रविवार, 27 सितंबर 2020

तो ऐसे पहुंचा शहडोल, प्रदेश में पांचवें स्थान पर.. (त्रिलोकीनाथ)

 

-तो ऐसे पहुंचा शहडोल, 
प्रदेश में पांचवें स्थान पर..
-दुनिया में विश्वगुरु बनने से
सिर्फ करीब 13 लाख से पीछे है भारत
(त्रिलोकीनाथ)
प्रधानमंत्री ने अपेक्षा प्रकट की, इसलिए की भी शुरू से दुनिया घूमते रहे प्रचारक के तौर पर । तो उनकी महत्वाकांक्षा में दुनिया का नेता बनना था। बीच में उनके आईटी सेल ने उन्हें विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता बता ही दिया है। तो भारत तो एक सीढ़ी मात्र है, जिसमें वे पैर रखकर ऊपर उड़ने का ख्वाब रखते हैं।
 तो उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र में भारत की सहमति से भी निर्णय होना चाहिए, इसकी चर्चा अंत में करेंगे।
 शुरुआत में हम अपने मातृभूमि की चर्चा करेंगे शहडोल क्षेत्र, जिला कहेंगे तो लोग भ्रमित हो जाएंगे। क्योंकि शहडोल को तोड़कर अलग-अलग नेताओं ने अपने-अपने धंधे की पॉलिटिकल-इंडस्ट्री के "पेटी-कांटेक्टर" बन कर , आदिवासी क्षेत्र को अलग-अलग तरीके से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक शोषण किया।
 किंतु इससे तो शहडोल की अवधारणा की एकता खत्म नहीं हो जाती... और कोरोनावायरस से दर्द का जब रिश्ता होता है तो देखने का नजर, जरा नजदीक का हो जाता है। हमने देखा कि मध्यप्रदेश में शहडोल दिखने के लिए तो कोरोना संक्रमण के मामले में 14 वां स्थान रखता है।
 किंतु वास्तव में देखा जाए तो यह आदिवासी क्षेत्र, शहडोल क्षेत्र मध्यप्रदेश का पांचवा सर्वाधिक संक्रमित क्षेत्र है। अब नेता यानी विधायिका और कार्यपालिका, हमारा प्रशासक वर्क है ना माने तो, ना माने, हम आदिवासी क्षेत्र के निवासी हैं ऐसा ही सोचते हैं । 
तो शहडोल आदिवासी संभाग मध्यप्रदेश का इकलौता संभाग है जहां दलित प्रेम ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को इतना उदारवादी बनाया कि उन्होंने इसे संभाग बनाने के साथ जोरशोर से गोद लेने की घोषणा भी कर दी। याने ब्रांडिंग कर दी। तो गोद लिया हुआ आदिवासी क्षेत्र सर्वसंपन्न, प्राकृतिक संसाधन से भरा पूरा क्षेत्र शहडोल, मध्यप्रदेश का पांचवा सर्वाधिक कोरोना संक्रमित क्षेत्र है ।आंकड़े कुछ ऐसा ही बताते हैं।


 इतनी हालत खराब बिंध्य प्रदेश के रीवा संभाग कि कहींं भी नहीं है। बीसवीं सदी में तब रीवा संभाग का एक जिला हुआ करता था शहडोल जिला, जैसे सतना, सीधी और रीवा जिला तो इन जिलो के आंकड़े को देखिए और फिर शहडोल क्षेत्र के आंकड़े को देखिए। मुख्यमंत्री केेे गोद में विकास की रफ्तार में शहडोल कोरोना महामारी केेे संक्रमण का सर्वाधिक दंश झेेल रहा।
 क्या कोई इसे देख रहा है.... या फिर सुन भी रहा.. समझ तो बिल्कुुल नहीं रहा। क्योंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तीन बार अपनी शहडोल संभाग की यात्रा के लिए सिर्फ इसलिए आने को किया, क्योंंकि उन्हें कांग्रेस के बागी और उनकी भाजपा सरकार के पहले आदिवासी नेता के रूप मेंं बिसाहूलाल ने सरकार बनाने का बड़ा जोखिम उठाया था  और  किसी कोरोना इंडस्ट्री में,  इसे अब कोरोना कहना जरा नाजायज होगा, तो  उन्होंनेे सत्ता पलट कर भाजपा को  सौंपने का काम किया था। अप चुनाव जीतने के लिए भाजपा का दुर्भाग्य था  कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी का निधन हो गया, जैसा कि बिसाहूलाल ने कहा था पूर्व राष्ट्रपति की मौत के लिए,  तो यात्रा रद्द करनी पड़ी। फिर जैसे ही मौका मिला 65 करोड़ केे हवाई जहाज का उद्घाटन बिसाहूलाल के चुनाव के लिए आदिवासी क्षेत्र में हो गया। उन्होंने विकास भी किया है एक मेडिकल कॉलेज भी दिया है जिसे कोरोना महामारी से निपटन का ज्ञान  व्यावहारिक तौर पर  नहीं बताया गया था...,  इसलिए  पूरा का पूरा  आदिवासी क्षेत्र  एक लैब बन गया...।
 हो सकता है  यह शहडोल क्षेत्र के  आदिवासी विकास की यह भी एक  गाथा हो, की शहडोल क्षेत्र मध्यप्रदेश के बड़े नगरों के बाद संक्रमण के मामले में बड़ा योगदान दिया। नजरिया है अब आदिवासी नजरिया तो ऐसा ही होता है।


