रविवार, 26 जनवरी 2020

लोकतंत्र बनाम माफियातंत्र-भाग 3- प्रभारी मंत्री ने कहा "माफिया मुक्ति के लिए होगा श्री गणेश ....." (त्रिलोकीनाथ)

लोकतंत्र बनाम माफियातंत्र-भाग 3 
कमलनाथ का 
"माफिया मुक्त अभियान"

प्रभारी मंत्री ने कहा 
होगा,श्री गणेश .....
अब तक तो नहीं दिखा असर...?

 पंचायती सरकार प्रमुख हताश व निराश..

आदिवासी विभाग में माफियातंत्र मजबूत....
 100+कर्मचारी फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर कायम..?
हो गया अंधेरा..

(त्रिलोकीनाथ)

भारत में गुलामी से स्वतंत्रता का अनुभव किसे सुखद परिणीति के रूप में स्वीकार नहीं होगा,   लोकमान्य तिलक ने कहा था "स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं पाकर रहूंगा।"
        देश के आजादी के 7 दशक बाद भी आज यह नारा उतना ही बुलंद है, क्योंकि स्वतंत्रता विराम के लिए नही बल्कि पूर्ण स्वतंत्रता, संपूर्ण स्वराज तक होना था और इसीलिए 21वीं सदी में अन्ना हजारे के नेतृत्व में स्वतंत्रता की जो आग फैली वह पीछे मुड़कर देखने का एक बड़ा बहाना था। और अद्यतन व्यवस्था में तिलक का नारा कमोवेश सतत संघर्ष में ही स्वतंत्रता कायम है | इसलिए व्यक्ति की हो या राष्ट्र की आजादी अथवा अभिव्यक्ति की आजादी स्वतंत्रता की छटपटाहट हमेशा मांगती रहेगी।

 पांचवी अनुसूची के लिए गणतंत्र दिवस की औपचारिकता
 सिर्फ एक मेला
 आज जब 26 जनवरी 2020 को गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है । शहडोल जैसे संविधान में प्रदत्त पांचवी अनुसूची  में शामिल  विशेष आदिवासी क्षेत्र  होने की सुरक्षा में इस गणतंत्र दिवस मनाने का कोई कारण नजर नहीं आ रहा है...?  बल्कि जैसे शहडोल के बाणगंगा मेला क्षेत्र में एक मेला में भीड़ इकट्ठा होती है 

और बिना किसी निष्कर्ष के करके चली जाती है, वही परंपरागत प्रदूषण, अव्यवस्था, मिलावट पूर्ण सामग्री और पतित होता हमारी लोक कला, लोक ज्ञान के विनाश का मेला ही मुझे नजर आ रहा है। बाणगंगा मेला की सबसे बड़ी खासियत यह है शहरीकरण होने के बाद नगर पालिका प्रशासन अथवा प्रशासन इस ऐतिहासिक मेले की भूमि को सुरक्षित करने में असफल रहा है । जिससे यह सिमटता चला जा रहा है और अतिक्रमण कारी भूमाफिया जो अक्सर बाहर से आया हुआ है इसमें कोई भी एक स्थानीय आदिवासी व्यक्ति नहीं है, जो पांचवी अनुसूची का मूल निवासी है। जिसने अतिक्रमण कर रखा हो। ऐसी मेला की भूमि क्षेत्र का छोटा हो जाना अनुसूचित क्षेत्र में संविधान की सुरक्षा का पतित होने को प्रमाणित करता है । 
कमोवेश पूरे क्षेत्र में यही सब कुछ हो रहा है, इसलिए भी संविधान की पांचवी अनुसूची में सुरक्षित शहडोल जिले के लिए गणतंत्र दिवस की औपचारिकता सिर्फ एक प्रदूषित मेले के अलावा और कोई प्रथा बनकर कर होता नहीं दिखाई देता है.....?

 शहडोल क्षेत्र के लिए चलिए कुछ भी हो 15 साल की भाजपा के माफिया युक्त प्रशासन से, मुक्ति के लिए सत्ता में आने के 1 वर्ष बाद कांग्रेस पार्टी के कमलनाथ ने माफिया मुक्त राज्य बनाने का जो संकल्प लिया है, जिसके परिणाम पांचवी अनुसूची क्षेत्र को छोड़ दें तो प्रदेश में हर कहीं दिख रहा है।

