सोचिए....,
अगर फतेह हार गया..
तो क्या आप जिंदा हैं...?
( त्रिलोकीनाथ )
इसमें कोई शक नहीं की संयुक्त शहडोल में सिख समुदाय से प्रशासनिक-बौद्धिक-परिक्षेत्र में दखल रखने वाले स्थानीय निवासी बन चुके लोगों में दो-तीन चेहरों में फतेहसिंह सेहरा का चेहरा हमेशा अविस्मरणीय रहेगा . वे मिलनसार और लोकप्रिय तो थे ही, न्याय के प्रति उनकी स्पष्ट धारणा प्रशासनिक दखल पर अमिटछाप भी छोड़ती रही है। तथा अन्याय का वह डटकर मुकाबला करने की कला को जानते भी थे। किंतु परिस्थितियां जब निजी-जीवन में आक्रमण करती हैं तब शायद व्यक्ति का धैर्य भी जवाब दे जाता है।
किंतु जब पिछड़ा वर्ग की राजनीति अपनी उफान पर हो... ऐसे में जब सत्ता की राजनीति के केंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में जिले का प्रमुख कोई सिख हो.... और जातिवाद की राजनीति का अंधानुकरण पूरे शबाब पर हो... ऐसे में भी न्याय के पक्ष में लड़ाई लड़ने की फतेह सिंह सेहरा की चाहत उसे फतह क्यों नहीं दिला पाई...? आखिर कौन गद्दार थे...? यह चिंतन व मंथन का बड़ा विषय है..।
यह भी अजीब संयोग था फतेहसिंह का निधन उस दिन हुआ जब प्रदेश के पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री गौरीशंकर बिसेन शहडोल में प्रवास पर थे।
आप चाहे तो शुतुरमुर्ग की तरह, चल रही रेत की आंधी में रेत के अंदर मुंह छुपा सकते हैं; बात यह भी नहीं है कि जो भ्रष्ट सिस्टम संरक्षित होकर प्रशासनिक दखल में शिक्षा के क्षेत्र विशेष मे अपनी सफलता पर अहंकार पाले हुए हैं उन पर क्या जांच हो या कोई दंडित हो...?
उससे क्या फर्क पड़ेगा.. फर्क तब भी नहीं पड़ा था जब कलेक्टर के रीडर रह चुके कर्मचारी नेता शंकर जगवानी
भी सिस्टम के दबाव में कुछ इसी प्रकार की हत्या के शिकार हो गए थे... जिसे हार्ट अटैक या अन्य बीमारी का नाम दिया गया था बाद में सब सिस्टम में सबदब गया।
बात यह है की क्या बचे-कुचे अच्छे लोग को अपनी अच्छी सोच को सड़े हुए सिस्टम की सुरक्षा में बलिदान होता रहना पड़ेगा...? या फिर अपनी अच्छी सोच को हमेशा के लिए खत्म कर देना चाहिए...? यह बात मित्र फतेह सिंह की मौत रूपी हार के बाद हमें आहत करती है.. उनके परिवार ने जो कुछ खोया है उसका दर्द सिर्फ वही जान सकते हैं हम तो सिर्फ सद्भावना ही व्यक्त कर सकते हैं कि ईश्वर, उन्हें वाहेगुरु उन्हें शक्ति प्रदान करें..।
लेकिन यह कैसी राजनीति के संक्रमण काल में हम जी रहे हैं कि, अच्छा काम करना... अच्छी सोच रखना.... या शहर के लिए अच्छा सोचना... वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में सिर्फ एक अपराध है......
अन्यथा क्या लाखों करोड़ों रुपए की तनख्वाह पाने वाला सिस्टम में एक भी अच्छा आदमी नहीं था, जो तमाम न्यायिक पक्ष फतेह सिंह के साथ होने के बाद, याने आर एस एस जिला प्रमुख सिख होने के बाद, प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री आदि द्वारा पिछड़ावर्ग को उफान की बेला में, पिछड़ा वर्ग होने के बाद और न्यायिक पक्ष फतेह सिंह के पक्षधर होने के बाद भी उन्हें संभलने का आश्वासन या मौका नहीं मिला....?
