शुक्रवार, 26 जून 2020

कोविड-19 भारत के हमले पर आपातकाल लगाता, तो मुझे गर्व होता है (त्रिलोकीनाथ)




25 जून 1975 आपातकाल दिवस पर विशेष -1

कोविड-19 भारत के हमले पर 
आपातकाल लगाता, 

तो मुझे गर्व होता है

(त्रिलोकीनाथ)

25 जून 1975 आजाद भारत में आपातकाल लगाए जाने संबंधी कानून के उपयोग का दिवस है।यह अलग बात है कि इस कानून का दुरुपयोग हुआ किंतु इस दुरुपयोग से क्या 45 साल बाद भी शासन कुछ सीख नहीं पाई..? हर चुनौती को अवसर के रूप में देखने वाली भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार आपदा के कानून की चुनौती को अवसर के रूप में उपयोग क्यों नहीं की ..?
    क्योंकि भी कोई भी कानून औचित्य हीन नहीं है । कोई भी कानून इस उद्देश्य नहीं बनाया गया कि किसी का अहित  हो सकता है। उसके लागू होने से हितकारक तत्व उपस्थित हो जाएं जैसे दुरुपयोग करने से अहित कारक तत्व इंदिरा गांधी के कार्यकाल में उपयोग हुए थे ।किंतु तब उस समय भारत लोकतंत्र के लिए निकला था जैसे कि आजादी की लड़ाई के बाद निकला  था ।



   पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने इंदिरा गांधी को यूंही राह चलते नहीं छेड़ा था कि वे दुर्गा हैं... । जो भारतीय जनता पार्टी का संस्थापक रहा हो तो इतनी हल्की बात नहीं कर सकता। उन्होंने इंदिरा जी के कानून के दुरुपयोग के सिद्धांत को अपने नजरिए से तराशा था तब जाकर उन्हें दुर्गा कहा। सत्ता को मदहोश उन्हें लोकतंत्र के नकाब में सत्तासीन रहने को बाध्य करता रहा। यह इंदिरा गांधी ही थे जिन्होंने सबसे पहले गरीबी हटाओ का नारा दिया था 45 साल बाद गरीबी नहीं हटी कोरोना-काल के बाद गरीबों का एक नया जन्म होगा, जिन्हें कर्जदार कहा जाएगा । तब भारत का ऋण लेकर गुलामों के जिंदगी में अपना भविष्य तय करेगा.. इसे आत्मनिर्भर नागरिक की भी संज्ञा दी जा सकती है।


          तो इंदिरागांधी के आपातकाल से हमने क्या सीखा है, क्या 45 साल में मीसा बंदियों को ढूंढ कर उन्हें पेँशन देना सीखा है ताकि वोट बैंक बचा रहे। फर्जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी खड़े किए गए क्या हमने यह सीखा है अथवा लोकतंत्र में आपातकाल के अनुभव से उसके प्रयोग के सिद्धांत को लेकर...,  शायद कुछ नहीं, हम धूर्त रहे और मूर्ख बन गए... शायद हमने यही सीखा।आपातकाल को गाली देकर, आपातकाल के कानून की महानता को नष्ट नहीं करना चाहिए। वह एक महान कानून है। जिसमें लोकतंत्र की ताकत निहित था। यह सच की परछाई है।

      किंतु लगातार राजनीति में हमले पर हमला करना और उस कानून के उपयोग के बारे में लोकहित के अवसर की तलाश नहीं करना यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। हर कानून सार्थक है बस उसकी उपयोगिता क्या होनी चाहिए इस पर निर्भर करता है ।अगर इंदिरा जी ने दुरुपयोग किया तो हम भी सिर्फ दुरुपयोग करें इस कानून का यह बहुत दुखद है, अगर मैं प्रधानमंत्री होता... इसमें कोई आश्चर्य नहीं होनी चाहिए क्योंकि अगर कोई चाय वाला प्रधानमंत्री हो सकता है तो मैं क्या मेरे जैसा कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री हो सकता है.,
       तो मैं कह रहा था अगर मैं प्रधानमंत्री होता तो जब मुझे पता चला था की एक खतरनाक चर्चित जैविक रसायन कोविड-19 कोरोनावायरस की महामारी की आपदा भारत पर हमला कर सकती है तो उसके लिए मैं किसी जनता-कर्फ्यू का नकाब भारत को नहीं पहनाता क्योंकि मैं दुर्गा होता। अटल बिहारी वाजपेई का दुर्गा, इंदिरा का रूप होने में मुझे गर्व होता।
       मैं आपातकाल लगा देता और कम से कम विदेश से आने वाले तमाम नागरिकों के लिए आपातकाल लगाकर भारत की 130 करोड़ की आबादी को सुरक्षा चक्र में डाल देता। मैं एक निर्दई शासक बन जाता, इस बात का निर्णय भी करता कि मेरे आपातकाल के कानून में मेरे प्रवासी भारतीय नागरिक जहां भी हैं उनके लिए वहीं पर डॉक्टर और चिकित्सा सुविधा मुहैया कराए जाने कि अपनी विदेश नीति के तहत अपने राजदूत कार्यालय को अपने विदेशी नागरिकों के हित में डॉक्टर भेज कर काम करवाता है। ताकि स्वस्थ नागरिक ही भारत में एंट्री कर सकें। मेरे आपातकाल कानून में  सुनिश्चित होता, विश्व बंधुत्व के नजर से मेरे चिकित्सक जो सेवा कर सकते हैं विदेश की धरती में जाकर विदेशियों की भी करें... मैं कोई मुरव्वत नहीं करता, कोई सद्भावना नहीं रखता ।
      वे एक सेवक हैं उन्होंने शपथ लेकर इसका चयन किया था, ठीक उसी प्रकार से जैसे आर्मी का आदमी शपथ लेकर मातृभूमि की रक्षा के लिए सेवा का चयन करता है। मेरे आपातकाल के कानून में इसे सुनिश्चित करने का कर्तव्य निष्ठा और भारतीय होने का गर्व से झलकता, आपातकाल के कानून का इससे शानदार उपयोग शायद कुछ हो ही नहीं सकता । लेकिन 45 साल बाद मैं उतना ही अनपढ़ और मूर्ख हूं और धूर्त भी कि मैं कुछ नहीं कर पाया..।

                                                                                                     (जारी भाग 2)





 

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