बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

“पत्रकार वार्ता-विहीन लोकतंत्र” में प्रभारीमंत्री ..





 पत्रकार-वार्ता-विहीन लोकतंत्र में  प्रभारीमंत्री .. 




इति-कथा..,
   .....आदिवासी-क्षेत्रे

 कांग्रेस की राजनीति की         दुकान
  “पत्रकार-वार्ता-विहीन           लोकतंत्र”..?
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___________त्रिलोकीनाथ_______________________________________ 

-------गाड़ियां आपस में टकरा गई--------------

ऐसा अक्सर हम उन जगहों से खबर सुनते हैं जहां की धुंध का वातावरण होता है की धुंध के कारण गाड़ियां आपस में टकरा गई. कमोवेश शहडोल में दीयापीपर के पास कोई धुंध नहीं था..? सब कुछ साफ-साफ था., अंधेरा भी नहीं था..? बावजूद इसके मंत्री के काफिले की गाड़ियां आपस में ऐसे टकराई जैसे कोई अनियंत्रित व्यवस्था टकरा जाती है. यह पुलिस और प्रशासन के लिए बहुत चिंतनीय है. कि आपके कौन सी कमियां थी जिसके कारण स्वयं पुलिस अधीक्षक शहडोल की गाड़ी के परखच्चे उड़ गए..? यह सौभाग्य है कि इस एक्सीडेंट में कोई व्यक्ति हताहत नहीं हुआ. किंतु यह एक्सीडेंट मंत्री के काफिले की गाड़ी मैं होने से यह जरूर प्रमाण पत्र जैसा है कि उनका काफिला लोकतांत्रिक मर्यादाओं और कांग्रेस की परंपराओं के हिसाब से अनुशासन बंद नहीं चल रहा है. कहीं ना कहीं कुछ बड़ी गड़बड़ी है. और यह गड़बड़ी खुद मंत्री की दूसरी बार शहडोल की यात्रा में देखने को मिली.

फाइवस्टार कल्चर की राजनीति

     एक काकस-माफिया जैसे मंत्री को अपने कब्जे में रखा रहा. जन-संवाद के अवसर उनके लगभग नगण्य रहे. यहां तक की पत्रकारों से संवाद का तो समय ही सुनिश्चित नहीं था. ऐसे में आदिवासी लोकज्ञान बताता है कि 70 साल बाद भी आज यदि बोरा-फट्टी लगाकर दुकान की पहुंच व्यापारी आदिवासी ग्राहकों के लिए नहीं करता है, तो आदिवासी शीशे में बड़ी-बड़ी दुकानों में घुसने की सोचता भी नहीं..? कांग्रेस को खुद की फाइवस्टार कल्चर की राजनीति से बचना चाहिए. अपनी दुकान उन्हें आदिवासियों को समझ के हिसाब से रखनी चाहिए.ताकि आम आदिवासी समाज का व्यक्ति भी कांग्रेस की राजनीति की दुकान की सीढ़ियां चढ़ सके याने उसका वोटर कांग्रेस में स्वयं को समावेश कर सके.


15 साल की भाजपा सरकार ने लोकतंत्र को क्या दिया या नहीं दिया यह विश्लेषण का विषय हो सकता है..? किंतु हाल में प्रभारीमंत्री,शहडोल ओंकारसिंह मरकाम के दूसरे दौरे से यह निष्कर्ष निकल के आया की कांग्रेस सरकार के मंत्री ने लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से जो दूरी बनाकर रखी वह लोकशाही व कांग्रेस के सिद्धांतों के विपरीत है. और भाजपा की यह विरासत कांग्रेस के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है. कांग्रेश की परंपरा में यह रहा है कि जब भी मंत्रीगण अपने क्षेत्र में प्रवास पर रहते हैं तो या तो पत्रकारिता को साथ लेकर चलते हैं अथवा उसके साथ कम से कम एक संवाद अवश्य करते हैं. वह इसलिए नहीं कि वे अज्ञानी होते हैं अथवा लोकतंत्र के ब्यूरोक्रेट्स विवेकहीन होते हैं अथवा कांग्रेसमें बुद्धिमान व्यक्तियों  सुन्यता है, बल्कि इसलिए क्योंकि देश को आजाद कराने की भूमिका में पत्रकारिता कि अधिमान्यता सिद्ध हुई है और यह पाया गया की धरातल में बल्कि आजादी के मुख्य उद्देश्य अंतिमपंक्ति के अंतिमव्यक्ति के लिए आजादी और उसे मुख्यधारा में उसकी आवाज को लाने में लोकज्ञान से सूत्र ,जानकारी अथवा अभिव्यक्ति पत्रकारिता से प्रगट होती रही है. वह सत्ता के इर्द-गिर्द सत्ता को काकस की तरह घेरकर माफियानुमा बनने से रोकने के लिए पत्रकारिता के साथ संवाद बल्कि सततसंवाद एक आवश्यक पहल है.

