सोमवार, 11 फ़रवरी 2019




   शहडोल पुलिस-हथियार व
 पुलिस-आईकॉन किरणबेदी कंट्रोल का अंदाज 

-----------------------------------------------------------त्रिलोकीनाथ---------------------------------------------

  



      
लेडी पुलिस-आईकॉन किरण बेदी वर्तमान में पांडिचेरी की ले.गवर्नर हैं. मीडिया ने आज उनका पुलिसिया रंग में रंगा ट्रेफिक कंट्रोल सिस्टम का अंदाज का छायाचित्र कवर किया है, जिसमें वे अपने चिरपरिचित सख्त पुलिस अधिकारी के अंदाज में स्कूटर पर सवार यात्री को हिदायत देते हुए नजर आ रही हैं की "such a violation of traffic rules will not be tolerated".
इस प्रकार लोक कथाओं ने प्रचलित बातें कि व्यक्ति अपनी आदत नहीं छोड़ता सिद्ध हुई. क्योंकि किरणबेदी पुलिस विभाग में सख्त ट्रेफिककंट्रोल के लिए जानी जाती थी, दिल्ली में उनकी दहशत मील का पत्थर है. बावजूद इसके, पद और गरिमा का भी एक महत्व होता है और उसके लिए जरूरत नहीं है कि रोड में खड़े होकर ही ट्रैफिक-कंट्रोल को इस प्रकार सिखाया जाए की उनके इस अंदाज से बाप तो बाप, बेटा भी दहशत में आ जाए. यदि इतनी आवश्यकता महसूस होती है तो इसको नियंत्रित करने के लिए दो पहिया वाहनों के 
 साथ ही हेलमेट के विक्रय को अनिवार्य कर देना चाहिए. जैसे कि नए वाहनों की बिक्री का परिवहन विभाग में रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया है. लोग-नागरिक स्वयं ही वाहन चलाने के साथ उसके महत्व को पहचान लेंगे. अलग से हेलमेट लगाने का सिर दर्द या घटिया स्तर के हेलमेट की बिक्री खत्म हो जाएगी.
   किंतु ट्रैफिक रूल विल नॉट बे टॉलरेटेड सब्जेक्ट नहीं है. सब्जेक्ट है स्वयं को प्रोजेक्ट करने की, स्वयं तुष्टि करने की. अन्यथा जिन समस्याओं का निदान उसके निर्माण से ही हो जाना है उनके लिए लेफ्टिनेंट गवर्नर को सड़क में खड़े होकर न सिर्फ नागरिकों के लिए बल्कि प्रशासन के लिए भी समस्या खड़ी नहीं करनी चाहिए।
  किंतु अपने तौर तरीके और अंदाज को अपने तरीके से प्रस्तुत करना एक मानसिक कमजोरी होती है. कुछ इसी तरह का पुलिसकानूनों के पालन में आदिवासी क्षेत्र शहडोल में शिकायतें देखी जाती है. लोकतंत्र का स्वतंत्र पर्यवेक्षक पत्रकारिता उससे प्रभावित होता रहता है. यह भी कहा जा सकता है वायलेशन आफ पुलिस रूल विल नॉट बे टॉलरेटेड किंतु जब स्वयं पुलिस की व्यवस्था ऑफ द रिकॉर्ड बने कानूनों के कारण वायलेशन करती दिखती है, तो उसका क्या समाधान है...?




