पूर्व मुख्यमंत्री कमल ने कहा जरूरी है पत्रकारों का बीमा...
उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने कहा जरूरी है संरक्षण परिस्थितियों में देंगे शहीद का दर्जा
(त्रिलोकीनाथ)
अब तो उड़ीसा के मुख्यमंत्री भारत के पहले ऐसे नेता बन गए हैं जिन्होंने मानवीय संवेदना को सबसे पहले छूने का काम किया। समाचार पत्रों में काम करने वाले तमाम लोग भी उनकी उस परिधि में शामिल हो गए हैं, जिसमें उन्होंने आदेश किया कि कोई भी व्यक्ति जो शासकीय अथवा निजी क्षेत्र का हो कोरोना कोविड-19 के कार्य के दौरान संक्रमित होता है और यदि वह मृत हो जाता है तो उसे न सिर्फ ₹5000000 का सुरक्षा का लाभ मिलेगा बल्कि राज्य शासन उसे शहीद का दर्जा भी देगी।
भारत का शायद सबसे ज्यादा गरीब राज्य उडीसा, अमीरों के द्वारा लाए गए इस महा रोग कोविड19 से गरीब का फिक्र करने वाला पहला राज्य कहलाएगा। अगर कहा जाए तो भारत की आजादी के बाद यह पहला ऐसा राज्य होगा जहां आम आदमी, आम नागरिक के बारे में शासन की संवेदना खुलकर दिखी है। उड़ीसा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक लोकतंत्र के सच्चे नेता के रूप में उभर कर आए हैं। उन्हें उनके शासन की कार्यप्रणाली के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
इस सच्चे लोकतंत्र में लोकशाही की मर्यादा यदि इस वैश्विक महामारी में भी संवेदनशील प्रकट नहीं होती है तो यह मानवता के लिए सुखद नहीं कहा जाएगा। तब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महामारी की शुरुआत में ही समाचार जगत यानी पत्रकारिता की भूमिका को अत्यावश्यक बताते हुए अपने तमाम प्रेस से दूरी के कारणों को किनारे रखकर उन्हें सक्रिय भूमिका का आवाहन किया , साथ ही शायद पहली बार उन्होंने स्वतंत्र प्रेस के पक्ष में इस आशय के निर्देश भी दिए उन्हें याने समाचार संवाददाता को पत्रकारिता को किसी प्रकार का कोई रोक टोक न किया जाए। जबकि सब जानते हैं की प्रेस से दूरी बनाकर रखने वाले श्री मोदी शायद पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनकी पत्रकारिता से दूरियां खुलकर दिख गई हैं ।बावजूद इसके इस महामारी में पत्रकारों और पत्रकारिता की जरूरत उन्हें समझ में आई। किंतु अब तक अपने तमाम बयानों में कहीं भी उन्होंने पत्रकारों को इस महामारी पर शिकार होने की हालत में किसी भी प्रकार की कोई राहत देने की घोषणा नहीं की गई। यही हाल मध्यप्रदेश का भी रहा... हाल में स्वास्थ्य मंत्री बने नरोत्तम मिश्रा ने तो शायद किसी पत्रकार यूनियन के माध्यम से 5000000 की बीमा की आवश्यकता इसलिए बताई थी क्योंकि तब यह मंत्री नहीं बने थे....