संगठनमंत्री  / तानाशाह का नेतृत्वविहीन गुलाम

 जिसे धीरे-धीरे भारतीयजनता पार्टी ने खत्म करने का काम किया. उसने तो जिला स्तर के अपने ही कार्यकर्ताओं के नेतृत्व को नकार दिया और यही कारण है कि बाहर से किराया का एक आदमी जो संगठनमंत्री के नाम पर हर जिले में रहता है, उन सब के ऊपर बैठा दिया जाता है, जो जिलास्तर पर समस्त कार्यकर्ताओं, पुलिस-प्रशासन को नियंत्रित करता रहा और इसी कारण वह इतना तानाशाह बन पाया. जिसके द्वारा राज्य सत्ता कहने के लिए तो जनता से चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा चलाई जाती रही किंतु वास्तव में वह उसका रिमोट कंट्रोल कहीं और होता था.
    जिससे लोकशाही को बहुत ज्यादा नुकसान हुआ और भाजपा के अंदर राजनीतिक जागरूकता, आत्मविश्वास नेतृत्वविहीन का गुलामों की तरह घर कर गई. स्थानीय नेतृत्व मैं वही होता रहा जो व संगठन मंत्री तय करता था. फिर चाहे कोई भी कीड़े-मकोड़े अथवा अयोग्य विचारधारा के लोग संगठन मंत्री के इर्द-गिर्द होते थे वह संगठन मंत्री के जरिए जिले की राजनीति का चेहरा होते थे. जिससे मूल भाजपाई कार्यकर्ता अपमानित होता रहा. और अब यही विरासत 15 साल की सत्ता के बाद कांग्रेस में आने के बाद देखी गई है.

 हाल में मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा शासन के 7 मीडिया मैन या प्रवक्ता नियुक्त किए जाने के बाद एक मंत्री ने तो बगावत ही कर दिया. और यह कांग्रेस की मूल विचारधारा के हित में है
 किंतु जिस प्रकार से आदिवासी-क्षेत्र संभाग मुख्यालय शहडोल जिले में आकर प्रभारी मंत्री ओंकारसिंह मरकाम दूसरी बार भी अपनी यात्रा के बाद पत्रकारों के साथ औपचारिक संवाद करने से बचते रहे अथवा उन्हें दोयम दर्जे का सिद्ध करने का काम करते रहे उससे कांग्रेस की लोकतांत्रिक परंपरा को क्षति पहुंची है. हालात इस प्रकार से देखे गए कि लोकतंत्र की पत्रकारिता के प्रतिनिधि भी उसी तरह प्रभारी मंत्री से ज्ञापन देने के लिए अथवा संवाद करने के लिए परेशान दिखे जैसे कि आम प्रताड़ित आदिवासी वा दलित पीड़ित परिवार परेशान होता है. शहडोल की पत्रकारिता संभाग-मुख्यालय की पत्रकारिता इसलिए भी मानी जाएगी क्योंकि जाने अनजाने शहडोल संभाग बन गया है. और वह जो भी है जैसी भी है पिछड़ी है, बड़ी है अथवा दलित पत्रकारिता है, प्रभारीमंत्री को इसी रूप में उसे स्वीकार करना चाहिए और कांग्रेस की मूल विचारधारा के हिसाब से पत्रकारों से संवाद का जगह अपनी हर यात्रा में सुनिश्चित ही करना चाहिए ताकि यह भी सुनिश्चित हो सके की कानून व्यवस्था वास्तव में चलती कैसे हैं...?
      यह अलग बात है कि प्रभारी मंत्री पत्रकारों से संवाद करने के बाद उन संवादों को तवज्जो दे अथवा न दे..? हो सकता है पत्रकार संवाद के दौरान झूठ ही झूठ उनके सामने परोस जाए किंतु सच देखने का पैमाना का आत्मविश्वास प्रभारीमंत्री को होना ही चाहिए. क्योंकि उसके पास संसाधन है कि वह झूठ को सच में देख सकता है. यही हालात नवजात सत्ता-प्रशासन के प्रभारी मंत्री ओमकार सिंह मरकाम को सर्किट हाउस में देखना पड़ा जहां उत्कृष्ट विद्या इंजीनियर कॉलेज के स्टूडेंट लीडर्स को भी मिलने से बचते दिखे..? हो सकता है प्रभारी मंत्री को उनके होने का आभास उनके इर्द-गिर्द उनको अपने काकस में समेट कर रखने वाला सिस्टम बता ना पाया हो 

 साल की इंजीनियरिंग में छात्रों का 40 साल का भविष्य ..?