हाल में ही शहडोल के एक पत्रकार के साथ फर्जी मुकदमा गोहपारू थाने में दर्ज कर दिया गया. गृह मंत्रालय और पुलिसविभाग ने पत्रकारों के मामले में उच्चाधिकारियों कि बिना सहमति के प्रकरण दर्ज किए जाने पर परहेज बरतने को कहा है. किंतु थानों के ऊपर शायद इतना दबाव होता है कि वे आम नागरिकों के साथ जो बर्ताव करते हैं अथवा उनके अपने निजी-लक्ष्य पूर्ति में जो बाधा आती है उसे समाप्त करने के लिए वे तमाम प्रकार के पुलिसिया-हथियार नागरिकों को चलाते रहते हैं. उसमें गुणवत्ता काम करने के लिए यह किसी भी हद तक किसी के खिलाफ भी पुलिस ने मौके ही उल्लंघन करके आम नागरिकों के खिलाफ को परेशान करते रहते हैं.
शहडोल के श्रमजीवी पत्रकार संघ ने पुलिस अधीक्षक से इस मामले की शिकायत की है, संभव है पुलिस कानूनों के प्रति संवेदना को महसूस करते हुए तत्काल ना सही अपने ही तरीके से पत्रकार अनिल द्विवेदी के खिलाफ दर्ज प्रकरण पर कार्यवाही करते हुए तत्काल संबंधित दोषी थाना प्रभारी के खिलाफ कार्यवाही कर के ऐसा संदेश देने का प्रयास करती ताकि कोई पुलिस कर्मचारी नियमों के उल्लंघन करके नागरिकों को परेशान न करता.
 किंतु एक तरफ शहडोल में पुलिस कानून व्यवस्था की धज्जियां उड़आती है तो दूसरी तरफ पुलिस अधिकारी रही किरणबेदी लेफ्टिनेंट गवर्नर बनने के बावजूद भी यह कहते हुए वायलेशन आफ ट्रेफिक रूल्स को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, पांडिचेरी में सड़क में स्कूटर चालक पिता और पुत्र को समझा रही हैं.
 काश अपने पुलिस-आईकन से ही कुछ सीख कर शहडोल की पुलिस व्यवस्था थाना अधिकारियों को यह संदेश देने का प्रयास करती. क्योंकि पूरी पुलिस व्यवस्था भी एक सड़क की तरह होती है जिसे नियमित रूप से नियंत्रित करके रखना पुलिसअधिकारी की जिम्मेदारी होती है अन्यथा एक्सीडेंट की संभावना बनी ही रहती है.

यह कहा जा सकता है कि ऑनलाइन व्यवस्था में यदि एफआईआर कट गई है तो, देखना होगा.. तो मुझे याद है कि किस प्रकार से अमलाई थाना में रिलायंस अधिकारियों के खिलाफ गंभीरमुकदमा दर्ज कर दिया गया था, और बाद में उसे एक झटके में ऑनलाइन व्यवस्था में उड़ा दिया गया. यह तो अपनी-अपनी कला है ,पुलिस की कलाबाजी है कि वह किस प्रकार से नियम कानूनों को नागरिकों, अनुशासन के हित में उदारवादी ढंग से स्वयं को प्रस्तुत करती है.जो शहडोल पुलिस की  सक्षमता पर कई प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं..? जिसमें भ्रष्टाचार की लक्ष्य पूर्ति सर्वोच्च होता है..? और इसीलिए जो पुलिसअधिकारी शहडोल आता है वह यहां से जाना ही नहीं चाहता...?
 हो सकता है प्रभारीमंत्री ओमकार सिंह मरकाम आदिवासी क्षेत्र शहडोल के दर्द को समझते हैं और वे पत्रकारों के साथ उनकी निष्पक्षता और कलम को रोकने के लिए नियम-कानून से ऊपर काम कर रही पुलिस कानून व्यवस्था पर अंकुश लगाएं...? किंतु इसके पहले पुलिस स्वयं को अनुशासित करें, यह ज्यादा सु
खद व लोक हित में होगा. देखना होगा की कितनी जल्दी पुलिस अधिकारी अगर वह तथाकथित रूप से सैनिककार्य क्षेत्र से आते हैं तो अपने अनुशासन को नियंत्रित करने में सफल होते हैं...?

 अन्यथा शहडोल पुलिस में देश भक्ति और जनसेवा का नारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चाय बेचने से ज्यादा बढ़ा जुमला साबित होगा.

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