क्या सूदखोरों के लिए काम करती है हमारी पुलिस......?
सोहागपुर थाना में भी हुई थी लीपापोती "बेनामी माफिया" को मिली जमानत..?
मामला नौरोजाबाद थाना सूदखोरी का सोहागपुर में भी नहीं हुआ था न्याय...
( त्रिलोकीनाथ )
शहडोल । मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने आदिवासियों में सुरक्षा व स्वावलंबन तथा शोषण के विरुद्ध सूदखोरी के उन्मूलन के लिए नई कानूनी व्यवस्था का निर्माण किया है और सूदखोरी को आदिवासी क्षेत्रों में पुनः प्रतिबंधित किया है। पुनः प्रतिबंध का मतलब, वैसे ही आदिवासी क्षेत्रों में विशेषकर पांचवी अनुसूची में शामिल आदिवासी विशेष क्षेत्रों में सूदखोरी के सभी तथाकथित लाइसेंस निरस्त हो गए हैं। इसके बावजूद भी आदिवासी विशेष क्षेत्रों में जहां प्राकृतिक संसाधन कोयला खनिज, वन संपदा भरपूर हैं वहां पर सूदखोरों का विशेषकर बिहार और उत्तर प्रदेश से आए सूदखोरों का जमावड़ा है। इसमें धनपुरी और बूढ़ार के कई सिंधी भी शामिल है जो भाजपा केेे बड़े नेताओं के रूप में स्थापित है। वे पुलिस के साथ तालमेल करते हुए एक अघोषित शोषण की व्यवस्था को कायम किए हुए हैं, जिसमें पुलिस के भ्रष्ट अफसरों के लिए "एक अघोषित नियमित बैंकिंग प्रणाली स्वनिर्मित व्यवस्था" का हिस्सा बन गई है और इसी कारण पुलिस चाह करके भी इस "अघोषित व्यवस्था" को खत्म नहीं करना चाहती..।
यह कम से कम नौरोजाबाद कॉलरी कर्मचारी विशेषकर आदिवासी कर्मचारियों के साथ प्रमाणित होता दिखता है...।
एक सूचना की माने तो नौरोजाबाद के केवल सिंह जब 2002 में कर्मचारी के रूप में कार्यरत थे तो करीब 30हजार रुपये, बिहार से आकर कथित तौर पर ट्रांसपोर्ट का काम और मूल रूप से ब्याज पर पैसा चलाने का कारोबार करने वाला उमेश सिंह से 10-10000 करके तीन बार उधार लिया । केवल सिंह की माने तो यह राशि हर माह ब्याज सहित उसे कुछ ही महीने में पटा दी गई। बावजूद इसके पूरे क्षेत्र का प्रशासनिक वातावरण इस प्रकार का रहा कि यह राशि शोषण और दमन की चरम स्थिति में 2011 तक केवल सिंह के रिटायरमेंट और उससे मिलने वाली समस्त राशि जो करीब पौनेसत्रह लाख रुपये थी जब उसके खाते में आई तो उमेश सिंह ने केवल सिंह का एटीएम उससे ले लिया। ताकि ब्याज की राशि वसूली जा सके और फिर शोषण और दमन का दबाव इस प्रकार का था कि 1 साल के अंदर यह राशि उसने 20-20 हजार करके निकाल ली। क्षेत्र के बैंककिंग कर्मचारी भी इसमें शामिल रहते हैं इसलिए इस प्रकार की निकासी पर वह कभी प्रश्न नहीं खड़ा करते ....? और यह संज्ञान में आने के बाद कि उसकी राशि निकल गई है।
केवल सिंह शोषण की प्रक्रिया से दावाव से गुजरते हुए अंततः 7 वर्ष बाद थाना और पुलिस के पास न चाहते हुए भी शिकायत करता है, केवल अकेला नहीं है, इस प्रकार की शिकायत करने वालों में, कई लोग हैं जो शिकायत करते हैं और उनकी शिकायतें दबी रह जाती हैं। ऐसे थानों में....। कहते हैं उमेश सिंह की कई शिकायतों को पाली और नरोजाबाद थानों में इसी प्रकार से कचरे में फेंक दिया गया....?
