रविवार, 3 मई 2020

क्या कोरोना जैसे वायरस का अविष्कारक होगा शहडोल ?


क्या कोरोना जैसे वायरस का अविष्कारक होगा शहडोल ?

अगर कोई आपसे कहे की कचरा खा लो, कूड़ा खा लो, पन्नी खा लो, प्लास्टिक काट लो ,सिरिंज को गटक लो, आपको कैसे एहसास होगा?
 सवाल थोड़ा अजीब है , लेकिन आज जिस स्थिति में गाय दिखी उस स्थिति से अधिक नहीं है ।
हम यह सब जानते हैं की हम सबके घर में दूध किन स्रोतों से आता है ,शायद ही कोई अनजान हो कि बच्चों के लिए अति आवश्यक, बीमारों के लिए अति आवश्यक, आपके घर का एक अभिन्न अंग; गाय का दूध है।
 किंतु अगर यह प्रश्न किया जाए कि दूध पनपता कैसे  है ?क्या भूखी गाय दूध दे सकती है ?

तो आपका जवाब क्या होगा कि गाय जब खाती है उसी से दूध होता है ।
अब प्रश्न एक और है जो ऊपर वाले प्रश्न से मिलता जुलता है यह प्रश्न है कि गाय अगर सिरिंज गटक जाए , गाय या फिर अन्य मवेशी पन्नी खाएं ,संक्रमित हॉस्पिटल के वेस्ट को खाने के लिए मजबूर हो । खून से सनी हुई रूई जहां पर पड़ी हो वहां से अगर भोजन ग्रहण करें और इसी भोजन के द्वारा दूध गाय के शरीर में उत्पन्न हो ।
वही दूध आपकी ग्लास में हो तो क्या आप उसे पिएंगे ? अगर आपका जवाब ना है तो जरा सोचिए कि क्या कभी भी आपके गिलास में जो दूध आता है वह इन मवेशियों का नहीं आता होगा? या फिर आप अंतर कैसे कर लोगे की इन मवेशियों का दूध है या नहीं है ?
स्थिति बड़ी गंभीर है चिंतन बहुत जरूरी है यह जो दृश्य आपके सामने दिख रहा है यह हमारे जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर स्थित संग्रहालय का है।
 संग्रहालय इसलिए क्योंकि यहां पर आपको हर एक प्रकार का कचरा एक ही स्थान में मिल जाएगा ।
भले ही लाख बताते रहे स्वच्छता के बारे में मोदी जी खुद आकर के कि नीला , पीला  ,लाल,  हरा डब्बा अलग अलग क्यों होता है, और उसकी उपयोगिता क्यों अलग अलग है लेकिन जब कार्यप्रणाली में बैठे हुए लोग ही उन डब्बो के अलग अलग होने की उपयोगिता और उनके एक साथ मिल जाने के खतरे को नहीं भाप रहे हैं , तो चाहे हम जितना पैसा खर्च कर ले हम इस स्वच्छता नामक स्वप्न से कोसों दूर है। शहर से लगे इस स्थल में कई मवेशी दिन भर अपनी भूख संक्रमित कचरा से मिटाते हैं और इस समय जब शहडोल में केरोना ने दस्तक दे दी है तो क्या कोई ऐसा कूड़ा जो करोना  से संक्रमित हो यहां पर नहीं हो सकता?

क्योंकि अलग अलग कचरे का रखरखाव तो यहां कतई नहीं दिखता। खैर जब आप कभी इस जगह से गुजरेंगे तो आपको भारी संख्या में मवेशी यहां पर दिखेंगे कई मवेशियों की मौत इन्हीं पन्नी और प्लास्टिक खाकर के होती है यह किसी से नहीं छुपा है , लेकिन यह किस तरीके से हमें सीधे तौर पर प्रभावित करती है इसका चिंतन कभी हमने नहीं किया। इस माध्यम से हमें आज इस महामारी के दौर में स्व आकलन करते हुए यह चिंतन करना बहुत ही जरूरी है की क्या हम भी कोई करोना  जैसे वायरस का आविष्कार हम अपने पशु और पक्षियों को यह परोस के तो नहीं कर रहे हैं। शायद वह दिन दूर नहीं होगा अगर हालात यही रहे की हमारे शहडोल क्षेत्र का नाम किसी महामारी वाले कीटाणु के आविष्कारक क्षेत्र में आए और यहां के अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों का नाम आविष्कारक के रूप में आए हम केवल यही प्रार्थना कर सकते हैं कि यह दिन हमें कभी भी देखने को ना मिले लेकिन अंत में जिस तरह कार्य प्रणाली है उससे तो यही सिद्ध होता है की होइन्हे वही जो राम रची राखा अतः भगवान का भजन करिए और जनप्रतिनिधियो और छेत्रिय अधिकारियो को नगण्य मानिए ।


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