रविवार, 5 अप्रैल 2020

लॉकडाउन या लूट का वरदान...?( त्रिलोकीनाथ)

"जनता कर्फ्यू"
लॉकडाउन या लूट का वरदान...?

(त्रिलोकीनाथ)

भारत में हर कोई मोदी-परिवार जैसा या फिर माल्या-परिवार जैसा बेशर्म खानदान नहीं होता
बावजूद इसके कि भ्रष्टाचार आम आदमी की समाज में गहरी पैठ कर चुका है जिसका आम परिवारों में आंतरिक भ्रष्टाचार उनके शोषण का बड़ा कारण बना हुआ है उठापटक की जिंदगी में सब जानते हैं की अनिश्चितता उसे या तो मुकेश अंबानी की तरह दुनिया के टॉप टेन लोगों में डाल देती है या मुकेश के छोटे भाई अनिल अंबानी की तरह उसे दिवालिया बनाने का आवेदन देने के रास्ते में खड़ा कर देती है।
छोटे और गरीब परिवारों पर टूटा कहर
 यह तो शीर्षस्थ लोगों की बातें हैं जो शासन और प्रशासन को उंगली के इशारे पर नचाते हैं, किंतु मध्यमवर्गीय परिवार छोटे परिवार या फिर गरीब परिवार के हालात और भी दयनीय है  जो झूठे स्वाभिमान अथवा इस नंबर पर जीवन जीते हैं ईमानदारी नैतिकता और जीवन के उच्च आदर्श अच्छे समाज की पहचान है इस कारण परिवार के अंदर हो रहे आर्थिक शोषण को अन्याय पूर्ण बटवारा को वह बर्दाश्त करते चलते हैं जिसका लाभ उठाकर फाइनेंस कंपनियां मनमानी तरीके से उन्हें अपने शर्तों पर फंसा लेती हैं यह भी सही है कि अनिल अंबानी की तरह इन परिवारों के लिए कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह जैसे व्यक्ति उनके बुरे वक्त में उनके साथ नहीं होता है क्योंकि ऐसे लोगों पर किसी भी आपात हालात का कोई फर्क नहीं पड़ता...
 किंतु मोदी सरकार की नीतियों के चलते जहां लोगों को बैंक लोन सहजता से उपलब्ध कराना सरकारी प्राथमिकता का हिस्सा है वही कुकुरमुत्ते की तरह जगह-जगह अपने कार्यालय खोलने वाली अलग-अलग प्रकार की माइक्रो फाइनेंस कंपनियां, ऑटो फाइनेंस से लेकर गोल्ड लोन, होम फाइनेंस आदि कंपनियों के कार्यालयों में लाकडाउन  के कारण ताला लटका हुआ है। फाइनेंस कंपनियों के दिहाड़ी मजदूरों जैसे कर्मचारियों का स्पष्ट मत है की बीमारी में फंसने के बाद हमारे जैसे संविदा में नियुक्त कर्मचारियों के लिए कोई सुरक्षात्मक बीमा नहीं है इस कारण हम कार्यालय खोलकर रिस्क क्यों उठायें....? यदि बीमारी में फंस गए तो हम और हमारा परिवार तबाह हो जाएगा । 
    अभी तक ज्यादातर माइक्रो फाइनेंस कंपनियां अपने ग्राहकों से काउंटर पेमेंट ही कराती थीं। अचानक हुए लॉक डाउन के कारण अधिकांश कंपनियां ऑनलाइन पेमेंट करने पर जोर दे रही हैं, यह स्वाभाविक भी है क्योंकि काउंटर पेमेंट की सुविधा थी इसलिए लोगों ने गोल्ड लोन हो ऑटो लोन हो अथवा बाजार में किसी भी प्रकार का फाइनेंस पर मिलने वाला ऋण हो उसकी सुविधा उनकी शर्तों पर लेने के लिए तैयार हो गए किंतु इनके कार्यालयों में ताला लग जाने के कारण नियमित रूप से काउंटर पर होने वाले सभी भुगतान कार्यालय बंद हो जाने के कारण नहीं हो पा रहे हैं । और ग्राहक काउंटर पेमेंट की सुविधा के चलते ही ऐसे लोन लिए हुआ था। कंपनियों द्वारा काउंटर पेमेंट का शर्त उल्लंघन कर ऑनलाइन पेमेंट पर दबाव डालना एक पड़ा शोषण है क्योंकि जो ऑनलाइन पेमेंट नहीं कर सकते इस लॉक डाउन के कारण उनके स्लैब रेट इंटरेस्ट बढ़ रहे हैं।

