शनिवार, 30 मई 2020

सड़क समिति में ट्रांसपोर्ट नगर का मुद्दा हुआ गायब (त्रिलोकीनाथ)

इति आदिवासी क्षेत्रे....
सड़क समिति में ट्रांसपोर्ट नगर का
मुद्दा हुआ गायब
(त्रिलोकीनाथ)
तो सड़क सुरक्षा समिति की बैठक सम्पन्न कोरोनावायरस लॉकडाउन के अंतिम चरण में आज शहडोल 30 मई 20 को कलेक्टर  सतेन्द्र सिंह की अध्यक्षता में आज कलेक्टर कार्यालय के सभागार में सड़क सुरक्षा समिति की  बैठक सम्पन्न हुई।   बैठक में पुलिस अधीक्षक  सतेन्द्र शुक्ल, अनुविभागीय अधिकारी राजस्व धर्मेन्द्र मिश्रा,  जिला परिवहन अधिकारी  आसुतोष भदौरिया, एम0पी0आर0डी0सी0 श्री गुप्ता,  उप पुलिस अधीक्षक व्ही. डी. पाण्डेय , यातायात प्रभारी सहित नगर निरीक्षक  रावेन्द्र द्विवेदी उपस्थित थें।
      अब चुकी इसमें किसी नगर जनप्रतिनिधि का नाम नहीं है तो यह मानकर चलना चाहिए की भी बैठक में नहीं रहें होंगे पर शायद यही कारण था शहडोल शहर की सबसे बड़ी समस्या ट्रांसपोर्ट नगर की स्थापना उसके लिए भूमि आवंटन और उसके इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम को सर्वोच्च प्राथमिकता के नजरिए से भी रखकर सड़क सुरक्षा समिति ने नहीं देखना चाहा अब तो यह बहाना भी नहीं है के कोई ऐसा फंड नहीं है जिससे ट्रांसपोर्ट नगर को विकसित करके तत्काल शहर के हित के लिए प्रदूषण मुक्ति के लिए चालू न कर दिया जाए बहरहाल आज की बैठक की बाद  जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया  की  कलेक्टर ने कहा कि
1-सड़कों के खतरनाक मोड़ों एवं खतरे वाले जगहों एवं  ब्लैक स्पार्ट में  दूर से दिखाई देने एवं पढ़े जाने वाले संकेतक के बोर्ड लगवाएं । 2- पतखई घाट में छोटे-छोटे संकेतक बोर्ड के जगह बड़े संकेतक बोर्ड लगाए जाए।
3-सिंहपुर रोड़ से आने वाले भारी वाहनों को नो इंट्री के समय रोकने हेतु पोण्डा नाला के पास एवं बगिया तिराहा से इंन्द्रिरा चैक की ओर बस स्टेण्ड से इन्द्रिरा चैक की ओर भी  बैरियर एवं सूचना पटल लगाए जाए जिससे भारी वाहन शहर में प्रवेश न कर सकें।
4-एफसीआई गोदाम से जमुही  तक के मार्ग को दूरूस्थ करवाने
5-विशेष अवसरों पर शहर के अंदर वाहनों के आवागमन से जाम की स्थिति  से निपटने मोहनराम तालाब स्थल व रघुराज स्कूल मैदान में सायं 6 से 9 बजे तक अस्थायी पार्किंग की व्यवस्था करने
6-गणेश मंदिर, सिंहपुर रोड़ नर्सरा से बगिया तिराहा तक सड़कों गडडे भरे जाने,
7-न्यू गांधी चौक, जैन मंदिर के पास तथा परमट तक  दुकानों के अतिक्रमण  हटाने के भी निर्देश नगरपालिका एवं यातायात पुलिस को दिए गए।
8-घरौला मोहल्ला सहित अन्य रिहायसी इलाकों में ईट, गिटटी एवं ट्रासपोर्ट का सामन लेकर गुजरने वाले वाहनों के प्रवेश  एकांकी मार्ग से करने ।