माफिया मुक्ति के लिए प्रभारी मंत्री , प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा 
                होगा श्री गणेश...
गणतंत्र दिवस के पूर्व हमारे यहां भी प्रभारी मंत्री और आदिवासी युवा नेता ओमकार सिंह मरकाम ने सर्किट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके शासन की मंशा पत्रकारों से चर्चा की।  उन्होंने कहा प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए माफिया मुक्त प्रशासन का शहडोल में श्रीगणेश कर रहे हैं। गणतंत्र दिवस की शुभकामना के साथ शहडोल माफिया मुक्त होगा इसकी भी शुभकामना करनी चाहिए।
 यह अलग बात है कि जो माफिया प्रशासन के बोन-ब्लड में जा समाया है उसे निकाल फेंकने की ताकत अब तक शासन व                                                                                प्रशासन में दिखाई नहीं देती।
नरेंद्र सिंह मरावी, 
माफिया से लड़ने का जज्बा

 शहडोल में इकलौता आदिवासी नेता अभी तक कोई दिखा तो वे रहे जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्र सिंह मरावी जिन्होंने माफिया से लड़ने का जज्बा तो दिखाया और जब हिटलर का प्रशासन था यानी भाजपा की "वन-वे-ट्रेफिक" उसमें तब अपनी ही पार्टी यानी भाजपा से बगावत करते हुए उसकी बनाए हुए गुलामी की जंजीर को तोड़ते हुए, जयस्तंभ चौक में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त जिला पंचायत अध्यक्ष नरेंद्र मरावी ने धरना-आंदोलन किया। खनिज माफिया , शराब माफिया  व शिक्षा माफिया के खिलाफ। तब भाजपा का पूरा संगठन "तथाकथित अनुशासनहीन" हो चुके आदिवासी नेता नरेंद्र मरावी के खिलाफ रहे ।और अपने शासन के और प्रशासन के इशारे पर गुलामी करते नजर आए......। क्योंकि वे प्रशासन में घुसे माफिया के खिलाफ सोच पाने काफी जोखिम नहीं उठाना चाहते थे। क्योंकि सब कुछ सिस्टमैटिक था। और ऐसे माफिया ने नेक्सेस में बागी हो चुके नरेंद्र मरावी को रोना ही चाहिए था..

जिला पंचायत अध्यक्ष भी फूट-फूटकर रो रहे थे..

 और जयस्तंभ चौक में धरना प्रदर्शन स्थल पर वह माफिया के खिलाफ उस वक्त फूट पड़े थे जब संभाग के उमरिया और अनूपपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष भी उन्हें आकर सद्भावना दे रहे थे....। अखबारों में भी छापा था, वह फूट-फूटकर रो रहे थे....
 यह माफिया की लड़ाई का शुरुआत था, अंततः उन्हें भाजपा से बाय-बाय करना पड़ा....., क्योंकि भाजपा माफिया मुक्त प्रशासन के लड़ाई में नरेंद्र मरावी का साथ नहीं दे पाई। और अंततः धरना प्रदर्शन  सफल हुआ।,  एक कमेटी गठित हुई यह एक अलग बात है, कि उसका प्रतिवेदन  वर्तमान  सत्ता परिवर्तित कांग्रेस शासन में भी  प्रशासन की फाइलों में दम तोड़ रहा है....  ना तो शराब माफिया के खिलाफ ना शिक्षा माफिया के और ना ही  खनिज माफिया  के विरुद्ध  कोई दिखाने वाली सही कारवाही  सामने आई ।
सत्ता परिवर्तन के बाद भी आंदोलन के बाद आया प्रतिवेदन पर कोई कार्यवाही होती दिखाई नहीं देती।
 सत्ता परिवर्तन के 1 वर्ष बाद स्वयं को सशक्त मानकर जब जिला पंचायत अध्यक्ष राज्यमंत्री दर्जा प्राप्त कांग्रेस सरकार में पंचायती सरकार के साथ देखने वाली व्यवस्था में स्वयं को ताकतवर मानते हुए नरेंद्र मरावी जब सरकारी विजिट में पुनः खनिज माफिया को सोनटोला खदान पर अवैध रेल परिवहन काम करते हुए पाते हैं और रोकना चाहते हैं तो उन्हें वही रंग ढंग दिखता है जो भाजपा में था ।
खनिज माफिया को सोनटोला खदान पर
कांग्रेस अध्यक्ष के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस


अंततः कांग्रेस अध्यक्ष आजाद बहादुर के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी दुविधा और माफिया राज की खिलाफ बगावत की बात कहते हैं। देर-सवेर ही सही प्रभारी मंत्री जब पत्रकार वार्ता कर रहे थे, उसके ठीक पहले यह खबर आ गई थी कि खनिज माफिया के खिलाफ सोनटोला  व अन्य जगह कार्यवाही हुई है खदानें बंद हो गई है ।जो पंचायती सरकार के जिला प्रमुख के लिए संतोष की बात कही जा सकती है।