अब बात औरहै। स्वास्थ्य मंत्री चाहे तो पत्रकारों की स्वास्थ्य बीमा को अनिवार्य घोषित कर ही सकते हैं। और माननीय मुख्यमंत्री जी से उड़ीसा राज्य के मुख्यमंत्री की कार्यशैली को मॉडल मानकर और पूर्व मंत्री कमलनाथ के पत्र को आवेदन पत्र मानकर पत्रकारों की स्वास्थ्य बीमा और 5000000 का सुरक्षा बीमा अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की तरह ही करते हुए उन्हें सुरक्षा चक्र में शामिल करने का कार्यवाही यदि होती है तो मध्यप्रदेश दूसरा ऐसा राज्य बन जाएगा। जहां देश की आजादी के बाद पत्रकारिता के हित में कोई महत्वपूर्ण कदम जमीनी स्तर पर उठाया गया दिखेगा। आशा करनी चाहिए कि मध्यप्रदेश शासन तत्काल निर्णय लेगा।
उड़ीसा के मुख्यमंत्री ने कहा जरूरी है संरक्षण परिस्थितियों में देंगे शहीद का दर्जा
(त्रिलोकीनाथ)
अब तो उड़ीसा के मुख्यमंत्री भारत के पहले ऐसे नेता बन गए हैं जिन्होंने मानवीय संवेदना को सबसे पहले छूने का काम किया। समाचार पत्रों में काम करने वाले तमाम लोग भी उनकी उस परिधि में शामिल हो गए हैं, जिसमें उन्होंने आदेश किया कि कोई भी व्यक्ति जो शासकीय अथवा निजी क्षेत्र का हो कोरोना कोविड-19 के कार्य के दौरान संक्रमित होता है और यदि वह मृत हो जाता है तो उसे न सिर्फ ₹5000000 का सुरक्षा का लाभ मिलेगा बल्कि राज्य शासन उसे शहीद का दर्जा भी देगी।
भारत का शायद सबसे ज्यादा गरीब राज्य उडीसा, अमीरों के द्वारा लाए गए इस महा रोग कोविड19 से गरीब का फिक्र करने वाला पहला राज्य कहलाएगा। अगर कहा जाए तो भारत की आजादी के बाद यह पहला ऐसा राज्य होगा जहां आम आदमी, आम नागरिक के बारे में शासन की संवेदना खुलकर दिखी है। उड़ीसा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक लोकतंत्र के सच्चे नेता के रूप में उभर कर आए हैं। उन्हें उनके शासन की कार्यप्रणाली के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।
इस सच्चे लोकतंत्र में लोकशाही की मर्यादा यदि इस वैश्विक महामारी में भी संवेदनशील प्रकट नहीं होती है तो यह मानवता के लिए सुखद नहीं कहा जाएगा। तब जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस महामारी की शुरुआत में ही समाचार जगत यानी पत्रकारिता की भूमिका को अत्यावश्यक बताते हुए अपने तमाम प्रेस से दूरी के कारणों को किनारे रखकर उन्हें सक्रिय भूमिका का आवाहन किया , साथ ही शायद पहली बार उन्होंने स्वतंत्र प्रेस के पक्ष में इस आशय के निर्देश भी दिए उन्हें याने समाचार संवाददाता को पत्रकारिता को किसी प्रकार का कोई रोक टोक न किया जाए। जबकि सब जानते हैं की प्रेस से दूरी बनाकर रखने वाले श्री मोदी शायद पहले ऐसे प्रधानमंत्री हैं जिनकी पत्रकारिता से दूरियां खुलकर दिख गई हैं ।बावजूद इसके इस महामारी में पत्रकारों और पत्रकारिता की जरूरत उन्हें समझ में आई। किंतु अब तक अपने तमाम बयानों में कहीं भी उन्होंने पत्रकारों को इस महामारी पर शिकार होने की हालत में किसी भी प्रकार की कोई राहत देने की घोषणा नहीं की गई। यही हाल मध्यप्रदेश का भी रहा... हाल में स्वास्थ्य मंत्री बने नरोत्तम मिश्रा ने तो शायद किसी पत्रकार यूनियन के माध्यम से 5000000 की बीमा की आवश्यकता इसलिए बताई थी क्योंकि तब यह मंत्री नहीं बने थे....
अब बात औरहै। स्वास्थ्य मंत्री चाहे तो पत्रकारों की स्वास्थ्य बीमा को अनिवार्य घोषित कर ही सकते हैं। और माननीय मुख्यमंत्री जी से उड़ीसा राज्य के मुख्यमंत्री की कार्यशैली को मॉडल मानकर और पूर्व मंत्री कमलनाथ के पत्र को आवेदन पत्र मानकर पत्रकारों की स्वास्थ्य बीमा और 5000000 का सुरक्षा बीमा अन्य स्वास्थ्य कर्मियों की तरह ही करते हुए उन्हें सुरक्षा चक्र में शामिल करने का कार्यवाही यदि होती है तो मध्यप्रदेश दूसरा ऐसा राज्य बन जाएगा। जहां देश की आजादी के बाद पत्रकारिता के हित में कोई महत्वपूर्ण कदम जमीनी स्तर पर उठाया गया दिखेगा। आशा करनी चाहिए कि मध्यप्रदेश शासन तत्काल निर्णय लेगा।
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