     
तो चलिए अब प्रदेश और देश , दुनिया में चलते हैं जहां भारत नेेे छह माह के कोरोना महामारी की वर्षगांठ के बाद सिर्फ सात करोड़ टेस्टिंग कर पाया है। जो एक गौरव की तरह प्रदर्शित किया गया है। याने 131 करोड़ भारतीय नागरिकों की टेस्टिंग नहींं की गई। फिर भी उपलब्धि है, क्योंकि भारत भी एक प्रकार का आदिवासी क्षेत्र है। उतना ही पिछड़ापन,  उतनी ही दलित सोच..., जितनी शहडोल के आदिवासी क्षेत्र के हम नागरिकों की है.. क्योंकि उसका विस्तार  बड़ा है  तो बड़ी आदिवासी सोच है ....।



तो इन्हें चिंता संयुक्त राष्ट्र मैं भारत के निर्णायक भूमिका की सता रही है यानी अंतरराष्ट्रीय नेता बनने की ।किंतु दुनिया में हम कोरोना के मामले में सर्वाधिक संक्रमित नागरिकों के राष्ट्र के रूप में गणिती मामलों मेंं स्थापित हो चुके हैं। और हमें इसके लिए कोई शर्म नहीं है...? होना भी नहीं चाहिए..., वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का निर्मल-मन  इसी की घोषणा किया था  कि यह एक दैवी आपदा है ....।
 हो सकता है यह किसी अघोषित लक्ष्य का हिस्सा रहा हो... और लक्ष्य पूर्ति के बाद अब इसलिए हम संयुक्त राष्ट्र में अपने हक्क की बात करते हैं...। करना भी चाहिए , कूटनीति- राजनीति शायद इसेेे ही कहते।
 लेकिन आंकड़े हम जैसे आदिवासी पत्रकारों से झूूठ बोलते हैं, ऐसा लगता है तो, थोड़ा सा समझे, आंकड़े झूठ क्या बोल रहे हैं.....?
 गुजरात में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप और  नरेंद्र मोदी  एक साथ  शायद अंतिम बार एक लाख लोगों की भीड़  इकट्ठा करके  जोर-जोर से तालियां बजवाई थी  दोनों साथ साथ हैं  दोनों नहीं मान रहे थे  कि कोरोनावायरस  कोई एटम बम है चीन हमारा पड़ोसी है  तो जरा देर से  हमको प्रसाद बांटा  और हमने ग्रहण किया  अमेरिका  उसका पड़ोसी नहीं है  तो वहां जल्दी  कोरोनावायरस ने तबाही मचा दी यह अलग बात है कि भारत का पप्पू , पागलों की तरह चिल्लाता रहा  कि कोरोनावायरस से डर कर रहो, सत्ता लूटने के चक्कर में जो वक्त मिले तो वायरस के बारे में भी कुछ करो, भारत को बचाना जरूरी है। लेकिन भारत का प्रधानमंत्री बुद्धिमान थे, उन्हे लगा यह लक्ष्य-पूर्ति में बाधक है.......? इसलिए कई को छोड़ दिया उन्हें काटने के लिए...। 

अमेरिका और भारत  एक साथ चले थे । 33 करोड़  की आबादी वाला अमेरिका 10 करोड़ से ज्यादा कोरोना टेस्ट कर लिया याने करीब 35% अमेरिकी नागरिकोंं की टेस्टिंग किया है अब वह हमसे सिर्फ 12-13 लाख संक्रमित नागरिकोंं की संख्या से ज्यादा है।
 जबकि भारत 5 या 6 प्रतिशत अपनी आबादी की यानी सिर्फ 7 करोड़ नागरिकों की टेस्टिंग कर पाया है। तब वह अमेरिका से करीब सिर्फ 12-13 लाख संक्रमित नागरिकों की संख्या से पीछे है.... अगर अपनी आबादी का 35% टेस्टिंग किया होता तो वह दुनिया का सर्वाधिक संक्रमित राष्ट्र के रूप में  दर्ज होता...

