तालाबों की रक्षा में मैं ब्लैकमेलर नहीं बन पा रहा...2
अयोग्यता, कर्तव्यहीनता,
भ्रष्टाचार का प्रमाण पत्र है मोहनराम ट्रस्ट का स्रोत तालाब....?
(त्रिलोकीनाथ)
अगर मैं कलेक्टर होता, तो निश्चित तौर पर पदोन्नति से होता.. डायरेक्ट आईएएस होता तो भी मुझे एसडीएम-गिरी की सेवाएं देनी पड़ती ।तो मैं शहडोल के मोहनराम तालाब की तरह उसके स्रोत तालाब में किसी तरह सफाई करवाता और
जल निगम वालों से कह कर आर ओ का पानी इस तालाब में भरवाता है, जैसे तत्कालीन कलेक्टर ने जनहित मे सराफा नदी जल शुद्ध प्लांट से नागरिकों को सप्लाई होने वाले पानी उसे सूखे मोहनराम तालाब को भरवाने का काम किया। आखिर टेक्स
तो शहडोल के नागरिकों से या टैक्स राजश्व आता ही है तो क्या बुरा होता है...?
किन्तु दोनों तालाब भरे होते।
यही शायद भविष्य में शहडोल नगर के तमाम तालाबों का लक्ष्य भी होगा.. क्योंकि पुरानी कहावत है यदि नर्तकी बहरी हो, और राजा अंधा हो... तो नृत्य कैसा भी हो, वह नाचती रहे.. सब ठीक है।
आप इसे अपने स्थानीय भाषा में गुनगुना सकते हैं "आंधर राजा, बहिर पतुरिया; नाचे जा सब ठीक है.." ।
शहडोल नगर के तालाबों मे मोहनराम तालाब की रक्षा इसलिए भी हो पाई क्योंकि बिहार का छठ पर्व मनाने वाला बिहारी समाज शहडोल में भी रहता है और वह काफी समय तक शहडोल पालिका परिषद में सत्ता पर कब्जा भी बनाए रखा ।भ्रष्टाचार,बिहार की संस्कृति में सबसे बड़ा शिष्टाचार है इसलिए उसकी चर्चा अनुचित होगा चाहे मोहनराम तालाब को दो टुकड़े में
बांटकर एक टुकड़ा शहडोल नगर में सरोवरों में सबसे पवित्र जल का और दूसरा टुकड़ा स्रोत तालाब शहर के मल मूत्र और गंदगी प्रदूषण का सर्वाधिक अपवित्र जल भंडार क्यों न बना दिया जाए....?
कोई इसे देखने वाला शायद इसलिए नहीं है क्योंकि इसे सब मिलकर लूट रहे हैं। जैसे सिंधी समाज, जैसे मुसलमान समाज आदि-आदि अलग अलग व्यक्ति समूह में ऐसा मानकर चलें। यह तो एक नजरिया है,आप अपने नजरिए से भी देख सकते हैं। सोचने में कुछ नहीं लगता।
लेकिन सच्चाई यह है कि अगर छठ का सूर्य मोहनराम तालाब में उगता है और उसे सर्वाधिक साफ सुथरा तालाब बनाने का काम होता है तो शहर के बाकी तालाब क्या कुत्ता-घसिटी के लिए हैं ....?
