बुधवार, 27 जनवरी 2021

अपना-अपना लाल-किला अपनी-अपनी धर्म-ध्वजा (त्रिलोकीनाथ)

 

मामला आदिवासी संभाग के आदिवासी विभागों का

अपना-अपना लाल-किला


अपनी-अपनी धर्म-ध्वजा

--त्रिलोकीनाथ--

पूरा का पूरा नकली लालकिला छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह ने तब के मुख्यमंत्री गुजरात नरेंद्र मोदी के लिए बनवा दिया था ताकि वे रिहर्सल कर सकें उन्हें अब लाल किला से झंडा फहराना है, क्योंकि लालकिला मैं जिस का कब्जा होता है वही देश का हुक्मरान बनता है। यह एक सोच है।जब देश आजाद नहीं हुआ था तब कहते हैं इस लालकिला के अंतिम शासक बहादुर शाह जफर को अंग्रेजों ने अंततः रंगून में ले जाकर दफना दिया था। यह अलग बात है कि कुछ लोगों ने उनकी कब्र को वापस लाया था ऐसी कहानियां भी है।

 तो बात नकली लालकिला से तब के मुख्यमंत्री नरेंद्रमोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद असली लालकिले में आकर लालकिला में झंडा फहराने का गौरव हासिल करते हैं। लालकिला से झंडा फहराना कब्जा की भी दास्तान है ऐसा आईकॉन थिंक-टैंकरो ने किया.. जिन्हें लालकिला जीतने की अपनी सोच पर आनंद आता है। इसी सोच को लेकर कोई सिरफिरा किसान आंदोलन की आड़ में कुछ झंडे धर्म के तो कुछ किसानों के लहरा आता है। यह भी अलग बात है यह सिख नुमा नकाब पहने दीप सिंह सिद्धू नामक कलाकार सत्ता देशों के साथ अपनी कई फोटो में देखा गया तो इस नाटक-नौटंकी वाले सिद्धू को किसने हायर किया था। यह जांच से पता चलेगा, अगर जांच होती है तो... और अगर नहीं होती है तो देशद्रोह और शहीदों की मौत पर जश्न मनाने वाला पत्रकार का नकाब पहने कोई अर्णब गोस्वामी की भी कोई जांच नहीं होती, यह एक व्यवस्था है...?

 जितना लालकिला से झंडा फहराना  महत्वपूर्ण था जितना कि राजपथ में परेड करना... तो फिर लालकिला को लावारिस किसके इशारे पर छोड़ दिया गया...? चाहे वह किसी निजी हाथों में क्यों न सौंप दिया गया रहा हो या फिर सिरफिरे नकाबपोश किसान आंदोलन को हिंसक बनाने के प्रयास करने वाली मनसावालों को लालकिला में पुलिस चुपचाप बैठ कर क्यों तमाशबीन बैठी रही। तो इस व्यवस्था के पीछे छुपी हुई ताकत या जिसे कुटिल राजनीति भी कहा जाता है, उसका चाणक्य कौन था....? यह जांच से शायद सामने आ भी जाए अथवा उसे सफलतापूर्वक छुपा भी दिया जाए, दोनों संभव है...।

 क्योंकि यह आज की राजनीति और राजनीतिक  पहचान बनती जा रही हैं, क्योंकि उन्हें शर्म नहीं आती।

इसलिए की यह आदिवासी क्षेत्र है यहां गंगा उल्टी ही बहती है यह बात इस घटना से प्रमाणित होती है। तो अमितसिंह नामक शिक्षक वापस अपनी मूल सेवा में भेज दिए जाते हैं तो क्या इससे यह बात खत्म हो जाती है आदिवासी विभाग के लालकिला मैं जो झंडा अमितसिंह ने फहराया है वह कोई अपराध नहीं था, यह व्यवस्था है तो सवाल यह


है कि कितने इस प्रकार के झंडा-धीशो को वापस मूल विभाग में भेजा जाएगा...? सोहागपुर विकासखंड के बीईओ चंदेल के अंडर में कई लोग अपना अपना झंडा गाड़े हैं और चंदेल अपने निहित भ्रष्टाचार की दुकान के लिए इन्हें संरक्षण भी दे रहे हैं। तो क्या कमिश्नर के आदेश को खारिज करने वाले उपायुक्त कार्यालय अपने अधीनस्थ चंदेल साहब के लालकिला को चुनौती दे सकते हैं .....? 

