विनाश से हमने क्या सीखा ..?
एक था
जोशीमठ-1
.........( त्रिलोकी नाथ)..........
जोशीमठ की तरह तो नहीं...?
यह सही है कि जोशीमठ की बनावट के मलवा का उपयोग हुआ हो, लेकिन एक स्थापित स्थान और ऐतिहासिक पौराणिक स्थान के रूप में अपनी जगह बना कर रखा, तब तक, जब तक कि कलयुग का राम
राज्य आ नहीं गया.. और क्यों नहीं आएl जब गंगा प्रदूषण के खिलाफ कोई गंगा का भक्त आईआईटी से निकला पर्यावरण का वैज्ञानिक श्री अग्रवाल यह कहते हुए आमरण अनशन करते हुए मर जाएं उनकी बात सुनी जाए गंगा को बचाया जाए और रामराज्य के पोषक गंगा को नहीं बचाते और ना ही गंगा के भक्त प्रसिद्ध पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ संत सानंद को। ऐसे ही कुछ अन्य संत भी आमरण अनशन में मारे गए पर्यावरण संरक्षण की रक्षा में किंतु संवेदनहीनता की पराकाष्ठा इस कदर रही कि इन्हें खारिज कर दिया गया. क्योंकि विकास की रफ्तार में विनाश का भयावह राक्षस बढ़ता ही चला गया और इसी राम राज्य में अब हमारे इतिहास विलुप्त होने जा रहा है. एक
ऐतिहासिक पौराणिक शंकराचार्य का ज्योतिर मठ अलकनंदा की लहर में समाने जा रहा है. मानकर ही हम इस झूठ में यकीन
करना चाहते हैं कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में यदि आप अपराध करेंगे तो विनाश होना ही है इसमें लेस मात्र का संदेह नहीं करना चाहिए. और राम राज्य की सत्ता अपनी मदहोश नशे में सिर्फ बेबस, लाचार और निरी मरी हुई शासन प्रणाली का चेहरा बन गई है.
तो जोशीमठ में हमें अभी अब भी कोई शर्म नहीं आती यह सोचने में कि हम सब मिलकर शहडोल के तमाम तालाबों को नष्ट करने का काम किए हैं मुड़ना नदी और मैकल पर्वत से निकलने वाली अन्य नदी नालों को नष्ट करने में अपने विकास के नाम की बड़ी इमारत खड़ा कर दी है. जिससे यह सब नदी नाले विनाश की कगार पर चले गए हैं अथवा गंदगी का कारण बन गए हैं, हमें तो यह भी शर्म नहीं आती है कि अगर हम कुछ पल के लिए सोन नदी जल संरक्षण योजना मैं शहडोल नदी के संरक्षण के लिए काम कर रहे थे तो उसे भी षड्यंत्र करके योजना से शहडोल का नाम हटा दिए हैं, और लगातार विनाश की रूपरेखा बना रहे हैं. तो जोशीमठ हमारे इसी प्रकार के विनाश का आधार रहा है जिस कारण से जोशीमठ आज विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है. और रामराज्य के पोषक सरकारें शंकराचार्य की बनाई इस पवित्र स्थापित ज्योतिर मठ के विनाश की साक्षी बनेंगे.और 30000 जनसंख्या भरा पूरा नगर पानी में समा जाने के लिए उफान ले रहा है यही सबसे बड़ा कड़वा सच है. इसलिए हमें उल्टी गिनती गिनना प्रारंभ कर देना चाहिए. आज हम जोशीमठ के कुछ चुनिंदा विषयों पर प्रकाश डालेंगे यह सभी विषय हमें विकिपीडिया से ही प्राप्त हुए हैं हमारे अपनी कोई व्यक्तिगत खोज नहीं है.
जोशीमठ को बचाने के लिए प्रोफेसर अग्रवाल ने तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना, विष्णुगाड़-पीपलकोटी समेत गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बनने रही छह जल विद्युत परियोजनाओं को बंद करने के लिए 2018 में हरिद्वार कनखल के मातृ सदन आश्रम में निर्णायक अनशन किया था। तब की भाजपा की राज्य सरकार ने उनकी मांगों पर गौर नहीं किया। 10 अक्तूबर 2018 को ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में उन्हें गंभीर स्थिति में भर्ती किया गया। 11 अक्तूबर 2018 को उनका निधन हो गया। इस तरह उन्होंने जोशीमठ को बचाने के लिए अपने
कहा जाता है कि 8वीं सदीं में सनातन धर्म का पुनरूद्धार करने आदि शंकराचार्य जब उत्तराखंड आये थे तो उन्होंने इसी शहतूत पेड़ के नीचे जोशीमठ में पूजा की थी। यहां उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई कहा जाता है कि उन्होंने राज-राजेश्वरी को अपना ईष्ट देवी माना था और इसी पेड़ के नीचे देवी उनके सम्मुख एक ज्योति या प्रकाश के रूप में प्रकट हुई तथा उन्हें बद्रीनाथ में भगवान विष्णु की मूर्ति को पुनर्स्थापित करने की शक्ति तथा सामर्थ्य प्रदान किया। जोशीमठ, ज्योतिर्मठ का बिगड़ा स्वरूप है, जो इस घटना से संबद्ध है।
मान्यता यह भी है कि जब देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन किया गया तो उसमें 14 रत्न प्राप्त हुए थे. जिसमें एक परिजात वृक्ष भी था. जिसे देवराज इंद्र को सौंप दिया गया था. इंद्र ने हिमालय के उत्तर में सुर कानन वन में इस वृक्ष को स्थापित किया था.अब यह पेड़ 300 वर्ष पुराना है तथा इसके तने 36 मीटर में फैले हैं। यह भी कहा जाता है कि यह पेड़ वर्षभर हरा-भरा रहता है एवं इससे पत्ते कभी नहीं झड़ते। पेड़ के ठीक नीचे आदि शंकराचार्य की गुफा है तथा इसमें आदि गुरू की एक मानवाकार मूर्ति स्थापित है।
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