अथवा आदिवासी संभाग क्षेत्र में इंजीनियर कॉलेज की शिक्षा के स्तर को वह नजरअंदाज करता हो.. और हो भी क्यों ना क्योंकि महज 4 साल की इंजीनियरिंग की पढ़ाई में छात्रों का 40 साल का भविष्य टिका होता है और यही भविष्य इस बात को सुनिश्चित करता है कि भारत का भविष्य 40 साल का कैसा होगा...? एक उत्कृष्ट ज्ञान के धारक इंजीनियरिंग के छात्र क्षेत्रीय लोकज्ञान के सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं, उनका उपयोग भी शासन व प्रशासन इस हेतु कर सकता है, किंतु अगर इंजीनियरिंग के छात्रों के साथ भी बैगा आदिवासी समाज की तरह ही व्यवहार किया जाएगा, उन्हें सुनने और समझने का अवसर ही नहीं दिया जाएगा उन्हें भीड़तंत्र की तरह समझ कर वोटबैंक के रूप में देखने का चश्मा पहना जाएगा तो यह कांग्रेस के लिए आत्महत्या का एक रास्ता है. अगर कांग्रेस पार्टी स्वयं को देश की आजादी वाली पार्टी से होने का दावा करती है तो उसे आजाद भारत और गुलाम भारत के बीच के मायने को समझना होगा. उसे लोकतंत्र की मूल भावनाओं के साथ हर व्यक्ति,  अगर वह अंतिम-पंक्ति का अंतिम-व्यक्ति भी है, के संवाद के साथ जोड़ना होगा अन्यथा चलती का नाम गाड़ी तो होता ही है.
कम से कम यह तो स्पष्ट है की नई-कांग्रेस की सत्ता नई-नई है, इस के दामन में अभी कोई दाग नहीं है और इसलिए भी कांग्रेस के प्रभारीमंत्री को भयभीत होने की जरूरत नहीं है. कि पत्रकारिता उससे कुछ पूछ सकती है वह तो सिर्फ पत्रकारिता से कुछ प्राप्त करने के लिए ही अपेक्षा कर सकते हैं. भाजपा की विरासत पत्रकार-वार्ता-विहीन लोकतंत्र की यह धरोहर प्रभारीमंत्री को अछूत ना बना दे..? यदि मान भी लिया जाए की प्रभारी मंत्री ब्रह्मज्ञानी है उन्हें पत्रकारिता की जरूरत नहीं है तो कम से कम जिला योजना समिति के बैठक में जाने के पहले पत्रकारों ने शहडोल पुलिस-प्रशासन की प्रताड़ना का एक छोटा सा ही नमूना उन्हें प्रस्तुत किया. उस पर उनका त्वरित निर्णय सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में कहीं नजर नहीं आया और ना ही आप दा रिकॉर्ड फील्ड में कहीं होता दिखा...? कम से कम जारी सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में यह तो प्रभारी मंत्री का निर्देश होना ही चाहिए था कि पत्रकारों के मामले में शासन द्वारा निर्देशित समय समय हुए पत्रकारों का पालन शहडोल पुलिस आवश्यक रूप से करें यदि ऐसा नहीं हुआ है तो यह अप्रत्यक्ष रूप से संदेश है कि वे उनका पालन करें या ना करें पुलिस राजाधिराज केशु विवेक पर सुनिश्चित छोड़ दिया गया है

 बेहतर हो कि भविष्य में प्रभारीमंत्री आदिवासी-संभाग की सुंदरता के लिए लोकज्ञान से जोड़ने का प्रयास करें और लोकतंत्र के चतुर्थ स्तंभ को बैगा-आदिवासी-पत्रकारिता ही समझ कर उनसे संवाद का समय सुनिश्चित करें. ताकि हर छोटी से छोटी बात जो भी संभव है पत्रकारिता के जरिए उन तक पहुंच सके. क्योंकि कोई भी स्वाभिमानी पत्रकार काकस की तरह मंत्री के इर्द-गिर्द खड़ा होकर लोकज्ञान की बातें शासन के मंत्री को बता पाने में शायद सक्षम ना हो..? पत्रकारिता से संवाद का अभाव कांग्रेस की विरासत कभी नहीं रही, पत्रकार हमारे मित्र नहीं हैं यह आरएसएस के मूल विचारधारा का हिस्सा है. और यह बात कांग्रेस के प्रतिनिधियों को ठोक-बजाकर अपने दिमाग में फिट कर लेना चाहिए अन्यथा जैसे 15 साल भाजपा ने नई परंपराओं का विकास किया है कांग्रेश भी सत्ता-सुंदरी को भोगे और बाय-बाय करें....




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