शुक्रवार, 24 दिसंबर 2021

किस्सा चनाराम जी का (त्रिलोकीनाथ)

 धर्म स्थल पर माफियाराज

अयोध्या से शहडोल तक


माफियारामजी का दबदबा ..




(त्रिलोकीनाथ)

क्सर शासकीय कार्यालयों में और मुख्य मार्गों पर मैंने उन्हें रामनामी चंदन लगाए हुए धोती और कुर्ते की तर्ज पर बने हुए एक लोकज्ञानी युवा विद्वान को चना बेचते हुए देखा है । इन दिनों नहीं दिखाई देते...। उन्हें देखने का शौक होता था।

 तब वे पूछते थे, "क्या लेंगे रामजी; चनाराम जी या मूंगराम जी अथवा दालराम जी...... आप कहे तो मैं इसमें मुर्राराम जी को मिला दूं ...."और फिर काफी कम पैसे  पर भरकर शानदार मिक्सर हमें खिलाते थे।

 किसी युवा आध्यात्मिक पुरुष को इस प्रकार का व्यवसाय करते हुए मैंने बहुत कम देखा है। वह शायद एक है। क्योंकि उन्हें आध्यात्मिकशब्द-सुख बांटने में और अध्यात्म सहेजने में बहुत आनंद आता रहा होगा ....। उनकी राम प्रेम की इस अनूठे व्यवसाय में शहडोल के लोग उन्हें  प्रेम से "चनाराम जी" भी कहते है।

यह अच्छा है कि पूरे भारत में पूरे धर्म में बेअदबी कानून लागू नहीं है अन्यथा हमारे टुकड़े टुकड़े करके फेंक दिया गया होता.....? और शायद इसलिए हम कह पा रहे हैं किं भगवान राम की जन्मस्थली अवध यानी अयोध्या में इस व्यवसायकला के मद्देनजर 21वीं सदी के हिंदुत्व ब्रांड से निकलकर नएराम जी पैदा हुए हैं। जहां दशकों तक, उनके अनुसार सदियों तक... धर्म युद्ध छेड़ने के बाद एक कॉर्पोरेट राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। इसे राम जन्म भूमि ट्रस्ट की संज्ञा दी गई है।

 एक पुरानी कहावत है कि "गांव बसा नहीं... लुटेरे पहले आ गए", उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी/ संत /महात्मा/ मठाधीश जो भी कहे आदित्यनाथ के राज्य में अयोध्या मे इस मंदिर ट्रस्ट के अगल-बगल लुटेरों का जमावड़ा है। कहते हैं राम जन्मभूमि ट्रस्ट इन लुटेरों का शरणगाह है ।


इन लुटेरों में पटवारी से लेकर कलेक्टर तक छुटभैया कार्यकर्ता से लेकर शीर्ष विधायक तक राम के नाम पर जमीनों की माफियागिरी कर रहे थे । कम दाम में आमनागरिकों से उनका हक लूटकर "राम का ब्रांड" बना कर उसे करोड़ों-अरबों रुपए में बाजार में बेचने के फिराक में काम कर रहे । अगर समता पूर्ण तरीके से बाबरी मस्जिद एक्शन कमिटी को दी गई जमीन के इर्द-गिर्द भी इसी प्रकार का माफिया राज होता तो शिकायत नहीं होती यह माना जाता कि लोकतंत्र यही है किंतु वहां यह चर्चा में अभी नहीं आई है बावजूद इसके की मुस्लिम धर्म के आड़ में जमीनों  का ज्यादा उपयोग देखा गया है ।

 लुटेरो का नामकरण होता "माफियाराम जी"।

 अगर हमारे चनाराम जी इस हिंदुत्व ब्रांड के अंदर रामजी को बेचकर काम करते हैं तो इन लुटेरों का नामकरण होता "माफियाराम जी"।

 तो अयोध्या में भव्यराम मंदिर के निर्माण के पहले माफियाराम जी का बड़ा बोलवाला है। भारत की बची-कुची नेतागिरी और पत्रकारिता की वजह से हिंदुत्वब्रांड की रामजी की शरण में पलने वाले तमाम माफियाराम जी अब एक्सपोज हो रहे हैं।

 बहरहाल हमें आनंद आध्यात्मिक सुख का लेना चाहिए। 21वीं सदी का आध्यात्मिक सुख अगर हमारे चनाराम जी वहां जाकर बांटते तो उसका रूप कुछ इस प्रकार होता... तो भैया जी अवध की भूमि है किससे खरीदना चाहेंगे, आप पटवारी माफिया रामजी से या एसडीएम माफियारामजी से ..इनसे सस्ती मिल सकती है, थोड़ा अच्छे माफिया रामजी कलेक्टर माफिया रामजी से लेंगे और विधायक माफिया रामजी से लेंगे की कीमत ज्यादा है.. तो ज्यादा आध्यात्मिक सुख मिलेगा। क्योंकि वह सीधे रामदरबार में रहने का सुख का आनंद आपको देंगे।

 इस तरह जन्मभूमि ट्रस्ट के इर्द-गिर्द आध्यात्मिक सुख का मल्टीनेशनलकरण हो चुका होगा। तब हमारे चनारामजी किसी फाइव या सेवनस्टार होटल की किसी साध्वी या किसी मंत्री के साथ बैठकर अपने कारपोरेट इंडस्ट्री से  माफिया रामजी की बनाई हुई जमीनों के कॉलनियों में अवध के राम  से आध्यात्मिक सुखों का धंधा ऑनलाइन भी कर सकते थे।

 किंतु जब उन्हें शहडोल जैसे आदिवासी पिछड़े क्षेत्र में चना,मूंग और दाल, मुर्रा के बीच में अपने रामजी को याद करते हुए उन्हें कण-कण में परोस ते हुए आज भी जब कल्पना में देखता हूं तो लगता है हमारे चनाराम जी हमारे जैसे ही आदिवासी किस्म के पिछड़े हुए लोग हैं। जिनका आध्यात्मिक विकास अयोध्या के हिंदुत्व ब्रांड के राम जी में और भी पिछड़ जाता ... जिसे वे कहते हैं विकास हो गया होता ....?