क्या हम एक सड़े हुए ,दुर्गंध युक्त ,भ्रष्टतम-व्यवस्था के उदाहरण बनते जा रहे हैं...? मैं यह इसलिए कह रहा हूं कि शहडोल का मोहन राम मंदिर का प्रकरण की लड़ाई में हाईकोर्ट का न्याय पक्ष बीते 10 साल से इसी सड़े हुए सिस्टम जिसे रामराज्य कहते हैं, मे गुलामी की हालात में अन्याय का शिकार है... जबकि रामराज्य की सत्ता भी उस के पक्ष में है, हाईकोर्ट का न्याय भी उस के पक्ष में है... इसके बावजूद भी "स्वतंत्रकमेटी" नामक प्रबंधन आत्महत्या करने को मजबूर है...? क्योंकि स्वस्थ प्रकृति का कार्यपालिका का व्यवहार मरा हुआ है.... और शायद इसी प्रकार के व्यवहार के कारण हमारे बीच में सिख समुदाय का हंसमुख फतेहसिंह सेहरा किसी मानसिक प्रताड़ना में हम सब को छोड़ कर चले गए...
अगर जरा भी जमीर हो, जिम्मेदार वर्ग में तो कुछ तो होना चाहिए. .. जो स्वविवेक से स्वाभिमान से और निष्पक्षता से भी.. चाहे शंकर जगबानी की मौत का मामला या फिर अब फतेह सिंह सेहरा की मृत्यु का मामला परिणाम मूलक निष्कर्ष देना चाहिए अन्यथा हम सब उस भ्रष्ट एवं कॉर्परेट माफिया जगत के सिर्फ एक गुलाम बनकर रह गए हैं.... जो कठपुतलियों की तरह अपने स्वार्थी हितो और भ्रष्टाचार को समर्पित व्यवस्था का भ्रष्ट सिस्टम मात्र बनकर रह गया है। ऐसा मानना चाहिए।
क्योंकि सतत-संघर्ष ही स्वतंत्रता की गारंटी है
"" किंतु परिस्थितियां जब निजी-जीवन में आक्रमण करती हैं तब शायद व्यक्ति का धैर्य भी जवाब दे जाता है।"" कैसे मिस्टर त्रिलोकी ?? ये कैसे हुआ ???
जवाब देंहटाएं" अगर फतेह हार गया तो " कैसे , आपकी झूठी खबरों से ??
"" पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष श्री गौरीशंकर बिसेन शहडोल में प्रवास पर थे।"" आप कल को खुद को भी पिछड़ा कह देना , सब पिछड़े हैं जो लिख दे खुद ही की मैं पिछड़ा वो पिछड़ा , चाहे संवैधानिक तौर पे वो पिछड़ा जाति का हो या ना हो ??
आपकी झूठी खबर आपके हिंदी लेखन की तरह है काश आप स्कूल गए होते तो अच्छे से और पढ़ते तो कमसे कम झूठी खबर की हिंदी भाषा तो अच्छी होती , अति शर्मनाक की आप झूठी खबर फैलते हैं
"इसके बावजूद भी "स्वतंत्रकमेटी" नामक प्रबंधन आत्महत्या करने को मजबूर है..."" कुछ भी फैलते हो आप तो भाई मेडिकल ह्रदय रोग की समस्या को आप कोई भी नाम देदो ??
क्योंकि सतत-संघर्ष ही स्वतंत्रता की गारंटी है बिल्कुल सही बात और शुतुरमुर्ग की तरह आप अपना मुंह फोटो कॉपी की आपकी पाताल लोक जैसी दुकान में छुपा कर त्रिलोकी खुद को बता कर टाटा एयर इंडिया का मोनो चुराकर ट्रेडमार्क नियमों का उल्लंघन करते हुए बिना लाइसेंस के चले जा रहे हैं ब्लॉगर बता कर खुद को, तो संघर्ष करना पड़ेगा की एक ब्लॉग बना देते हैं हम भी ताकि आपके फर्जी ब्लॉग और झूठी खबरों का जवाब आपको मिल सके क्या नाम रखें उस आश्रम का ??? बता त्रिलोकी ??
अगर मंथन और चिंतन पैदा हो रहा है तो अच्छी बात है प्रायश्चित भी होना अच्छी चीज है त्रुटियों की तरफ ध्यान आना भी अच्छी चीज है
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