बुधवार, 22 जनवरी 2020

चोला पहनकर गलत काम करते हैं..- पंचायत मंत्री लोकतंत्र बनाम माफिया तंत्र- भाग 2 (त्रिलोकीनाथ)

लोकतंत्र बना माफिया तंत्र-भाग 2
बुरे लोग, राजनीति का चोला  पहन जो  गलत काम करते हैं..-
- पंचायत मंत्री
1- कौन नवाब..., प्रदेश में एक ही नवाब है:- पंचायत मंत्री
 2- लोकतंत्र का खूबसूरत  अवसर, जब नीम के पेड़ के नीचे जमीन पर मंत्री बैठे।
3- बैक-डेट का मायाजाल


4 -लेटलतीफी पर उन्होंने कहा, जैसी आपकी इच्छा.....
5- जैसे पत्रकारिता में  हैं हमारी बिरादरी में भी बुरे लोग हैं जो चोला पहनकर गलत काम करते हैं..- पंचायत मंत्री
6- थाने में पत्रकार से असभ्यता करने पर लाइन अटैच हुआ पुलिस-कर्मचारी 
7- पत्रकारों की जागरूकता ने तोड़ी गुलामी की जंजीर
8-जब नेता बनाते है लोकतांत्रिक सद्भाव और करते हैं स्वाभिमान की रक्षा.... 
               (त्रिलोकीनाथ)
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अब आप इसे चाहे चमचागिरी ही क्यों क्यों ना कहे, किंतु बीते 16 साल की मध्य प्रदेश सत्ता पर मुझे याद नहीं आता कोई भी मंत्री, भारतीय जनता पार्टी का या कांग्रेसका भी, इतना भी विनम्र, सहज और सरल नहीं दिखा। जिसने अपने आप को पानी बना दिया हो ।और वह कलेक्ट्रेट में नीम के पेड़ के नीचे बैठकर समस्या का समाधान ढूंढने का प्रयास किया हो...।
यह लोकतंत्र की खूबसूरती बनाए रखने का बहुत सहज तरीका है,

रेत माफिया का,
पंचायती सरकार पर वार...
तो दूसरी तरफ राजगढ़ में एक विवाद हुआ,परिस्थितियो-बस कलेक्टर प्रिया, आवेश में आयी और भीड़ में वह कुछ किया जो उन्हें नहीं करना चाहिए था।, उससे ज्यादा और गंदा उस वक्त हो गया जब कलेक्टर निधि का बाल किसी ने खींचा... रिप्लाई तो होना ही था।
 लाइव टेलीकास्ट का जमाना है इसलिए सब दिख गया..
 हम सबको याद है कि किस प्रकार से शहडोल कलेक्ट्रेट में जन सुनवाई के दौरान एक अप्रिय घटना घटी जिसमें एक हितग्राही ने कथित तौर पर कलेक्टर भार्गव से मारपीट की और बाद में थाने में यह मारपीट किसी अन्य कर्मचारी के साथ होना दिखाया गया...., मारपीट के मामले में देखें तो वह कर्मचारी ही कलेक्टर की जिम्मेदारी का निर्वहन अपराध के साथ सामना करता दिखा....
 तो कुछ देर को वह कलेक्टर ही बन गया। चलिए बात आई-गई हो गई। उस घटना का क्या हुआ ईश्वर जाने....?

 हम बता रहे थे आवेश की परिस्थितियों में समाधान कैसे निकाला जाता है यह कोई लोकनेता ही बता सकता है, पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल ने वह कर दिखाया। इसलिए काबिले तारीफ है।
किंतु जब यही काम जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्रसिंह मरावी अपने सासकीय विजिट में सोनटोला रेत खदान पर करने गए थे, तो वहां पर रेत माफिया खुलेआम पंचायती सरकार के जिला प्रमुख और राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त आदिवासी नेता नरेंद्र सिंह के साथ जो गुंडागर्दी की अभद्रता की, वह सिर्फ किसी एक माफिया का पूरी पंचायती सरकार पर बल्कि पूरे शहडोल क्षेत्र के सोन नदी अथवा अन्य नदियों पर हो रहे लगातार अवैध उत्खनन की अवैध कमाई से आई गर्मी का वार था, कि उसके रास्ते पर याने "माफिया-तंत्र" के रास्ते पर कोई भी आएगा, वह जो हमारे दिए हुए टुकड़ों पर, फेके हुए जूठन पर अपना पेट पालने की कल्पना तो कर सकता है... किंतु हमारे राह का रोड़ा नहीं बन सकता।, कुछ इसी अंदाज पर उसने वह गर्मी दिखाई....  

