सोमवार, 2 मई 2022

सबके राम: भगवान परशुराम (त्रिलोकीनाथ)

अक्षय तृतीया 

भगवान परशुराम 

जयंती दिवस 

(त्रिलोकीनाथ )

क्यों महत्वपूर्ण है लोकतंत्र में 

आम धारणा यह है कि स्थापित महर्षिओं की तरह भगवान परशुराम भी एक महर्षि हैं। क्योंकि उन्होंने अपनी भगवत्ता स्थापित करने की बजाय कर्मयोगी स्वरूप में ज्यादा प्रदर्शित हुए हैं। भगवान जैसा कोई बड़ा चमत्कार दिखाने पर भी उन्होंने विश्वास नहीं किया ।ब्रह्मतत्व को चतुरवर्ण व्यवस्था में अपने कर्म से स्थापित किया और इसीलिए लोकतंत्र में कर्म योगी समाज के लिए वे स्थापित देवता के रूप में देखे जाने चाहिए। क्योंकि वह आज भी चिरंजीवी याने अजर-अमर रूप में पृथ्वी सहित हमारे नक्षत्र मंडल में पर विद्वमान हैं। 

और वास्तव में वे भगवान के दशावतार में छठे मानव अवतार हैं वह एकमात्र चिरंजीव होकर वर्तमान में विद्यमान भगवान महाविष्णु  के छठे अवतार हैं ।उनकी ख्याति अपने आप में भारत को बांध कर रखती है क्योंकि वह हर जगह वहीं के हैं जहां पर उन्हें लोग अपना मानते हैं। भगवान परशुराम जी की महत्व उनका गुणगान सिर्फ इस बात पर ही निहित है कि वे जितने भी मानवीय भगवान के अवतार हुए हैं उन सब को दीक्षा देने के लिए वह चिरंजीवी रूप में स्थापित हैं। यहां तक की उनका पराक्रम दीक्षा जितना सतयुग में विद्यमान थी उतनी ही शक्ति रूप में त्रेता में भगवान राम के हाथ में "सारंग धनुष" के रूप में तो द्वापर में भगवान कृष्ण के हाथ में सुदर्शन चक्र के रूप में सभी कारणों के कारण और निवारण के रूप में बरकरार रही... यहां तक की कहा जाता है कि कलयुग में जब भगवान कल्कि का अवतार होगा तब भगवान परशुराम उन्हें दीक्षा देने के लिए उपलब्ध रहेंगे ऐसे भगवान की  चतुरवर्ण व्यवस्था में समतामूलक संघर्ष स्पष्ट दिखता रहा है जहां वे कर्म के आधार पर वर्ण को वरण की व्यवस्था हो तब स्थापित किया ।आज की भी उतनी ही जरूरत है इस लोकतंत्र में तो आजादी के बाद सांसद रहे राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर उनके बारे में अपने अनुभव से क्या लिखें... आइए पढ़ें-












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