पोस्ट-कोविड आत्महत्या में देंगे आर्थिक मुआवजा
महामारी में आत्महत्या मौत को मिली पहचान
(त्रिलोकीनाथ)
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कम से कम यह बात करोड़ों भारतीयों में राहत देने वाली साबित हुई है की महामारी में हुई मौतों को महामारी की मौत के रूप में स्वीकार तो रहे हैं। अन्यथा जिस प्रकार से सरकारी तानाशाही महामारी को लेकर मटरगश्ती करती दिख रही थी उससे लगता था वह इसे जल्द भूलने वाली कहानी के रूप में याद रखना चाहती। उससे जो प्रभावित हुए हैं जिनका परिवार शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और एक भारतीय नागरिक होने के नाते जितना प्रताड़ित
इतना महसूस कर रहा था उसमें कुछ मरहम लगाने का काम सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान की व्यवस्था के तहत अपने दायित्वों का प्रदर्शन किया है। और यह लगता है कि भारत में कानून जिंदा है ,इस महामारी के संबंध में ।
बहरहाल उन लोगों को आर्थिक राहत कितनी मिलेगी यह महत्वपूर्ण तो है ही किंतु इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है की आत्महत्या के मामले में जो उनकी मृत्यु को पहचान नहीं मिल पा रही थी और मृतक व्यक्ति का अपमान भी हो रहा था, इस महामारी की मौत में उसी के साथ और उनके परिवार के साथ उच्चतम न्यायालय ने संविधान सम्मत कानूनन मान्यता दी है। जो इन्हें गर्व से सर उठा कर मृत्यु के कारणों पर बोलने की आजादी देंगे।
अब राज्य सरकारों को अपने स्तर पर यह तय करना होगा कि क्या उन्होंने कोविड-19 अथवा पोस्ट कोविड-19 प्रभावित परिवारों के लिए जो राहत निर्देश प्रदान किए हैं क्या सुप्रीम कोर्ट की इस गाइड लाइन पर चलते हुए सभी हितग्राहियों को संवेदनशील तरीके से चिन्हित करते हुए लाभ दिया जाएगा...। यह देखने वाली बात होगी फिलहाल हमें अपने देश के आजाद संविधान पर गर्व है कि उसने महामारी की मौत को पहचान दी अन्यथा आज के ही अखबार में इस महामारी से जन्मे अरबों खरबों रुपए की पीएम केयर के मामले में यह कहना कि यह सरकारी कोष नहीं है तमाम प्रकार की सरकारी पद में बैठे लोगों की पतित मंशा को प्रमाणित तो करता ही है।
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