शुक्रवार, 26 जून 2020

भारतीय कर्जदार और अंबानी कर्ज मुक्त/आपातकाल लगाता, तो मुझे गर्व होता है( त्रिलोकीनाथ)

                  (जारी भाग 2)

आपातकाल दिवस पर विशेष -2
कैसे भारतीय कर्जदार बनाया और अंबानी कर्ज मुक्त हो रहा था...

.कोविड-19 भारत के हमले पर  आपातकाल लगाता, तो मुझे गर्व होता है



(त्रिलोकीनाथ)
    ठीक वैसे ही जैसे 1986 में पत्रकारिता में मैंने कदम रखा 36 साल बाद 2020 में मैं जहां का तहां हूं या रह जाने के लिए बात भी की गई व्यवस्था का प्रमाण पत्र भी हूं । कल ही एक  उच्च अधिकारी ने मुझसे कहा कि आप पत्रकारिता में फेल हो... क्योंकि आप कहीं भी कुछ भी प्रश्न उठा देते हो और आप गंभीर प्रश्न पूछते हो जिसका उत्तर अधिकारी नेता नहीं दे पाते... इस प्रकार आपके पूछने के  प्रक्रिया से यह प्रमाणित होता है कि आप पत्रकारिता में फेल हो।
      पत्रकारिता का मतलब जिस प्रकार उन्होंने समझाने का प्रयास किया वह पत्रकारिता का नकाब  पहन कर सरकारी सुविधाओं का लाभ लेना और ब्लैक मेलिंग जैसे अवसरों को तलाशना , अपनी अजीबका पेट भरने की प्रक्रिया सुनिश्चित करना, शायद उनकी मंशा यही थी। वे अद्यतन पत्रकारिता को साकार देख रहे थे ...
      मैंने कहा, आप मुझ पर गलत आरोप लगा रहे हैं मैं पूरी तरह से बकरी हो चुका हूं.., भीगी बिल्ली बनने की लिए तत्पर हूं.. अब धोखे से कहीं पत्रकारिता निकल ही आती है मेरा क्या दोष... मैं उस पुरानी पीढ़ी का पत्रकार हूं जिसमें यह गंदी-आदत पड़ी है...... ऐसा मैं सोचता रहा ।कुछ इसी अधिकारी के अंदाज में आज के राजनेता आपातकाल को उपयोग नहीं कर पाए..
 
    मैं होता प्रधानमंत्री तो धोखे से ही सही आपातकाल के महान कानून का पूर्ण लोकहित में सदुपयोग करता,चिकित्सकों के ऊपर आपातकाल, सेना तो आपातकाल के लिए बनी ही है उसका संपूर्ण उपयोगकर्ता और मेरा भारत बच जाता ..। 
     यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कितने करोड़ लोग इस महामारी से प्रभावित हुए हैं.... कितना बड़ा डाका.., किस प्रकार से कहां पड़ रहा है  ।, किसने डब्ल्यू एफ ओ से कितना कर्जा ले लिया है और किसने किस प्रकार से पीएम केयर फंड बनाया है ...।
      अथवा पीछे जाएं तो किसने चीन से कितना किस फाउंडेशन के लिए ले लिया था या फिर कितने किलोमीटर चीन सीमा पर आगे बढ़ पर कब्जा कर लिया यह सब तो  साम्राज्यवाद तत्वों के  की  आदत ही है महत्वपूर्ण सिर्फ यह होता है की एक पूरी युवा पीढ़ी जिससे सुनहरा भारत सुनिश्चित होना है क्या उसे गुलाम बनाने के लिए जबरदस्ती उसे कर्ज देने के लिए कोई व्यवस्था सुनिश्चित की जा रही है.... ?
    जब कोरोना काल में सब कुछ लॉक डाउन हो गया तो फिर बैंक के ब्याज, विद्युत  के बिल अथवा सरकारी टैक्स पर लॉकडाउन क्यों नहीं लगाया गया... यह समझ से परे है.....?  लक्ष्य बनाकर भारत की नीतियां हर नागरिक को कर्जदार बना रही थी, उस वक्त कर्जे में डूबा अनिल अंबानी और उनके भाई मुकेश अंबानी कैसे कर्ज मुक्त होने का रहस्य का रोमांच पैदा कर रहे थे...?

