगा बधाई किसे दूं...?

 कोरोना भाई-साहब को दे या फिर भारतीय जनता पार्टी को अथवा इस महान पार्टी को पैदा करने वाली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की तथाकथित राष्ट्रवादी अस्मिता को....?

 क्योंकि वर्तमान के अनुभव से अब लगता है यह गर्व का विषय था कि किसी को चिन्हित करने की ताकत थी हमारी कि श्रीमती इंदिरा गांधी की तरह आपातकाल लगाया गया होता तो हम श्रीमती गांधी को उसका दोषी ठहरा सकते हैं। लेकिन वर्तमान समय में पॉलिटिकल कॉर्पोरेट पार्टी ने जो अघोषित आपातकाल लगाकर महंगाई को सातवें आसमान पर चढ़ाया जा रहा है और भारतीय मुद्रा की कीमत ₹100 प्रति डालर तक करने की लक्ष्य में तीव्र रफ्तार के बीच में अगर 11 सौ रुपए का सिलेंडर हमें खरीदना पड़ता है तो महसूस होता है कि हमने खोया क्या है ...?

हम इसमें 1 महीने का रसोई के लिए तेल किराना और कुछ जरूरी सामान भी खरीद सकते थे। जब ₹400 का सिलेंडर मिलता था तब एक सिलेंडर और खरीद सकते थे।

 यह बात संविधान में गारंटी देकर शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र को पांचवी अनुसूची का पावर देने के बाद भी यहां से निकलने वाली गैस को अगर यही बांटने की व्यवस्था कर दी गई होती तो शायद  ₹1100 का सिलेंडर की बजाए हम ₹300 में अपना महीने भर का गैस उपयोग कर सकते थे ।

किंतु हमारे प्राकृतिक संसाधन खनिज गैस रिलायंस सीबीएम गैस कंपनी याने अंबानी जी को सौंप दी गई है। कहते तो यहां तक है कि उनका अनुबंध भी शहडोल में नहीं हुआ है कि वह यहां से खनिज गैस निकाल सकें ....?

 बावजूद गैस निकाल रहे हैं चलो अगर अवैध गैस निकल ही रही है तो शहडोल या फिर विंध्य वासियों का भला क्यों नहीं किया जाना चाहिए ..?

बीच में एक दलाल नुमा व्यक्ति   जो इस बार ईस्ट इंडिया कंपनी तो नहीं है बल्कि इस बार गुजरात इंडिया कंपनी से आकर शहडोल में गैस की सप्लाई का ठेका ले लिया है ।उसे जिस रेट में गैस मिलेगी वह उसी रेट में थोड़ा सा मुनाफा कमाकर बेचेगा तो शहडोल वालों को यह जानने का हक बिल्कुल नहीं है कि उसे किस रेट में शहडोल सीबीएम की गैस मिल रही है...? या उसक नकाब पोप यानी नेशनल गैस पाइपलाइन कि ग्रिड से जोड़ने के कारण यानी कंपनी का ठप्पा लगने के कारण महंगी गैस के रूप में शहडोल वासियों को खरीदना पड़ेगा।

 तो गैस शहडोल से निकलेगी.... डंके की चोट में निकलेगी... पूरा पुलिस प्रशासन उसकी चौकीदारी करेगा, विधायिका याने सांसद-विधायक और उनके सो काज मुफ्त के बंधुआ मजदूर रूपी कार्यकर्ता मिलकर उसके लिए काम करेंगे और वह बाहर के रेट पर शहडोल वालों को गैस बेचेंगे ही। क्योंकि उन्हें तो सरकारी पैसा मिलता है भक्तों को यानी कार्यकर्ताओं को इधर उधर ऊपर नीचे से पैसा मिल जाता है अन्यथा वे अपनी गैस से तो घर नहीं चला सकते। क्योंकि घर तो चला ही रहे हैं। चाहे जहां से लूट मार कर चला रहे हो यही कड़वा सच है।

 


इस समय सबसे कम पेट्रोल का रेट किस प्रांत में बिक रहा है यह देखकर हमें भी लालच हुआ है की चूकि हमारे शहडोल में गैस निकल रही है तो हमें भी स्थानीय रेट पर क्यों नहीं मिलना चाहिए  ....?

