शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

भारतीय पत्रकारिता का चंद्रयान रवीश कुमार ( त्रिलोकीनाथ )





🇮🇳 🇮🇳आज भी खरे हिंदी पत्रकार  🇮🇳  🇮🇳


भारतीय पत्रकारिता का चंद्रयान रवीश कुमार

(    त्रिलोकीनाथ   )
"डरी हुई पत्रकारिता मरा हुआ नागरिक पैदा करता है"

...और भारत सहित पूरी दुनिया रात को इंतजार कर रही थी कि चंद्रयान जब चंद्रमा की सतह पर उतरेगा तो मानव जीवन का इतिहास कैसे चंद्रमा के लक्ष्य को प्राप्त कर लेगा...? "चंदा मामा" इतनी करीबी से हमारे पास होंगे...., किंतु अंतिम समय में इसरो का संपर्क लेंडर से टूट गया... और लक्ष्य फिर एक बार दूर हो गया । 
बावजूद इसके यह असफलता भी एक बड़ी उपलब्धि के रूप में भारतीय वैज्ञानिकों के लिए बधाई का पात्र बन रही है..।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के युवा नेता राहुल गांधी आदि लोगों ने वैज्ञानिकों के उत्साहवर्धन में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । उनकी असफलता पर निराशा की बजाए उपलब्धि को, उनके प्रयास को ही एक उपलब्धि बताया... चांद से इतने निकट पहुंचना भी ख्वाबों की दुनिया में जाकर खो जाना है.....

      बहराल चंद्रयान अपने लक्ष्य को पहुंचा हो या ना पहुंचा. किंतु मनीला में हिंदी पत्रकारिता का भव्य चेहरा बन चुका रवीश कुमार जब रेमन मैग्सेसे अवार्ड लिए तो लोगों ने  मनीला पहुंचे NDTV के रवीश कुमार से जब  सवाल पूछा गया कि उनको पीएम मोदी ने अभी तक बधाई नहीं दी है...?
 तो इस पर उन्होंने कहा, 
"कोई बात नहीं पीएम मोदी ने बधाई नहीं दी. उनका बधाई नहीं देना भी बधाई है".'

 आपको बता दें कि इस सम्मान को पाने वाले रवीश कुमार हिंदी मीडिया के पहले पत्रकार हैं. देश की आजादी के सात दशक बाद या कहना चाहिए स्वतंत्रता की इतिहास में हिंदी पत्रकारिता को मिला यह सम्मान चंद्रयान के लक्ष्य से कमजोर नहीं था..... उस दौर में जबकि पत्रकारिता के सभी संभावनाओं के दमन, उसकी रचनात्मकता नागरिक आजादी का सबसे बुरे दौर में.., तमाम अत्याधुनिक संसाधनों से संपन्न सत्ता के अहम से टकराकर पत्रकारिता की स्वतंत्रता को जीवित रखकर पत्रकारिता करने वाली हिंदी का कलमकार कैसे हताशा और निराशा के माहौल के बावजूद एक अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पा लेता है....., यह भारत के नागरिकों की और उसमें भी पत्रकारों विशेषकर हिंदी पत्रकारिता के जमात की एक बड़ी उपलब्धि है....
 ठीक ही सोचा है रवीश कुमार ने, उनका आदर्श उन्हें इस पुरस्कार को लेते वक्त अनुपम मिश्र की को याद किए बिना पुरस्कार प्राप्त करने की प्रक्रिया लक्ष्य विहीन हो जाती। जब कोई नागरिक प्रतिनिधि अंतर्राष्ट्रीय मंच से स्वयं को प्रमाणित कर रहा होता है, तो वह उस जमीनी हकीकत को भी प्रमाणित करता है जिसको लेकर प्रायोजित तरीके से ही सही किंतु दिखने वाले और होने वाले वास्तविक सत्य पानी की समस्या को लेकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत  के प्रधानमंत्री श्री मोदी का लाल किला से जताई गई चिंता को अभिभूत करने वाला बाजारवाद में वैज्ञानिक युग का लोकविद्या का ज्ञानी अनुपम मिश्र की लिखी उनकी कृति "आज भी खरे हैं तालाब....."  को सहसा सम्मानित करा देता है।
 आज भी खरी है हिंदी पत्रकारिता और उसके सकल अभियान जैसे ही रवीश कुमार ने मनीला में जाकर पुरस्कार ग्रहण करते वक्त अनुपम मिश्र को याद किया तो मानो कि लेंडर ने चंद्रमा के धरातल को छू लिया हो...... यह भारतीय चंद्रयान रवीश कुमार की सतत संघर्ष की उपलब्धि है.... उनके शब्दों में नागरिक पत्रकारिता, लोकज्ञान की पत्रकारिता का जैसे लक्ष्य पा लेना है।
 निश्चित तौर पर वे बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं⚘🇮🇳⚘ 