बेहतर है कि वह शहडोल में ही वास्तविक अध्यात्मिक सुकून से प्रेम बांटते हुए आनंद का कारोबार कर रहे हैं, अन्यथा भटक गए होते तो अयोध्या में माफियाराम जी के दरबार के भ्रष्ट दरबारी होते ।

क्योंकि अयोध्या की अति विवादित बाबरी-राम मंदिर प्रकरण का निराकरण करने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ के मुखिया पूर्व सीजेआई भाजपा के सांसद रंजन गोगोई ने जी-ग्रुप के पत्रकार चौधरी साहब से साक्षात्कार में स्पष्ट कर दिया है कि "भ्रष्टाचार समाज निर्माण के युग से चली आ रहा है अब लोगों ने इसे स्वीकार कर लिया है।"

 इस भ्रष्टाचार का मीठा जहर की नई परिभाषा में हमारे चनाराम जी कॉर्पोरेट माफियाराम जी के घटिया दलाल कहलाते हैं ,जिन्हें कॉर्पोरेट जगत में कर्मठ-कार्यकर्ता के रूप में बेच दिया गया होता। हो सकता है वे करोड़ों-अरबों के मालिक होते, किंतु साइकिल में अपने पिछड़ेपन में उनकी नजर में दलित-धारणा में तब आदिवासी क्षेत्र में वे आम लोगों को जब मिलते, तब चना मूंग और दाल में कण-कण में राम को बनाकर राम के प्रेम को शायद ना बांट पाते...।

 नफरत व भ्रष्टाचार से सत्ता का निर्माण और सत्ता में राम की मूर्ति का चेहरा तमाम प्रकार के माफियाराम जी के भ्रम में स्थापित होता जा रहा है ।त्याग, तपस्या ,समर्पण की मूर्ति रामायण के की कल्पनाकार अगर यह देख रहे होंगे तो जरूर सोचते होंगे "हां मैं मुजरिम हूं.."। मैंने ही उस राम की ब्रांडिंग की थी जहां अयोध्या में ही लैंडिंग होने के लिए हवाई अड्डे बनते हैं.. राम का भव्यमंदिर बनता है और उसमें माफियाराम जी शरणगाह बनता है।

 यह सब हम इसलिए देख पा रहे हैं क्योंकि हम शहडोल की मोहनराम मंदिर में स्थापित सत्ता के संरक्षण में तमाम प्रकार के माफियाओं की सफलता पिछले 10 वर्ष से देखते आ रहे हैं। यह अलग बात है कि यहां मंदिर की जमीन कोई कलेक्टर एसडीएम यह पटवारी अभी मंदिर की जमीन खरीद और बेच नहीं रहा । 

किंतु पुजारी पटवारी से मिलकर भू अभिलेख के खसरा नंबर 38 कि 33 डिसमिल जमीन फर्जी


संस्था के नाम से कब्जा कर लिया है तहसीलदार कोर्ट में मुकदमा लंबित होने के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है । यह भी सच है हाईकोर्ट के संरक्षण में एसडीएम सोहागपुर द्वारा निर्मित "स्वतंत्रकमेटी" के जरिए मोहनराम मंदिर भ्रामक तरीके से मंदिर की प्रॉपर्टी को माफियागिरी की तरह खुली लूट का जरिया बना दिया गया है। 

बावजूद संभावना में चनाराम जी रामराज का सुख आज भी यदा-कदा अपने व्यवसाय के जरिए बांटते रहते हैं। क्योंकि यहां संभावना जिंदा है .... वह संभावना, अयोध्या में मर रही है...। 

किसी दार्शनिक ने कहा था "धर्म अफीम के नशे की तरह होता है" तो कुछ देर के लिए धर्म का नशा छोड़ देंगे तब पता चलेगा लोकतंत्र में कितना बड़ा अध्यात्मिक नुकसान पहुंचाने का काम किया है.... फिर चाहे वह शहडोल का मोहनराम मंदिर हो या अयोध्या के रामलला जी का मंदिर..... कोई अंतर नहीं दिखेगा।

 क्योंकि भगवान रामजी को हटाकर माफियाराम जी ने गैर कानूनी अतिक्रमण कर रखा है। और जिम्मेदार कार्यपालिका मूक बधिर बनी हुई है।

 तो ठीक ही कहा है किसी ने

 "रामजी की चिड़िया, रामजी का खेत..

   चुग ले, चिड़िया भर भर पेट... 

फिलहाल माफिया रामजी जमकर चुग रहे हैं फिर वह अयोध्या हो या शहडोल क्या फर्क पड़ता है.. सत्ता का चरित्र सब जगह एक जैसा होता है। कहीं हंगामा होता है तो कहीं सांसद रंजन गोगोई के अनुसार समाज भ्रष्टाचार को स्वीकार कर लिया है..।

 तो जब कोई चनाराम जी के रामजी, एसडीएम की कुर्सी पर आएंगे, कोई कलेक्टर रामजी उन्हें कहेंगे... तब मोहनराम जी पांडे कि मोहनराम मंदिर के रामजी को माफिया रामजी से मुक्ति मिलेगी.....?

 तो देखते हैं यह सपना कब साकार होता है.....? होता भी है, कि नहीं होता....

 यह भी देखते हैं..


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