इन तालाबों को शासन ने नहीं बनाया और ना ही प्रशासन ने उसे बनाने में मदद की, हां उसे नष्ट करने
में, उसे गंदा करने में शासन और प्रशासन प्रतियोगिता करती रही है। अभी तक तो मरते हुए तालाबों के प्रमाणित होने से यही लगता है।
एक तरफ प्रधानमंत्री जलवायु सम्मेलन में भाग लेकर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में समुचित कदम उठाने का शपथ लेते हैं उसमें तालाबों की, तालाबों के आसपास वृक्षारोपण की भी अहम भूमिका होती है । चाहे वह सागर के राम सेतु निर्माण पर राम के साथ गिलहरी की समुद्री जल सुखाने की भूमिका क्यों ना हो। तो फिर शहडोल के विरासत में प्राप्त तालाबों के प्रति शासन और
प्रशासन की प्राथमिकता
शून्य क्यों दिखती है। क्या वह भी आरक्षण के कोटे से सरकारी तनखा उठाने वाला समाज बनना चाहता है। अन्यथा प्रशासनिक अमला खासतौर से उच्च अधिकारी की कर्तव्य परायणता तालाबों के प्रति सजगता क्यों नहीं दिखती....? यह बड़ा प्रश्न चिन्ह है।
आज हम सिर्फ मोहनराम तालाब के स्रोत तालाब पर चित्रण करेंगे क्योंकि इस श्रंखला को अनवरत चलाना है। क्योंकि हम तालाबों की रक्षा करने में शासन और प्रशासन को ब्लैकमेल नहीं कर पाए। और शहडोल के करीब 365 तालाब लगातार नष्ट होते जा रहे हैं..
शहडोल के शुरुआती दौर में जहां आज सिंधी धर्मशाला बना है सिर्फ वहां पर एक सिंधी पाठशाला हुआ करता था शायद रिफ्यूजीओं/ शरणार्थियों के संरक्षण में शहडोल जिले में यही एक बड़ा कदम उठाया गया था। अब शरणार्थी बनकर आए सिंधी एक समाज बन गया और वह उस श्रोत तालाब की अतिक्रमण करके उसे नष्ट करके उस पर शहर के मल मूत्र को बड़ा स्टोरेज टैंक बनवाने एक चौकीदार की भूमिका निभा रहा है.....ऐसा प्रतीत होता है। अन्यथा सिंधी समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रकाश जगबानी भी नगरपालिका की 20 वर्षीय सत्ता में वह भी 5 वर्ष तक सत्ताधीश रहे हैं। तो अगर पूरा का पूरा समाज ही चिंतन मंथन करके तालाब को नष्ट कर रहा था तो मुसलमान ईदगाह समाज के रूप में क्यों ना इसे नष्ट करें....? वह तो हजारों साल पहले भारत आ गए थे ....?
ऐसी प्रतियोगिता अगर समाज के तौर पर प्रचलित हो गई थी तो बाहर से आए नागरिक व स्थानीय नागरिक इस तालाब को अतिक्रमण करने में अपनी अपनी भूमिका "राम की गिलहरी" की तरह निभाना चालू कर दिए.. अगर राम-राज्य नाम की सत्ता है और उसे समुद्र सुखाना है तो तमाम गिलहरियां एकत्र होकर मोहनराम तालाब के स्रोत तालाब को अंततः शहर का सर्वाधिक प्रदूषण मल मूत्र युक्त वकायदे नाला डालकर बनाने का काम किया। क्या संबंधित प्रशासनिक अमला स्वयं को इस मामले में
कर्तव्य पारायण का दिखाता हुआ प्रमाणित हुआ है...?
तो शपथ लेकर कोई भी राह चलता नागरिक, प्रमाणित कर सकता है कि नहीं संबंधित शासन और प्रशासन के लोग इसे सिर्फ नष्ट करने का काम किए हैं ।क्योंकि यही उसका वर्तमान प्रमाणित सत्य है।
देखेंगे कि, अनवरत तालाबों की श्रंखला में क्या इस तालाब के लिए हम ब्लैकमेल करने जैसा कोई प्रयास कर पाए...? ताकि तालाब बचाया जा सके। क्योंकि छठ का सूर्य अगर इस तालाब में भी उगाया जाता तो शायद यह तालाब भी उतना ही पवित्र जल से भरा होता जितना के मोहनराम तालाब में कीमती करोड़ों रुपए का पानी भरा गया है.......... ----------(अनवरत..3..)
जिला प्रशासन एवं नगर पालिका प्रशासन एवं नागरिकों के प्रयास से इस तालाब को भी अतिक्रमण मुक्त एवं सौंदर्य करण युक्त एवं शुद्ध जल प्राप्त हो सकता है सहयोग अपेकश्चित है।
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