नेता मानते हैं नहीं,
जनता तो मजबूर है..
शहडोल में ऐतिहासिक बाणगंगा मेला में तमाम उहापोह के बाद अंततः मेला न लगाने की बात कही गई ।किंतु सही समय पर सही निर्णय न लिए जाने से बाहर के व्यापारी शहडोल मेला में दुकान लगाने को आ गए। और ना चाहते हुए भी मेला लग गया । जिससे बाणगंगा मेला का एक तरफ औपचारिकता पूरी हुई तो दूसरी तरफ को कोविड-19 के लिए प्रतिबंधात्मक प्रोटोकोल के आदेश जमीनी धरातल पर लगातार फेल होते रहे ।और वह इसलिए हुआ क्योंकि जनमानस में यह धारणा प्रबल होती गई कि जब राजनीतिज्ञ अपने कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए किसी प्रोटोकॉल का कोई पालन नहीं करते हैं तब कोविड-19 महामारी सिर्फ व्यापारियों के लिए भयावह स्थिति क्यों बन गई ....?क्या राजनेताओं को कोविड-19 का वायरस छूट देता है ....?
इस भ्रम के वातावरण पर अंततः जनमानस में स्पष्ट दिखाई दिया जब लोकज्ञान से चलने वाला परंपरागत
वर्षों का ऐतिहासिक बाणगंगा मेला लगातार तीसरे दिन सफलता से चला और मेले की औपचारिकता पूरी करता हुआ दिखा। मजे की बात यह रही कि बिना पुलिस और प्रशासन की सहायता के भी यह मेला बिना किसी विवाद के चलता दिखा ।
रविवार को इस मेले की झलक कुछ इस प्रकार देखी गई और अंततः प्रशासनिक अधिकारियों ने अपनी औपचारिकता पूरी करने मेले को बंद कराने के लिए भी पहुंचे ।किंतु राजनेताओं पर यदि प्रोटोकॉल उल्लंघन के मुकदमे दर्ज किए जाते तो शायद जनता में सकारात्मक संदेश चाहता और वे स्वेच्छा से महामारी से बचाव का अनुपालन करते क्यों फिलहाल शहडोल में कलेक्टर के आदेश के बाद भी नहीं होता दिखा।
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