9-आटोमोबाईल, शो रूम  के वाहनों की अनलोडिंग करने का समय निर्धारित करने शहर के अंदर अनेक स्थानों पर व्यापारियों द्वारा बाहर समान रखने, टेंट लगाने एवं यातायात बधित करने पर रोक लगाने के भी निर्देश दिए गए।
10- इसी प्रकार जय स्तभ चौक से न्यू गांधी चैक एवं रेलवे स्टेशन मार्ग तक सड़कों में पार्किंग लाईन का कार्य कराया जाए।
11- जिला मुख्यालय में छः स्थानों एवं  ब्यौहारी तथा बुढ़ार में 12 स्थानों पर ब्लींकर्स लगाने
12- नटराज तिराहा से जैन मंदिर , रेलवे स्टेशन एवं पुराना गांधी चैक से पंचायती मंदिर तिराहा से नटराज तिराहा तक शाम 5 बजे से सुबह 9 बजे तक एकांकी मार्ग का भी अनुमोदन किया गया।
हो सकता है इसके अलावा भी कुछ अन्य छोटे-बड़े निर्णय किए गए हो किंतु यदि ट्रांसपोर्ट नगर का निर्णय लिया जाता
और उसके फंड के लिए जिला खनिज न्यास के राशि तत्काल आवंटित कर कार्य प्रारंभ कर दिया जाता तो शहर की यातायात संबंधी 30%  समस्या और 50%  प्रदूषण की समस्या तत्काल समाप्त हो जाती । किंतु यह इच्छा शक्ति क्यों नहीं जागी, यह बड़ा यक्ष प्रश्न है।
     इसका मतलब यह नहीं कि अगर जनप्रतिनिधि होते तो  अपनी किसी ऐसी योग्यता का प्रदर्शन करते कि ट्रांसपोर्ट नगर पर तत्काल परिणाम देता । पिछले 15-20 साल से लगातार शहडोल में भारतीय जनता पार्टी की पालिका परिषद काम कर रही है और अगर भाजपा की सर्वोच्च प्राथमिकता में ट्रांसपोर्ट नगर होता तो उसके जनप्रतिनिधि इस काम को बिना रोक-टोक के और बहुत लंबी चौड़ी राज्य सरकार अथवा केंद्र सरकार से बजट लाकर अत्याधुनिक ट्रांसपोर्ट नगर का निर्माण भी करा सकते थे.... इस आदिवासी संभाग मुख्यालय में। किंतु उनकी सोच में "विकास" नाम का पुरुष शायद अब "आत्मनिर्भर" गरीब प्राणी के रूप में परिवर्तित हो गया है।
    क्योंकि भारत में  अब "आत्मनिर्भर" की ब्रांडिंग ज्यादा हो रही  है। तो उनसे बहुत अपेक्षा क्योंकि जाए... लेकिन यदि जिम्मेदार प्रशासनिक तबका जिला स्तर पर और एक अनुभवी तबका संभाग स्तर पर अधिकारी के रूप में बैठा है फिर भी ट्रांसपोर्ट नगर का निर्माण ना होना क्या हमारी विकास की अवधारणा के प्रति दकियानूसी सोच का प्रतीक तो नहीं है......?
     क्योंकि सोचना प्रशासन को ही है चाहे वह पालिका का प्रशासन हो या फिर शासन का प्रशासन और वर्तमान में यदि सशक्त प्रशासन है तो उससे निराशा यह हताशा की अपेक्षा क्यों होनी चाहिए....?
हां, नगर पालिका परिषद भी यह प्रस्ताव पारित करके प्रशासन को अपनी प्राथमिकता जता सकती है...., उसमें तालाबों के संरक्षण की प्राथमिकता भी शामिल करने की गलती हो सकती है... किंतु यह गलतियां क्या प्रशासन और प्रतिनिधि मिलकर भी करना चाहेंगे.....? आज की प्रेस विज्ञप्ति में यह प्राथमिकता नहीं प्रदर्शित होती नजर आई।

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