मामला लाखों की सूदखोरी का....
आखिर किन कमजोरियों से गुजर रहा है
पुलिस उमरिया का "ऑपरेशन शंखनाद"
(त्रिलोकीनाथ)
अपनी-अपनी कार्यशैली होती है अपनी-अपनी योग्यता होती है... और इसीलिए शहडोल पुलिस अधीक्षक जब सूदखोरी के खिलाफ शंखनाद चलाते हैं तो उन्हें अपने सिस्टम को किस प्रकार से सूदखोरों के नेटवर्क को ट्रेस आउट करना है जिससे कि सूदखोर पकड़ा भी जा सके और उससे प्रभावित हितग्राहियों को उसका लाभ मिल सके, इस तरह जब से पुलिस अधीक्षक अवधेश गोस्वामी शहडोल में "ऑपरेशन शंखनाद" के जरिए सूदखोर माफियाओं पर कड़ी नजर रखना चालू किया है सूदखोरी के कारोबार करने वालों पर कड़ा प्रहार हुआ है और वह लगातार दहशत में है कि कहीं उसकी बारी तो नहीं....?
किंतु जिला पुलिस अधीक्षक विकास कुमार का कार्यालय उमरिया मे यह आत्मविश्वास और सिस्टम विकसित नहीं हो पा रहा है और शायद उसके पीछे ताना-बाना यह है की उसका थाना ही सूदखोरों के संरक्षण में खड़ा हुआ दिखता है। अन्यथा नरोजाबाद और पाली क्षेत्र में सूदखोरी का पर्याय बन चुका उमेश सिंह नामक व्यक्ति किसी आदिवासी सेवानिवृत्त कालरी कर्मचारी केवल सिंह की जीवन भर की कमाई करीब 17लाख रुपए उसे सूदखोर से वापस मिल जाते। लेकिन जब पहली बार शिकायत नरोजाबाद थाने पुलिस को गई तो नरोजाबाद थाने मे बजाय सूदखोर के खिलाफ एक बड़ी कार्यवाही करने के वह सूदखोर उमेश के साथ आदिवासी केवल सिंह की मध्यस्थता कर आने लग गया। नतीजतन उसे कुछ लाख रुपए कि मध्यस्थता में और कुछ अंश केवल सिंह को पुलिस थाना नरोजाबाद दिला पाया बाकी पैसा तथाकथित समझोता नामा के मकड़जाल में उलझ गया ,जिसस निकल पाना केवल सिंह के लिए उतना ही प्रताड़ना का कारण बना हुआ है जितना कि उमेश सिंह के सूदखोरी के मकड़जाल में फंसा हुआ महसूस कर रहा है।
हाल में उमेश सिंह को जब पुलिस अधीक्षक उमरिया के दिशा निर्देश पर कुछ हजार रुपए के के मामले में पकड़ा गया तब केवल सिंह की आशा भी जाग गई कि शायद उसके साथ हो सके और वह जीवन के चौथे उम्र में भारी आर्थिक कंगाली के बावजूद पुलिस अधीक्षक कार्यालय उमरिया में अपना निवेदन लेकर पहुंचा किंतु अब उसे निराशा के चक्रव्यूह ने घेर रखा है क्योंकि जिम्मेदार जांचकर्ता एसडीओपी नरोजाबाद थाने की मध्यस्थता का हवाला देकर मामले को पटाक्षेप करते नजर आ रहे हैं। बजाय इसके कि जो भी तथ्य उपलब्ध हैं उसमें उस कम-पढ़े लिखे आदिवासी कि मदद कर हकीकत के तह तक पर पहुंच सकें। क्योंकि मामला 17लाख रुपए सूदखोरी के जरिए गायब कर देने का है इसलिए उमेश सिंह के खिलाफ सबूत भी लगभग गायब हो रहे हैं। शिवाय इसके कि नरोजाबाद पुलिस थाना मध्यस्थता करके मामले को रफा-दफा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी...?
ऐसे में संविधान की पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी विशेष क्षेत्र में कहने के लिए तो कथित सूदखोरी लाइसेंस धारी उमेश सिंह ने नासिर्फ केवल सिंह को बल्कि क्षेत्र के अन्य लोगों को अपने मकड़जाल और पुलिस थाना की सहायता से जमकर लूटा और प्रमाणित तथ्य होने के बावजूद भी युवा और सतर्क पुलिस अधीक्षक जिला उमरिया में होने के बावजूद वह अपनी पुलिस व्यवस्था में स्वयं को सफलता से बचा पा रहा है।
तो सवाल यह है फिर क्या विशेषताएं शहडोल पुलिस अधीक्षक के "ऑपरेशन शंखनाद" मे रही जिस वजह से शहडोल जिले के सूदखोर दम तोड़ते नजर आ रहे हैं... वही उमरिया जिले का सूदखोर उमेश सिंह जैसे लोग किसी छोटे केस में उमरिया जिला पुलिस का कुछ देर के लिए तो मेहमान होता है किंतु जहां भी लाखों और करोड़ों रुपयों किस सूदखोरी का मामला संभावित तौर से दिखता है वह नरोजाबाद थाने की रची गई सूदखोरी-रामायण-कथा में दम तोड़ता नजर आता है.। क्योंकि बताने वाले स्पष्ट तौर पर बताते हैं कि बाहर से नरोजाबाद क्षेत्र में आकर आजीविका पालन हेतु आया उमेश सिंह आखिर कैसे करोड़ों रुपए का आसामी चर्चा के रूप में बना बैठा है। क्या इतना पर्याप्त नहीं है की वह क्यों करके लाइसेंस धारी ब्याज में पैसा देने वाला व्यक्ति के रूप में वहां सफलता से स्थापित रहा है। और स्थानी बैंकर्स के साथ मिलकर न सिर्फ सेवानिवृत्त केवल सिंह को बल्कि कई लोगों को सूदखोरी के जरिए अपना विस्तार किया जिसके कारण उसकी शिकायतें पुलिस थाना नरोजाबाद तक आकर दम तोड़ती रही हैं।
इस तरह पुलिस अधीक्षक विकास कुमार के सूदखोरी अभियान का विकास भी नरोजाबाद थाने में आकर ठहर जाता है जो केवल सिंह के लिए केवल उसके पारिवारिक प्रताड़ना वाह बदहाली मैं जीवन जीने का का कारण बना देता है तो पुलिस अधीक्षक के लिए यह एक चुनौती भी है कि किस प्रकार से आदिवासी समाज और दलित समाज को इस सूदखोरी सिस्टमैटिक सिस्टम से न्याय दिला पाएगा...?
थाने वाले उमेश सिंह की ऑफिस की तरह उसका मेडिएशन करते रहे। ऐसे में एसडीओपी को अगर सबूत नहीं मिल पा रहे हैं तो यह जिला पुलिस उमरिया की बनाई गई सिस्टम की कमजोरी ही साबित करता है बेहतर होता जिले के युवा व सतर्क पुलिस अधीक्षक जिले स्तर पर सूदखोरी की इस नेटवर्क को विशेषकर कर्मचारी बाहुल्य क्षेत्रों में शहडोल पुलिस अधीक्षक की ऑपरेशन शंखनाद तर्ज पर उमेश सिंह जैसे बहुचर्चित प्रभावशाली वथाने को अपने करेले की तरह इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को पकड़ पाते तब भी शायद जीवन के चौथे पन में आदिवासी केवल सिंह व अन्य प्रताड़ित लोगों को न्याय मिल पाएगा अन्यथा सिस्टम ब्याज खोरी के कारोबार के पक्ष में प्रबल होता चला जाएगा ...?
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