भारतीय पत्रकारिता समाज में यह अहम दिन था 
अब बात करते हैं प्रधानमंत्री मोदी  ने बधाई नहीं दिया और उससे ज्यादा रवीश कुमार का जवाब कि उनका बधाई न देना ही एक बधाई है । दरअसल जाने अनजाने व्यक्तिगत जीवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी संपूर्ण सोच के और उनके अपने समाज के लोक प्रतिनिधि बन गए हैं। जो चाह कर भी पत्रकारिता की स्वतंत्रता का पक्ष-धर नहीं रहे....।
 उनकी जमीनी विरासत मैं यह बात दबे पांव ही सही खुलकर आ चुकी है की उनका समाज-विकास "पत्रकारों को मित्र" नहीं कहता और वे जिस "सबका साथ सबका विकास" की बात करते हैं उसमें पत्रकारिता चट्टान की तरह खड़ी हो जाती है ।और बाधक होती है.. । इसीलिए चाह कर भी श्री नरेंद्र मोदी उन्हें बधाई नहीं दिए.... और यह "बधाई ना देना भी" चंद्रयान रवीश कुमार के लिए खुली बधाई है.... कि वे सचमुच पत्रकारिता के सभी आयामों को हासिल कर लिए..., अभिव्यक्ति की आजादी का यह गुलामी का दौर है लेखकों की दुनिया में जब मोदी-वन की सरकार में इस्तीफा का दौर चल रहा था, तब भी अभिव्यक्ति की आजादी एक कारण रही., यह मोदी-टू की सरकार है ...., जहां सरकारी नौकरी पर काम कर रहे दो युवा आईएएस अफसर अभिव्यक्ति की आजादी के पक्ष में खड़े होकर मोदी-टू की सरकार की गुलामी करने से मना कर दिया और इस्तीफा दे दिया...।
तमाम आंतरिक दमन और शोषण के बावजूद स्वतंत्रता की डोर से जुड़े मुरली मनोहर जोशी ने कहा, "भारत को ऐसे नेता की जरूरत है जो पीएम से निडर होकर बात कर सके, प्रधानमंत्री से मुद्दों पर बेखौफ होकर तर्क कर सके और बिना डरे अपने विचार व्यक्त कर सके बिना इस बात की चिंता किए कि उनकी बातों को सुनकर प्रधानमंत्री खुश या नाराज होंगे." 
 यानी इन्होंने हिंदी पत्रकारिता के चंद्रयान रवीश कुमार के पक्ष में उनकी बातों का समर्थन किया है..., यह बात जितनी जल्दी "सबका साथ-सबका विकास" ब्रांड वाली सरकार को समझ में आ जाएगी उतना ही अच्छा है....।
 यह बात "आज भी खरे हैं तालाब" पूंजीवादी व्यवस्था और संसाधनों के बाजारीकरण को करने वाले प्रबंधन को जितनी जल्दी समझ में आ जाएगा उतना ही भारत की आजादी के लिए हित बद्ध है.....।🇮🇳
 बहरहाल आदिवासी धरा शहडोल से नागरिक पत्रकारिता के पक्षधर हमारे जैसे लोगों की तरफ से हिंदी पत्रकारिता के चंद्रयान के सफल प्रक्षेपण और लक्ष्य हासिल करने के लिए रवीश कुमार को बहुत-बहुत बधाई....⚘🇮🇳 त्रिलोकीनाथ🇮🇳

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