सोमवार, 20 दिसंबर 2021

शिकायत की हुई घर वापसी..? (त्रिलोकीनाथ)

तो.. पारदर्शी-भ्रष्टाचार से


अभिभूत हो रहा है आदिवासी विभाग ...?

 (त्रिलोकीनाथ)

जब से पूर्व मुख्य न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट, सांसद रंजन गोगोई ने अपने इंटरव्यू में कहा है कि भ्रष्टाचार को लोगों ने स्वीकार कर लिया है तब से हमने भी प्रयास किया है कि भ्रष्टाचार समाज में पारदर्शी रूप से प्रकट होना चाहिए ।ताकि पता चल सके कि "दूध में पानी कितना है और दूध कितना है" आपकी इच्छा है आप दूध पिए नहीं तो पाने वाले दूध को आप पीने से मना करने का अपना मौलिक अधिकार प्रकट कर सकते हैं।

 कुछ इसी अंदाज में जब शहडोल आदिवासी विभाग में अपने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर पूर्व सहायक आयुक्त तृतीय वर्ग कर्मचारी एमएस अंसारी नैतिकता का नकाब ओढ़ कर उस चर्चा से हटने लगे जो उनके कार्यकाल में बड़े भ्रष्टाचार के रूप में छोटे से सिर्फ 8 करोड़35लाख  रुपए के रुपए के भ्रष्टाचार  के घोटाले के रूप में फेमस हुई तो हमने उन्हें धैर्यता दिया कि वे बैठे,  भ्रष्टाचार समाज में स्वीकार्य हो चुका है और भी हमारी चर्चा में पारदर्शिता के रूप में बैठे भी रहे।

 कुछ इसी तर्ज पर उनके कार्यकाल का गैर कानूनी तरीके से आहरित किया गया और फिर पारदर्शी तरीके जैसीहनगर के पांडे शिक्षा समिति को भ्रष्ट तरीके से वर्षों तक लंबित रहे करोड़ों रुपए का भुगतान के मामले की जांच


जब शहडोल में अपनी चींटी चाल से चलते हुए आई तो उसे आदिवासी विभाग के अंसारी जी के वर्षों के मित्र मंडली के बाबू लोग जांच प्रक्रिया पर लीपापोती करने के लिए संलग्न हो गए। और नतीजतन वरिष्ठ दलित नेता मनमोहन चौधरी की की गई शिकायत को कथित तौर पर श्री चौधरी द्वारा वापस ले लेने के साथ निराकरण कर दिए जाने की चर्चाएं पारदर्शी होने लगी।

न्यायपालिका ने वापसी की इजाजत नहीं दी 

 लेकिन इतिहास बताता है शहडोल में सर्व शिक्षा अभियान के डीपीसी श्री मदन त्रिपाठी की एक पिद्दी सी शिकायत पर जिला महिला समन्वयक श्रीमती त्रिपाठी को ट्रेन यात्रा में गलत वर्ग की यात्रा भुगतान लेने पर अंततः शहडोल न्यायपालिका ने उन्हें 4 वर्ष की सजा सुना दी। कहते हैं डीपीसी ने यह समझते हुए कि शिकायत कि घर वापसी उनका मौलिक अधिकार है.. प्रयास किया की वह लगभग यात्राओं में आम हो चुकी पिद्दी सी यात्रा भ्रष्टाचार की शिकायत वापस ले ले... किंतु क्योंकि मामला 420 से जुड़ा था न्यायपालिका ने शिकायतकर्ता के  डीपीसी श्री मदन त्रिपाठी के शिकायत को इस आशय से कहकर वापस नहीं लेने दिया की 420 का भ्रष्टाचार शायद महान भ्रष्टाचार है इसलिए शिकायत की घर वापसी नहीं होगी और उन्हें याने कथित नाममात्र के भ्रष्टाचार के लिए ना सिर्फ जिला महिला समन्वयक के पद से हटना पड़ा बल्कि 4 वर्ष का दंड से भी अपमानित होना पड़ा...।

 किंतु आदिवासी विभाग में दलित नेता पर शायद यह प्रावधान लागू नहीं होता अगर वर्षों से भ्रष्टाचार के लिए लगभग पदस्थ हुआ  तृतीय वर्ग कर्मचारी जैसे अपने लक्ष्य पूर्ति के लिए गैर कानूनी तरीके से सहायक आयुक्त आदिवासी विभाग जैसे पद पर पदस्थ हुआ और पांडे शिक्षा समिति को करोड़ों रुपए का गैर कानूनी भुगतान किया, याने 420 की गई; शायद इसीलिए कथित तौर पर दलित नेता श्री मनमोहन चौधरी के नाम पर शिकायत वापसी होने तक उच्चस्तर से आई जांच की प्रक्रिया को कई दिनों तक लटका कर रखा गया। अंततः पारदर्शी भ्रष्टाचार पारदर्शी तरीके से फिलहाल घर वापसी के सिद्धांत पर लंबित है। 

क्योंकि मामला न्यायपालिका तक नहीं पहुंचा, "तो बड़े-बड़े शहरों में छोटी मोटी बातें होते ही रहती हैं"; शायद पूर्व चीफ जस्टिस आफ इंडिया सांसद रंजन गोगोई इसी प्रकार के अनुभव की निष्ठा से भ्रष्टाचार को समाज कि स्वीकारता को स्वीकार किए थे और कोई बात नहीं है...।


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