*कंपनियां स्लैब रेट से वसूलती हैं किश्त*

ऐसी कंपनियों के फाइनेंस में बैंक ऋण जैसा कोई नियमित ब्याज दर नहीं होता बल्कि ब्याज का "स्लैब रेट" होता है स्लैब रेट का मतलब यदि आप सुनिश्चित किसी को भुगतान नहीं करते हैं तो यह ब्याज दर दिनों की देरी के हिसाब से बढ़ जाएगी और इस प्रकार यह भुगतान दर एक-एक दिन के अंतर में दोगुना 3 गुना, 5 गुना, 10 गुना भी हो सकता है जिससे आपके द्वारा लिए गए सोने की कीमत पर अथवा संपत्ति की कीमत पर जो भी आपने विषय सामग्री ऋण प्राप्त करने हेतु लिया है वह डूब जाएगा, विशेषकर शहडोल जैसे आदिवासी विशेष क्षेत्रों में जहां की भारत के संविधान की पांचवी अनुसूची की धाराएं लागू है और इसके चलते समस्त वह लाइसेंस जो सूदखोरों को महाजनों को जारी किए गए थे क्योंकि  सभी शासन स्तर से निरस्त कर दिए गए हैं क्योंकि सूदखोर /महाजन भी इसी प्रकार का ब्याज लेने का काम करते थे। जो एक प्रकार का शोषण था सूदखोर तो इससे अतिरिक्त भी बेईमानी के काम करते थे और वे आज भी कर रहे हैं मुझे अच्छी तरह से याद है की नौरोजाबाद क्षेत्र में अथवा शहडोल  संभागीय क्षेत्र में सूदखोरों ने आदिवासियों को इसी तरह से लूटा है जिनके लाखों रुपए मेहनत की जिंदगी की कमाई और जमीनी प्रायः लुट गई हैं। 

बिना लिखित शिकायत कैसे हो कार्यवाही....?

प्रशासकीय पक्ष का यह कहना है जब तक कोई लिखित में शिकायत पुलिस विभाग को या फिर कलेक्टर को नहीं की जाएगी तब तक इस पर पुलिस अथवा प्रशासन कोई कार्यवाही नहीं कर सकता है याने स्वतः संज्ञान लेकर कार्यवाहियां नहीं होंगी... और, आदिवासी क्षेत्र में जिन आदिवासियों को "अंतिम पंक्ति का अंतिम व्यक्ति" कहा गया है जिन्हें लिखना पढ़ना नहीं आता है वे शिकायत कैसे करेंगे.......?, थाना और पुलिस वैसे भी उनके लिए बहुत कठिन है, उससे बचे रहना चाहते हैं ।उनके दिमाग में एक सकारात्मक पक्ष पुलिस प्रशासन का उन्हें राहत नहीं देता।
 बावजूद इसके कि जब भी कोई शिकायतें होती हैं तो पुलिस अथवा प्रशासन अपने स्तर पर कार्यवाही करता ही है यह अलग बात है कि वह कार्यवाही इतनी धीमी होती है कि उसमें सूदखोर उस सिस्टम को चलाने लगता है और न्याय बिक जाता है । 

