बातें...
जो समझ में
नहीं आती।
आज समाचार पत्र में जो प्रकाशन हुआ है उसे लेकर भ्रम की स्थिति बन जाती है कि सरकार जो करती है और सरकार जो बताती है उस में अंतर क्यों होता है...?
इसी प्रकार की एक खबर आज जनसत्ता में देखी गई कि न्यायालय मैं सरकार ने कहा कुछ और है और जमीन पर
कुछ और हो रहा है इन परिस्थितियों में आम नागरिक के लिए विशेष तौर से हमारे जैसे आदिवासी क्षेत्र के नागरिकों के लिए स्वतंत्र निर्णय कर पाना बड़ा मुश्किल होता है तो क्या इसी को राजकाज कहते हैं...?
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