 पिछली सरकार की की नीतियों और सोच से ही उनके अपने माफिया जन्म लिए हैं जो शहडोल जिले की रेत खदानों में "टुकड़े टुकड़े गैंग" के रूप में माफिया गिरी कर रहे हैं किंतु यही बात जब पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल से कहीं गई तो उन्होंने अपने ही नेता की कार्यवाही पर संदेह प्रकट किया कि. लोग राजनीतिक चोला ओढ़कर गलत काम करते हैं......, बजाय इसके कि वे भाजपा शासन के कार्यकाल में जन्मे "टुकड़े-टुकड़े गैंग"  रेत माफियाओं के खिलाफ गंभीर कारवाही के लिए के आश्वासन देते..। वह कहते प्रदेश स्तर पर इसकी समीक्षा करते हुए निष्पक्ष जांच कराई जाएगी, कि आखिर किस प्रकार से शहडोल जैसे पांचवी अनुसूची में संरक्षित आदिवासी विशेष क्षेत्रों पर भी  हैं और उसकी अवैध कमाई के खिलाफ कोई प्रशासनिक व पुलिस की सोच इसलिए नहीं बन पा रही क्योंकि वह रेत माफिया अपने फेंके हुए जूठन पर गर्व करता है|
हाल में आदिवासी नेताओं में सिर्फ नरेंद्र सिंह मरावी इकलौते ऐसे नेता रहे जिन्होंने धरना आंदोलन के सहारे अपनी बात को ऊपर पहुंचाने का काम किया जब वे भाजपा सरकार में थे तो अपनी ही सरकार के खिलाफ शहडोल के शिक्षा माफिया के विरुद्ध धरना आंदोलन के जरिए सर्व शिक्षा अभियान के भ्रष्टाचार को उजागर करने का काम किया था, जिसका प्रतिवेदन ब्यूरोक्रेट्स ठंडे बस्ते में डाल रखे हैं.. .. इस तरह नए परिपेक्ष में रेत  माफिया पर" बटुए का भात" की तरह जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्रसिंह मरावी की बात को क्यों नहीं माना गया ...? चलिए यहां कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि जो चुरहट से चलकर शहडोल तक कमलेश्वर पटेल जी को प्रभावित करती रही होगी, मान लेते हैं.. किंतु डिंडोरी जिले की जिला पंचायत अध्यक्षा भी यही बातचीत चीखकर चिल्ला-चिल्ला कर कहती सुनी गई है.... कि माफिया उन्हें परेशान कर रखा है| और उनकी जान को खतरा है| क्या बे भी झूठ बोल रही हैं....? अथवा राजनीति का नकाब पहनकर गलत काम कर रही हैं...? यह बात पंचायत मंत्री को जरूर सोचना चाहिए|
 जब शहडोल के पत्रकार इस विषय पर कुछ चिन्हित बिंदुओं में इशारा कर रहे थे..., बल्कि खुलकर बोल भी रहे थे कि कोई रेत माफिया नवाब, नवाबी कर रहा है ....?
तो मंत्री जी ने जवाब तो खूबसूरत दिया, प्रदेश में एक ही नवाब है... किंतु जरा मेल नहीं खाया क्योंकि इन "टुकड़े-टुकड़े गैंग" में फैले रेत माफिया, कोल माफिया, वन माफिया, शिक्षा माफिया शराब माफिया आदि आदि माफिया पर  सरकारी  समाधान के लिए कोई सार्वभौमिक सोच आश्वासन और समस्या का निदान  पंचायत मंत्री कमलेश्वर पटेल नहीं दे पाए....? क्या वे इस माफिया तंत्र से भयभीत थे.... क्योंकि उन्हें भी शहडोल और सीधी में अक्सर आना-जाना पड़ता है। और यह बड़ी-बड़ी गाड़ियां कभी भी किसी को भी कहीं भी दुर्घटना का कारण बन सकती हैं ....? क्या यही है अथवा कोई राजनीतिक  कोई बड़ी दुर्घटना का जन्म दे सकता है....? अन्यथा क्या कारण है कि मंत्री जी माफिया मुक्त अथवा माफिया उन्मूलन के लिए कोई आश्वासन जनता के प्रति अपनी जवाबदेही सुनिश्चित करने का आश्वासन नहीं दे गए....