 किंतु नरेंद्र मरावी ने तो "बटुए का भात" पकड़कर टेस्ट किया था कि क्या चावल पक गया है....? पूरे जिले में खनिज माफिया की अंधाधुंध लूट छुपी हुई नहीं है... प्रभारी मंत्री द्वारा घोषित बंद रेत खदान बिना किसी चिंता के जमकर अवैध  निकासी कर रही हैं..... यही आलम लूट के स्वर्ग बन चुके व्यवहारी क्षेत्र में ही नहीं, पूरी सोन नदी व संभाग की तमाम खनिज व्यवस्था में खुलेआम दिखता है।
 तो क्या शासन और प्रशासन इस माफिया के सामने असफल हो चुका है...., हमारा लोकतंत्र, क्या माफिया तंत्र के सामने घुटने टेक चुका है... यह बात इसलिए कहानी नहीं होगी क्योंकि परिणाम मूलक कारवाही का शीघ्र श्री गणेश अभी तक नहीं किया गया है...?

 जिसकी शुरुआत सिर्फ खनिज माफिया के हिसाब से शहडोल संभाग क्षेत्र में खासतौर से रीवा और सतना की ओर जाने वाली अवैध रेत भंडार परिवहन के लिए बैरियर लगाकर अथवा लगे लगाए बैरियर पर सीसीटीवी के जरिए तत्काल निगरानी क्यों नहीं प्रारंभ की गई...., यदि ऐसा मामूली सभी प्रयास प्रशासन करता नहीं दिखाई देता है तो उसकी मंशा पांचवी अनुसूची में हो रही लूट को अनदेखा करना जैसा है। सीसीटीवी के जरिए निगरानी बिना किसी खर्च के प्रशासन को नियंत्रित करने जैसा है। किंतु इससे माफिया तंत्र के टूटने का बड़ा जोखिम और उससे आने वाली अवैध आमदनी के घाटे का प्रश्न माफिया राज को खत्म करने के लिए एक बड़ा संदेश होगा।

 शिक्षा  माफिया 
 अगर माफिया के खिलाफ श्री गणेश हो गया है तो उसकी शुरुआत पंचायती राज व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने वाले नियत से होना चाहिए.... आखिर पंचायती सरकार की कल्पना त्रिस्तरीय पंचायती राज की व्यवस्था को मजबूत करना कांग्रेस का संकल्प था..., भाजपा ने तो उसे कमजोर करने का काम किया था। तो फिर जिला पंचायत प्रमुख के धरना आंदोलन से जांच प्रतिवेदन का बिंदुवार समाधान का प्रदर्शन क्यों नहीं होना चाहिए।



 और तब जबकि अब सर्व शिक्षा ही नहीं बल्कि पूरे शिक्षा महकमा में आदिवासी विभाग शिक्षा में स्पष्ट रूप से वर्षों से अंसारी नाम का माफिया आदिवासी विभाग को चारागाह के रूप में उपयोग कर रहा है, तब जबकि अनुसूचित जनजाति आयोग शहडोल के आदिवासी विभाग मात्र को संदेश देता है कि कैसे सैकड़ों अपात्र लोग सरकारी नौकरी में फर्जी जाति प्रमाण पत्र बना कर पांचवी अनुसूचित क्षेत्र पर लूट का आलम मचाए हुए हैं ।और अंसारी जैसे लोग इस आलम को बरकरार रखने के लिए माफिया तंत्र के रूप में जड़े जमा ली हैं... कोई भी व्यक्ति कहीं भी फर्जी सिग्नेचर करके किसी की भी नौकरी आदिवासी विभाग में लगवा लेता है.... सूचनाएं होने पर अफसरों की चांदी कटती है.... यह भी माफिया तंत्र है।
 इस तरह प्रशासन की चुस्ती जब तक वर्षों से एक ही स्थान पर काम कर रहे छोटे से बड़े कर्मचारियों का आमूलचूल परिवर्तन करके उन्हें दूसरे जगह भेजते हुए नहीं दिखेंगे तब तक माफिया तंत्र का अंधेरा कायम रहेगा।
 और जिसका निष्कर्ष हाल में देखने के लिए मिला जब करोड़ों अरबों रुपए का बजट धारी आदिवासी विभाग के कार्यालय में अंधेरा छा गया... क्योंकि उनके द्वारा तथाकथित बिजली बिल भुगतान के लिए पैसा नहीं है, और दूसरी तरफ कहते हैं किसी एक खाते में करोड़ों रुपए अवैध रूप से पड़े हुए हैं... तो बुढ़ार ब्लॉक में तथा अन्य विकास खंडों में मनमानी तौर पर शासन के निर्देश के बावजूद भी लाखों रुपए छुपाकर यहां के वहां कर दिए गए... और बिजली बिल का पैसा भी भुगतान नहीं किया.... इसे ही कहते हैं कि लोकतंत्र पर हावी है माफिया तंत्र......?
 क्या माफियातंत्र से निपटने में हमारा लोकतंत्र फेल हो रहा है......?
                                                                                                         ( जारी)

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