 लेकिन हम कर्ज में डूबे हुए लोग राष्ट्रवादी भारत के लिए मरने मिटने को तैयार हैं । हम कोई आजादी की कल्पना भी नहीं कर सकते क्योंकि मानसिक तौर पर गुलाम भी दिनोदिन हो रहे हैं क्योंकि आंदोलन कि








(फोटो दैनिक भास्कर से साभार )

वह आग जो श्रीलंका में लगी हुई है हमारे राख से भी नहीं निकलने वाली...? अभी हिंदू मुस्लिम का धंधा चालू हो जाए तो भगवा रंग लहराने लगेगा या फिर हरा झंडा अल्लाह हू अकबर बोलकर प्राण गवाने को तैयार हो जाएगा।

 बची कुची ताकत सात-आठ सालों में पूरी तरह से जैसे नसबंदी कर दी गई है इसके लिए संजय गांधी के रूप में चर्चित होने की जरूरत नहीं है। इसलिए संभावित सस्ती चीजों को भी हमारे घर के अंदर से सरकारी नियम बनाकर पूरी गुंडागर्दी से वसूला जाता है। जैसे शहडोल में जबरदस्त जलस्तर था भरपूर तालाब थे तालाबों को नष्ट करके जगह-जगह बोरिंग के जरिए विकास का रास्ता से। भूजल को बुरी तरह से निकाला गया और पानी की कीमत जो नगरपलिका ₹10  लेती थी उसे बढ़ाकर ₹100 से ऊपर कर दिया गया है तो जमीन से लेकर आसमान तक महंगाई के  नकाबपोश बाजारवादी लोग चाहे वे लोकतंत्र के विधायिका में बैठे हो या कार्यपालिका में चुपचाप उस हालात को आशा भरी निगाहें की ओर धक्का लगाने का काम कर रहे हैं जो श्रीलंका में आज नागरिक कर रहे हैं।

 वहां इसी प्रकार के शोषण से शिकार लोग प्रधानमंत्री आवास को आग लगा दी गई है किंतु भारत में स्लो पाइजन की गुलामी फर्जी राष्ट्रवाद का झूठा घमंड इतना ठूंशकर भर दिया गया है कि आप में सोचने की शक्ति भी खत्म हो गई है कि क्या सही है और क्या बुरा है...।

 तो बात कर रहा था कि अगर शहडोल में गैस निकल रही है यही घरेलू गैस है तो हमें सस्ती क्यों नहीं मिल सकती क्या गैस की तरह है हर घर में नल के जरिए जल पहुंचाने कि कयामत भी इतनी ही महंगी होने वाली है...? बावजूद इसके  पानी भरपूर है यहां यह जरूर सोचना चाहिए और श्रीलंका जैसे उग्रता पूर्ण तरीके से हिंसा से नहीं बल्कि महात्मा गांधी के अहिंसक विचारधारा से अपने अधिकारों पर चर्चा करनी चाहिए क्योंकि हम आजाद भारत के लोग हैं और संविधान की पांचवी अनुसूची में संरक्षित शहडोल जैसे विशेष आदिवासी क्षेत्र के कुछ विशेष अधिकार भी हैं। जिनके जरिए आप सस्ती चीजें पा सकते हैं अगर संविधान इजाजत देता है तो ।

अन्यथा संविधान संशोधन के जरिए भी यह बात हमारे सांसद और विधायक अपनी बातों को ऊपर रखकर संदेश दे सकते हैं किंतु इसके लिए सोचना होगा समझना होगा और मनुष्य की तरह विचार भी करना होगा.... क्योंकि हम पशु नहीं हैं प्रयास तो कर ही सकते हैं। पशु भी धोखे से ही सही कागज और पत्तों के बीच में प्लास्टिक खा लेता है किंतु जिंदा रहने का प्रयास करता है क्या आप जिंदा रहने का प्रयास भी नहीं कर सकते जरूर करना चाहिए.... अन्यथा कॉर्पोरेट पॉलीटिकल सिस्टम में बाजारवादी लोग हमारे और आपके घर की जमीन जमीर भी बेचने में एक पल नहीं लगाएंगे.... और इसकी शुरुआत मन में सोचने से पैदा होगी अगर आपने मन गिरवी नहीं रख दिया है तो....?


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