 और इसमें कोई शक नहीं कि जो मोदी सरकार सिर्फ "डिजिटल-डाटा-बेस" पर  सरकार चला रही है..,  उसे  हमारे जैसी  आदिवासी पत्रकारिता की  समझ ना हो....  यानी वह भी अच्छी तरह से सब समझते हैं.. आखिर शिक्षा और दीक्षा में वह हमसे ज्यादा योग्य हैं और अगर भी योग्य नहीं भी हैं, तो "डॉन" की तो गारंटी है कि वह योग्य है अब यह नहीं पूछिएगा कि "डॉन" कौन है...? "डॉन" कभी दिखता नहीं है कोरोनावायरस की तरह.....।
 लेकिन आपदा को अवसर के रूप में समझ रखने वाले लोग  आपदा का निर्माण अवसर के लिए भी करना जानते हैं। शायद इसीलिए ज्यादा से ज्यादा कर्ज लो..., अपने लोगों को  बांटो....  और ज्यादा से ज्यादा घी पियो....।सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और कोरोनाराम कि हिंदुत्व ब्रांड की कार्यप्रणाली मैं ऐसा होता रहता।
 इसलिए चुनाव बहुुुुत जरूरी है सरकार बनाकर ही भारत को निजीकरण के धंधे में बेचा जा सकता है । क्योंकि सत्ता की दुकान मेकअप जा भी जरूरी है , आखिर  सार्वजनिक संपत्तियों को  सस्ते में बेच देना  भी एक विकास है। अपने लोगों को  उपहार देना... ,  "सबका साथ-सबका" विकास किसी  ड्रीम-प्रोजेक्ट का  धरातल में उतरने जैसा है ।

बहराल  कोरोनावायरस देने वाला महान चीन को शायद अगले हफ्ते तक हमारे मोबाइल के स्क्रीनशॉट से बाहर हो जाए...। क्योंकि वह दुनिया की सूची मामलेे में 44 या 45 स्थान पा चुका होगा। तब तक भारत विश्वगुरु कोरोनावायरस से बन चुका होगा। 
सरकारी आंकड़ों हमारे जैसे आदिवासी पत्रकारों की समझ  वाले लोगों की नजर में  भारत विश्वगुरु  कोरोनाराम के भरोसे  बन चुका है। 
 .....और हम 65करोड़ रुपया की हवाई जहाज में बैठे हैं..., मुख्यमंत्री के गोद में बैठ कर मध्य प्रदेश के पांचमें सर्वाधिक संक्रमित क्षेत्र के रूप में स्थापित हो चुके हैं। अब कोई  पुष्पा या खनिज विभाग की फरहत जहां-जहां  चाहे अनूपपुर, शहडोल या उमरिया के वर्ल्ड टाइगर सेंचुरी में जंगल राज में जंगल बेचे क्या फर्क पड़ता है।
 शहडोल का विकास अघोषित तौर पर ही सही प्रदेश के 5 बड़ेेेे शहरों के स्तर पर जा पहुंचा है जहां जंगलराज की तरह कोरोना का राज्य कायम है। मुख्यमंत्री जी ने प्राइवेट अस्पतालों को भी वरदान दे दिया है, उनकी कर्तव्य निष्ठा यह सोच कर क्यों प्रतीत होती कि वे अपील करते सभी निजी चिकित्सालयों से चिकित्सकों से कि 2 महीना मुफ्त की चिकित्सा क्यों नहीं होनी चाहिए किंतु तब हवाई जहाज से उतरना पड़ता तो क्या कोरोना इंडस्ट्री के  इंडस्ट्रियलिस्ट का अपमान हो जाता....? ऐसेे उद्योगपति भारतीय भाषा मैं सांस्कृतिक राष्ट्रवादी कहलाते हैं। 
क्या अभी भी आप गर्व से नहीं कहेंगे कि आप हिंदू हैं 
तो जोर से, पूरी कर्मनिष्ठा के साथ तबलीगी जमात से उधार लेकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना 
"गर्व से कहो हम हिंदू है... ।
यह अलग बात है की "गर्व" कोरोना के मामले में "शर्म" की पर्यायवाची है। 
------------इति आदिवासी क्षेत्रे--------------






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