     उनके कर्ज मुक्त होने पर हमें कोई दुख नहीं है। व्यक्तिगत यह मेरे लिए गर्व की बात है किंतु मुझसे ब्याज वसूला जाए मुझे कर्ज में दबा दिया जाए यह बात भी व्यक्तिगत मेरे लिए शर्म से डिप्रेशन में फंसाने का एक नीतिगत मामला है।
        एक प्रकार का स्लो-पाइजन है ठीक वैसा ही जैसा कि कोविड-19 हमारे जीवन में एक प्रक्रिया के तहत स्लो-प्वाइजन की तरह प्रवेश करा दिया गया है । मुझे याद है जब शहडोल में अपने घर में सुरक्षित तरीके से सरकारी नीतियों का अमल करते हुए मैं रह रहा था तब अचानक गोहपारू जनपद में किसी व्यक्ति के कोरोनावायरस प्रभावित होने की खबर आई, घटनास्थल से 25 किलोमीटर दूर बैठा मैं उसी तरह कांप गया था भयभीत हो गया था अपने कमरे के अंदर जैसे कोरोना महामारी मेरे ऊपर ही आ गई हो। अकेला मैं डरपोक नहीं था भारत का हर नागरिक भारतीय गुलाम मीडिया के बकवास में डरपोक और कायर बना दिया गया था।

       मुझे याद है की तब कोरोना माई से  जन्मी भाजपा की शिवराज सरकार ने महान निर्णय लेकर भय के वातावरण पर इंदौर से किसी कोरोनावायरस अपराधी मरीज को सतना भेजा था
 और सतना के कलेक्टर बुद्धिमान होने का प्रमाण देते हुए उसे रीवा मेडिकल कॉलेज ट्रांसफर कर दिया। तब जो हालात रीवा रियासत के महाराजा के वंशज पुष्पराज सिंह के थे वह पूरी तरह से जैसे अर्ध-विक्षिप्त हो गए हो, उनका बयान वहां के नागरिकों में सुर में सुर मिलाकर चल रहा था कि विधायक इस्तीफा दे दें...,. सांसद इस्तीफा दे दे... शिवराज के खिलाफ पूरा रीवा बगावत कर दे... आदि- आदि के हालात सिर्फ महाराजा-पुत्र नहीं बना रहे थे बल्कि रीवा की पूरी जनता भी अपनी पूरी बौद्धिकता के साथ सरकार से बगावत के अंदाज पर सड़क पर आ गई थी....।यह सरकार द्वारा परोसा गया भय का वातावरण था।
   अब रीवा में 50 के करीब कोरोनावायरस के मरीज इलाज करा रहे हैं कोई भय भी नहीं कर रहा है । चिंतन और मंथन का विषय भी है कि डरपोक और कायर नागरिक..., तीस-मार खां,  बहादुर चंद कैसे बन गया..? यही हालात हमारे शहडोल में भी मैं भी गलवान की घाटी में चीनियों से उनकी बरसती हुई गोलियों का सामना करने को सैनिक कमांडर के रूप में खड़ा हूं। कल मेरे पड़ोस में 3 कोरोना के मरीज चिन्हित हुए नायब तहसीलदार बुढार भरत सोनी जी ने कहा जिस मकान में मरीज है उसके आसपास के मकान कंटेनमेंट एरिया बनाए जाएंगे। यानी चिंता करने कि कोई बात नहीं हमारा इंडियन-कोरोनावायरस पवित्र हो रहा है...। जैसे हर अछूत अपवित्र दागदार और भ्रष्टाचारी बलात्कारी व्यक्ति भाजपा में प्रवेश करते ही पूर्ण पवित्र करार हो जाता है वैसे ही कोविड-19 का वायरस अछूत उद्धार हो रहा है।

     यह इसलिए भी क्योंकि जिला अस्पताल में एक डॉक्टर ने मुझ कमर दर्द मरीज को जांच करते वक्त भयभीत होकर कहा था थोड़ा आप दूर जाइए, जैसे वह अछूत हो जाएगा... इसीलिए अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो लौह महिला श्रीमती इंदिरा गांधी के बताए नक्शे कदम पर अनुभवों से सीख कर लोकहित में लोकतंत्र के लिए भारत में आपातकाल की घोषणा कर देता है। 
    फिर चाहे उसकी कोई भी कीमत मुझे चुकानी होती..., मुझे गर्व होता, मुझे जनता कायर और मुर्ख तो नहीं कहती। दो-तीन महीने का इमरजेंसी शायद कष्टकारी होती है किंतु लाखों-करोड़ों रुपए के साथ करोड़ों में श्रमिकों का सम्मान और गौरव अपना सिर उठाकर जिस भारत की ओर देखता तब यह सोच कर मुझे गर्व होता है ।

(नोट- इस आलेख में हम किसी पर आरोप नहीं लगा रहे यह सिर्फ मेरी अपनी भावना और आपातकाल कानून का चिंतन मात्र है)

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