 अब तो खुले रूप से कोई कोयला व्यापारी कोटवानी उसी सुहागपुर थाना पर आरोप लगा दिए हैं... कि संबंधित थानेदार डेढ़ लाख रुपए मांग रहा था, नहीं देने पर उसका कोयला रोका गया....  सोहागपुर  वह थाना है जहां ऐसी ही किसी गाड़ी के पकड़े जाने पर कुछ कहने पर एक पत्रकार विनय शुक्ला को गला दबाने के लिए कोई पुलिस वाला आवेश से उठ बैठा.....? कि माफिया के खिलाफ आवाज कैसे निकली, कुछ इस अंदाज पर... और जब जिला प्रमुख से तत्काल कार्यवाही की मांग की गई कि, पत्रकारिता पर यह हमला ठीक नहीं तो उन्होंने उसे शायद नजरअंदाज किया...., जब बात मंत्री तक पहुंची उन्होंने कार्यवाही करने का निर्देश दिया तो बैक-डेट पर जिला पुलिस प्रमुख का आदेश वायरल हो गया...
और यह वायरल मैसेज करने वाले की जिम्मेदारी है कि वह बताते कि आखिर यह वायरल मैसेज किन हालातों पर सड़क पर पड़ा मिला....? आखिर पुलिस प्रमुख की यह पत्र पहले वायरल क्यों नहीं हुआ.....?
 क्या यह जांच का विषय नहीं है कि कोई षड्यंत्र कहीं पर माफियाओं के हित में सक्रिय  तो नहीं है, पुलिस प्रमुख कार्यालय के फाइलों में माफिया दीमक की तरह पुलिस व्यवस्था को खा तों नहीं रहा है....? यह विचारणीय है ।

माफिया दबाव में एट्रोसिटी एक्ट 
का प्रकरण 107 /16 में बदला.....

इसी पुलिस व्यवस्था का एक धार्मिक माफिया के प्रभाव को उस वक्त देखा जब मोहन राम मंदिर मैं पल रहे इस प्रकार के धार्मिक माफिया द्वारा आदिवासियों के हितों पर बनाए गए "एट्रोसिटी एक्ट" के तहत एक आदिवासी महिला को आगे करके मामूली दुर्गा स्टेज विवाद में शहडोल के महाजनों के खिलाफ अश्लील जनक शिकायत करवाई गई ....

 और जब पुलिस उच्चाधिकारियों ने देखा इस महिला आदिवासी की इस झूठी शिकायत पर कोई माफिया संरक्षण दे रहा है तो उस झूठी एट्रोसिटी एक्ट के आवेदन को 107/16 में बदलने का और मामले को रफा-दफा करने का घिनौना काम हुआ....।
 आखिर यह कैसे तय हो गया कि आदिवासी महिला ने झूठी शिकायत की थी... और यदि उसने झूठी शिकायत की थी तो उसके खिलाफ और जिसने इस षड्यंत्र को जन्म दिया उन लोगों के खिलाफ पुलिस ने कोई कार्यवाही क्यों नहीं की..... क्या पुलिस मुख्यालय शहडोल ऐसे धार्मिक माफियाओं से भयभीत हो गया, या फिर बिक गया....?
 तो यह भी एक रूप है माफियाओं को संरक्षण देने का। ताकि मोहनराम मंदिर की लूट जमकर हो...? पुलिस और प्रशासन उसे याने धार्मिक माफिया को डाका डालने की छूट देता है....? यह स्पष्ट होता है। अन्यथा या तो दोषी महिला के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए थी,  उसे चिन्हित किया जाना चाहिए था, कि आखिर वह मंदिर में आदिवासी हितों के लिए संरक्षित कानून का अपराधिक कृत्य करने के लिए अड्डा कैसे बना ली....? कहते हैं उसी मंदिर के अंदर मंदिर के पुजारी के संरक्षण पर छुपी रही और पुलिस उसे जाकर गांव में ढूंढती रही। जो आज तक नहीं मिली....? मामला रफा-दफा हो गया।
 कोई दूसरा अवसर होता तो "महान एट्रोसिटी एक्ट" मे कोई सवर्णों या कई सवर्ण जेल में होते.... इसी पुलिस की कृपा से.....।
 तो चाहे यह धार्मिक माफिया का मामला हो या फिर रेत माफिया का, सभी माफिया जानते हैं पुलिस प्रशासन और राजनीति को कैसे नियंत्रण किया जाता है...।
 इस तरह शहडोल क्षेत्र में माफियातंत्र, लोकतंत्र को लूट रहा है.... यह पांचवी अनुसूची में शामिल करने का शहडोल का अपराध है... वैभवशाली प्राकृतिक पुरातात्विक और आध्यात्मिक विरासत का धनी सोन नदी के तट पर पल है उच्च पर्यावरण संरक्षणके क्षेत्र को हमारा लोकतंत्र बचा नहीं पा रहा है.... यह माफिया की राजनीतिक सफलता भी है....                     ( जारी भाग 3)

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