*आरबीआई के निर्देशों का नहीं हो रहा पालन*

कोरोना कोविड-19 के महामारी के कारण प्रधानमंत्री जी के लाकडाउन पीरियड की है इस तरह जो भी फाइनेंस कंपनियां शहडोल जैसे क्षेत्र में खुली हैं लॉक डाउन उनके लिए "सोने में सुहागा" साबित हो रहा है वे इस अवधि में करोड़ों-अरबों रुपए इस प्रकार की फाइनेंस में लूटने का बहाना खोज लिए हैं.... क्योंकि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने जो निर्देश जारी किए हैं उसका पालन इन कंपनियों द्वारा यह कहकर नहीं किया जा रहा है कि यह निर्देश इन प्रकार की फाइनेंस कंपनियों पर लागू नहीं होते.... और जिला स्तर पर या संभाग स्तर पर राज्य स्तर यदि लागू होते ही होंगे तो स्थानीय शासन और प्रशासन पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर उनसे समन्वय बनाकर वे इसे लागू नहीं कर रहे हैं.....? कुछ हद तक माना जाए तो स्थानीय प्रशासन को इस बात का ध्यान ही नहीं है यह भी एक गंभीर जिम्मेदारी जैसे एक कर्फ्यू है जैसे कोई आपातकाल है उस पर उसे निर्वहन करना चाहिए।
 और शायद यह बहुत बड़ा बहाना है ऐसी फाइनेंस कंपनियों के कर्मचारियों का कि उनका सुरक्षा बीमा, स्वास्थ्य बीमा की तरह नहीं है इसलिए वह अपने कार्यालय नहीं खोलेंगे।
 तो इस प्रकार यानी यह तय हो गया है कि लॉक डाउन का आदेश मध्यमवर्गीय परिवारों की "खुली-लूट" का  अवसर बन गया  है इसके अलावा अन्य लोगों के लिए भी खुली लूट का खुला रास्ता है । बेहतर होता स्थानीय प्रशासन या मध्यप्रदेश शासन अपने कर्मचारियों को इस संबंध आरबीआई के निर्देशों को उच्च अधिकारी समझकर स्पष्ट व पारदर्शी निर्देश पारित करे कि वास्तव में छूट अवधि पर स्लैब रेट ब्याज का भुगतान नहीं किया जाएगा या नहीं.....? यदि ऐसा नहीं होता है तो मध्यमवर्गीय परिवार पर या जरूरतमंद परिवार पर यह अपने आप में कोरोना से भी ज्यादा एक बड़ी आर्थिक महामारी के रूप में उसके जीवन शैली पर बड़ा प्रभाव डालेगी और उसके मनोवैज्ञानिक प्रभाव अभी से ही पड़ने चालू हो गए हैं..... हो सकता है जिस प्रकार से कोरोना छुपा हुआ महामारी है इसी प्रकार से इस प्रकार की फाइनेंस कंपनियों का "स्लैबरेट" एक बड़ी छुपी हुई मनोवैज्ञानिक महामारी साबित हो....., जो मध्यम परिवार या छोटे परिवारों को तबाह कर देगी उनका आर्थिक बुनियादी ढांचा नष्ट हो जाएगा और वे इस लॉक डाउन में बुरी तरह से ठगे जाएंगे जिस कारण वे डिप्रेशन के भी शिकार हो सकते हैं...?

मूक बधिर हमारी विधायिका...?
क्या हमारी विधायिका उसके सांसद और विधायक मौन व्रत धारण किए हुए हैं जो या तो परिस्थितियों को समझ नहीं रहे हैं या फिर अपने स्वार्थ पूर्ति में चुप्पी साधना उचित समझते हैं माना कि यह जनता कर्फ्यू है क्या बे आफ्टर जनता कर्फ्यू विधानसभाओं में या लोकसभा में इस बात पर चर्चा करेंगे कि किस प्रकार से फाइनेंस कंपनियां कितना लाभ इस जनता कर्फ्यू के दौरान उठाई हैं और उसका वापसी की भी कोई संभावना होगी शायद नहीं जब आज जागरूकता नहीं है तो कल तो आप विवेक  शून्य बनकर क्यों ऐसी बातें करेंगे जिससे बड़ी-बड़ी फाइनेंस कंपनियों का मिलने वाला पार्टियों को चंदा बंद हो सकता है कुल मिलाकर देश की आजादी मजाक बन रही है कम से कम आदिवासी क्षेत्रों में यह कड़वा सच हम देख पा रहे हैं।





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