न्यायालय में नहीं मिली राहत
लाश के सौदागरों को...?
मामला देवांता
प्राइवेट हॉस्पिटल का
(आन द टेबल)
संवेदनाओं का धंधा का कारोबार जिस बेशर्मी से सदी की महामारी में भारतीय जनता पार्टी की मोदी सरकार में तेजी से फैला और विकसित हुआ जिस पर ना कोई नियंत्रण रहा और ना ही कोई निवारण ।ऐसी घटनाओं के उदाहरण भारत के बड़े शहरों की अस्पतालों में आम बात है जहां मानवीय संवेदनाओ की हत्या आमआदमी की खून चूसने की कुछेक अस्पताल मशीन बना दिए गए हैं। और ऐसे चिकित्सा संस्थान इस बात की प्रतियोगिता करते है कि कौन कितना आम आदमी को संवेदना का भय दिखाकर उसे लूटता है।
इस कारोबार में ब्लैक मनी होल्डर्स पूजीपतियों ने फाइनेंसर्स में और बैंकर्स भी बड़ा बड़ा करोड़ों रुपए का लोन बांटते हुए बड़ी-बड़ी किस्तों के जरिए चिकित्सा क्षेत्र में लगे हुए लोगों को आम आदमी को लूटने की विधि को प्रोत्साहित करते हैं। और यह प्रोत्साहन जब अपनी सीमा पार कर जाता है तो कैसे गणेश जी को दूध पिलाने वाले भ्रम की तरह इस रेमडीसीबिर इंजेक्शन लाखों रुपए में ब्लैक में मिलता है, कैसे पुलिस व प्रशासन इस लाखों करोड़ों रुपए के कारोबार में किसी दिहाड़ी मजदूर को टारगेट करके उसे मुलजिम ठहरा कर जेल में ठूंस लेती है। और चिकित्सा क्षेत्र के बड़े-बड़े डकैतों को बचाने का काम करती है..? यह भी भारत में कोरोनावायरस के कार्यकाल हमने नंगा नाचते देखा है ।
शहडोल जैसे आदिवासी क्षेत्र में जहां चिकित्सा का कारोबार अपनी नंगापन साथ के प्रसव में प्राइवेट सेक्टर में प्रारंभ हो रहा है, यह पहली बार देखा है....। जब पुलिस और प्रशासन ने ईमानदारी का परिचय देते हुए आम आदमी के पक्ष में खड़े होकर चिकित्सा क्षेत्र में स्थापित डकैतों को कटघरे में खड़ा किया है। फिर भी चिकित्सा के आरोपित दरिंदे कैसे न्यायालय मे अपना पक्ष रखते हैं और बाहर निकलने का काम करते हैं ताकि फिर से वहीं अमानवीय काम को अंजाम दे सकें। जिसे वे "पवित्र-पेसा" के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
इसलिए देवांता हॉस्पिटल में लाश को गिरवी रख ब्लैक-मेल कारोबार में यदि कोई कार्रवाई हुई है तो उसकी अगामी चरणों पर नजर रखना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं के लिए पुनरावृति न हो सके; बार-बार याद करना जरूरी है ताकि आदिवासी अंचल में कम से कम लाशों को ब्लैकमेल का जरिया ना बनाया जा सके।
अगर शहडोल में रेमदेसीविर से जुड़े सभी अपराधियों को, सिर्फ दिहाड़ी मजदूरों को नहीं जेल में ठूंसा जाता तो शायद लास गिरवी रखकर कोई हॉस्पिटल संवेदनाओं को निचले स्तर पर हत्या का प्रयास नहीं करते।
आमधारणा मे अभी भी यह जस्टिफाइड करना बाकी है की कैसे दिहाड़ी मजदूर मेडिकल कॉलेज जैसे संस्थान में रेमेडी शिविर इंजेक्शन ब्लैकमेल कर रहे थे...? और कौन से हॉस्पिटल कौन से डॉक्टर इस पूरे गंदे कारोबार में शामिल थे...? कहते हैं लाश को गिरवी रखने वाला हॉस्पिटल भी उसमें शामिल था, यह जन चर्चा का विषय है। बाकी सरकारी रिकॉर्डो में, जिला चिकित्सालय की फाइलों में इसके तमाम सबूत अभी भी चीखना चाहते हैं।
बहरहाल एक ही सही जो पकड़ा गया न्यायालय उसको किस नजर से देखती है आइए हम देखें... जिसमें दोषी को अग्रिम जमानत नहीं मिली। किसने, क्या कहा... न्यायालय के आदेश में स्पष्ट हैं ।अभी तक बस इतना ही....
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