यह प्रश्न इसलिए भी खड़ा होता है क्योंकि खुद चंदेल गैरकानूनी तरीके से अपना झंडा फहरा रहे हैं। यह अलग बात है कि उनका धर्म-ध्वजा भ्रष्टाचार कि उन जातियों से और समाज से पैदा होता है जिसमें सिस्टम स्वयं में स्थिरता पाता है। बहरहाल अमितसिंह के ऊपर लगे दाग अमिट हो गए थे  या फिर नीलामी में मिला आदेश की कीमत बढ़ा दी गई थी..? क्योंकि सहायक आयुक्त कार्यालय में बैठा हुआ सोहागपुर मंडल संयोजक को सोहागपुर ब्लॉक में कोई काम ना होने की वजह से सहायक आयुक्त कार्यालय में जिले की जिम्मेदारी चाहे वह भ्रष्टाचार के झंडा फहराने की हो या फिर सिस्टम को बनाए रखने की हो, के लिए छोड़ रखा गया है तो फिर गोहपारू जैसे आदिवासी अंचल में मंडल संयोजक की कोई आवश्यकता दिखती तो नहीं थी ।और फिर क्या कारण हो सकता है की कमिश्नर के आदेश को डिप्टी कमिश्नर ने एक सिग्नेचर से हवा में उड़ा दिया....?

 तो यह  भी देखना होगा कि डिप्टी कमिश्नर कार्यालय का नकाब पहनकर कोई सहायक परियोजना अधिकारी स्थाई रूप से डिप्टी कमिश्नर कार्यालय को खेल तो नहीं रहा है...? भ्रष्टाचार जिनका जन्म सिद्ध अधिकार है वे कब तक अपने-अपने लालकिलो में अपने अपने झंडे फहराते रहेंगे या फिर कोई नीतिगत व्यवस्था इन्हें चुनौती भी देगी, यह भी देखना होगा।

 इसलिए भी क्योंकि अगर करोड़ों रुपए के बड़े भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाला सहायक आयुक्त राजेंद्र श्रोति अचानक आदिवासी क्षेत्र से हटाया जाता है तो आखिर किस का झंडा और  किस-किस भ्रष्टाचारियों का धर्म का झंडा आदिवासी विभाग में लहराया जा रहा है। यह भी देखना चाहिए उन्हें भी जो कमिश्नर के आदेश को खत्म कर देते हैं, और उन्हें भी जो सहायक आयुक्त को हटवा देते हैं क्योंकि यह आदिवासी क्षेत्र यहां गंगा उल्टी ही बहती है। कोई अदना सा कर्मचारी शिक्षक जब कोई बड़ा सा पद खरीद लेता है तो उसे नशा लग जाता है विधायकों को खरीदने का सांसदों को खरीदने का और वह उसे अपनी उंगली पर विधायक सांसद सुनना चाहता रहता है जिसकी वजह से उनका भ्रष्टाचार संरक्षित हो क्योंकि भ्रष्टाचारियों का अपना एक धर्म है और धर्म ध्वजा भी जिससे वह अपने लालकिले में फहराए रखना चाहता है....।

 कोई बड़ी बात नहीं है कि कोई बी ई ओ किसी हाईकोर्ट के आदेश को अनदेखा करें तो कोई बी ई ओ सहायक आयुक्त को हटवा दें और कोई सहायक परियोजना अधिकारी डिप्टी कमिश्नर का नकाब पहनकर, कमिश्नर के आदेश को खारिज करते हैं।

 प्रत्यक्षण किम् प्रमाणम,


आदिवासी संभाग के इस व्यवस्था से कि अगर शहडोल में अचानक सहायक आयुक्त हट गया है तो क्या उनको लाभ नहीं मिला जो इस बात पर नाराज थे की अपात्र संविदा कर्मचारियों को नियमित होने में वे बाधा थे.. उन लोगों
  को भी अनुकम्पा नियुक्ति मिलने में आसानी हो सकती है जो अपात्र थे क्या बे भ्रष्टाचार की दुकान चलाने वाले के कर्मचारियों की बड़े बाधक रहे या चिन्हित काम कर रहे थे एक बहुचर्चित मामला 3  बच्चों वाले कर्मचारियों को राहत मिल सकती है

और इन ज्ञात अज्ञात मुद्दों से हटकर सबसे हटकर  सबसे बड़ा कारण करोड़ों रुपए के का घपला उजागर होते होते रह गया। जिसे खंड शिक्षा अधिकारी ने अंजाम दिया था आखिर चंदेलो के अपने लालकिले होते हैं उनके अपने धर्म ध्वजा भी होते हैं जिसे सत्ता के संरक्षण में वे ठहराए रहते हैं अगर आदिवासी क्षेत्र में मुगलिया सल्तनत बरकरार है तो राह और भी आसान हो जाती है

अगर भ्रष्टाचार के पैमाने में नापित हो तो किसी की भी शहडोल परियोजना अधिकारी बनने की महत्वाकांक्षा आसान हो ही जाती है।

तो बंधुओं नेतृत्व विहीन राजनीति के शहडोल आदिवासी क्षेत्र में सब कुछ संभव है क्योंकि एक लोकप्रिय नारा चलता है "मोदी है तो मुमकिन है" नकली लालकिला भी और नकली झंडाधीश भी। रोचक विषय है आगे भी चर्चा करेंगे.....।








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