शनिवार, 13 नवंबर 2021

हबीबगंज स्टेशन अब होगा आरकेआर

हबीबगंज बना आर.के.आर



तो डी.एस.आर शहडोल क्यों नहीं हो सकता...?


"हबीब "उर्दू शब्द का हिंदी अर्थ होता है मित्र, प्रेमी, प्रिय, दोस्त, प्यारा.. ऐसे लोगों की बस्ती का नाम रहा होगा हबीबगंज। यहां कुछ मित्र कुछ दोस्त और प्यारे लोग रहते रहे होंगे, इस पर गांव का नाम पड़ गया हबीबगंज। क्योंकि वहां रेलवे स्टेशन बना, इसलिए रेलवे स्टेशन का नाम पड़ा "हबीबगंज रेलवे स्टेशन "।अगर कोई बुराई थी उर्दू होना उसका अभिशाप था तो हिंदी में उसका नाम बदल दिया जाना चाहिए था, "प्यारा रेलवे स्टेशन" जो वास्तव में पूरे भारत में सबसे प्यारा स्टेशन बन रहा है.., लेकिन चुनाव का मौसम है विशेषकर उत्तर प्रदेश में हिंदू वोट बैंक को ध्रुवीकरण किया जाना है तो वोट का धंधा है... उर्दू शब्द से नफरत और आदिवासियों से प्रेम के उत्थान के कारण "हबीबगंज रेलवे स्टेशन" का नाम अंततः आदिवासियों की वोट बैंक की ताकत से बदल गया है। नाम हो गया है रानी कमलापती रेलवे स्टेशन याने आर के आर। प्रधानमंत्री जी स्वागत में 50 करोड़ रुपए प्रदेश सरकार के आदिवासी बजट से खर्च करने की गारंटी के साथ आदिवासियों के स्वाभिमान के रूप


में "रानी कमलावती रेलवे स्टेशन" का नामकरण भी करेंगे। मध्यप्रदेश शासन की आदिवासी हितैषी इस सोच को तत्काल हमारे गृह मंत्रालय ने अनुमति भी दे दी है । 

तो हमें भी थोड़ा सा क्षेत्रीय  लालच पैदा हो गई क्योंकि सोचने में कुछ लगता नहीं इसलिए सोचे....  मध्यप्रदेश का संभवत एकमात्र आदिवासी संभाग शहडोल के मुख्यालय के रेलवे स्टेशन का नाम दृष्टिकोण में अगर हम सोचे कि आदिवासियों नेताओं को हम कैसे याद करें तो शहडोल रेलवे स्टेशन के लिए दो विकल्प हैं लंबे समय तक सांसद रहे दलपत सिंह के नाम से रेलवे स्टेशन शहडोल का नामकरण हो अथवा लंबे समय तक सांसद रहे दलबीर सिंह के नाम से रेलवे स्टेशन का नामकरण करके आदिवासी संभाग मुख्यालय शहडोल के रेलवे स्टेशन का नामकरण हो सकता है। इससे आदिवासी स्वाभिमान की भावना को जागृत भी किया जा सकता है किंतु इनमें विवाद होगा।

क्योंकि किसी एक नाम से ही यह स्टेशन हो सकता है तो सबसे सुंदर जैसे आज आजमगढ़ में गृह मंत्री अमित शाह ने सूत्र दिया समाजवादी पार्टी के (JAM)जाम से भारतीय जनता पार्टी के (JAM)जाम को लड़ाया ताकि चुनाव का कॉकटेल और वोट बैंक का फैन निकल सके। उसी तर्ज पर डिजिटलीकरण की दुनिया से शहडोल का नाम डी एस आर किया जा सकता है इससे डी एस  का मतलब दलपत सिंह भी होगा और दलवीर सिंह भी


दोनों ही हमारे सर्वमान्य  सांसद वर्षों वर्ष तक रहे दलवीर सिंह जी राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में केंद्रीय राज्य मंत्री रहकर शहडोल को गौरवान्वित किए थे और भी उनके कई गौरवशाली कार्य किए थे। जिसे शहडोल की आदिवासी समाज के स्वाभिमान से जोड़कर देखना चाहिए किंतु इससे एक बुराई पैदा हो सकते हैं स्थानीय नेताओं का स्वाभिमान जागृत हो सकता है शायद यही कारण है कि उनके नाम से कोई आदिवासी स्वाभिमान को नहीं जगाया जाएगा...?

 जैसे शहडोल के मेडिकल कॉलेज को दलपत सिंह के नाम से नामकरण नहीं किया गया। जबकि सब जानते हैं कि सरस्वती स्कूल में r.s.s. के किसी एक कार्यक्रम में तत्कालीन गृह मंत्री और प्रभारी मंत्री उमाशंकर गुप्ता के किसी तनाव के कारण दलपत सिंह परस्ते का ब्लड प्रेशर हाई हो गया था और उन्हें चिकित्सा सुविधा प्रॉपर नहीं मिली शहडोल में, इस कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। तब दोनों नेता एक साथ निकले थे सरस्वती स्कूल से और कटनी रोड में प्रभारी मंत्री को बीस पचीस किलोमीटर में ही पता चल ही गया रहा होगा कि दलपत सिंह परस्ते जी ब्लड प्रेशर हुआ है उनको ब्रेन हेमरेज हो गया , किंतु तत्कालीन प्रभारी मंत्री लौटकर भी दलपत सिंह जी को नहीं देखें और ना ही उन्हें चिकित्सा सुविधा की समक्ष में निगरानी की है  शायद सरस्वती स्कूल का तनाव ज्यादा रहा होगा और भी नाराज रहे होंगे। बहरहाल.. अंततः उनकी मृत्यु हो गई ।अंदरूनी सूत्र मानते हैं कोई कहासुनी हो गई थी। जिससे उनका ब्लड प्रेशर बढ़ गया था। तो क्या कोई अपमान  को स्वाभिमान और सम्मान में बदलने का रास्ता अगर शहडोल मेडिकल कॉलेज का नाम दलपत सिंह परस्ते मेडिकल कॉलेज रख दिया जाता तो तो शायद कुछ मुआवजा माना जा सकता था । उस घटना के लिए किंतु ऐसा नहीं हुआ।

 अब जबकि आदिवासियों के उत्थान और स्वाभिमान तथा सम्मान के लिए 50 करोड़ रुपए घोषित तौर पर और अघोषित तौर पर पता नहीं कितना खर्च करके हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर  रानी कमला पती के नाम पर किया जा रहा है तो यूं ही आदिवासी क्षेत्र के होने के नाते हमें भी अपने आदिवासीपन के स्वाभिमान की याद आ गई.. इसलिए यूं ही लिख डाला की  काश शहडोल रेलवे स्टेशन का नाम दोनों नेताओं के स्मृति के रूप में डी एस याने दलपत सिंह और दलवीर सिंह के नाम पर कर दिया जाना चाहिए। दलवीर सिंह वर्तमान भाजपा सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह के पिता भी थे ।देखते हैं शायद आदिवासी संभाग शहडोल मुख्यालय में आदिवासी नेताओं की स्मृतियों में कोई नया नवाचार किया जाए...


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