तो केवल सिंह की भी शिकायत दबी रह गई। लिखा पढ़ी होने के बाद सबसे पहले अगस्त 2018 में एक प्रतिवेदन पुलिस अधीक्षक उमरिया को भेजा जाता है। जिस पर तत्कालीन थाना प्रभारी अनूप सिंह द्वारा यह प्रदर्शित किया जाता है की केवल सिंह और उमेससिंह के अच्छे संबंध थे और वे आपस में लेनदेन करते थे। उल्टा केवल सिंह को पूंजीपति साबित करते हुए प्रतिवेदन में जानकारी दी गई कि उमेश सिंह के पास पैसा नहीं था इसलिए वह पौने तीनलाख करीब केवल सिंह से लिया था और उसमें ₹2,25,000 लेना बाकी रह जाता है। विवाद ना हो इसलिए थाना ने अपराध क्रमांक 529/ 18 में 107/116 की महान कार्यवाही करते हुए प्रकरण बाउंड ओवर करने का काम किया।यह पहला अवसर है।
केवल सिंह जो आदिवासी होने के साथ बहुत सजग नहीं है उससे लिखा पढ़ी और समझौता कराकर के पुलिस मैटर को क्लोज करती है। यह पुलिस की कॉलरी क्षेत्रों में एक व्यवस्था है.... जो सूदखोरी के "अघोषित बैंकिंग प्रणाली" को बनाए रखती है ।
जबकि केवल सिंह प्रमाणित रुप से एक हिसाब भी देता है कि किस प्रकार से लाखों रुपए का लेनदेन सूदखोर के साथ रहा। बहरहाल पुलिस और सूदखोर की भ्रष्ट व्यवस्था में एक समझौता भी कराया जाता है, किंतु वह ठीक से पालन नहीं हो पाता क्योंकि सूदखोर को मालूम होता है कि पुलिस अंतत उसका अघोषित स्टाफ है जो उसके लिए काम करता है ।आदिवासी संरक्षण के लिए कतई नहीं ...? और यह गलतफहमी उस वक्त टूट जाती है जब पुन: एक अन्य शिकायत का प्रतिवेदन पुलिस अधीक्षक को एसडीओपी द्वारा करीब 10 महीने बाद 2019 में पुणे भेजा जाता है ।जिसमें कमोबेश बातें तो वही रहती हैं किंतु पुलिस के साथ यह समक्ष में बैठकर अघोषित बैंकिंग प्रणाली में एक समझौता नामा पुन: बनता है, उपनिरीक्षक रमाकांत त्रिपाठी के समक्ष आए तथ्यों के अनुरूप एक पुरानी टाटा सुमो को ₹240000 मैं उमेश सिंह से खरीदने का नई कहानी गढ़ी जाती है अतीत रूप से बोलेरो गाड़ी बताई गई थी....? उस पर भी सूदखोर को गरीब दर्शाया गया और पैसे की कमी के कारण केवल सिंह से तीन लाख रुपये उधार लेना बताया गया।
जबकि केवल सिंह आदिवासी लगातार बताता रहा और हिसाब देता रहा कि किस प्रकार से लाखों रुपए जब उसके खाते में आए तब उसका एटीएम सूदखोर उमेश सिंह अपने पास रख लिया और 1 साल उससे लगातार राशि निकालता रहा। इस प्रकार करीब पौने 17 लाख रुपये वह निकाल लिया और पूरा लेनदेन इसी हिसाब का है। जिसका हिसाब पत्रक भी वकायदे थाना प्रभारी को दिया गया है। और थाने में जमा भी है। फिर भी थाना प्रभारी और पुलिस की व्यवस्था केवल सिंह को ही पूंजीपति मानते हुए और उमेश सिंह को उधार लेना लेने वाला घोषित करते हुए उच्चाधिकारियों को भ्रमित करने वाला प्रतिवेदन भेजती रही।
बजाय इसके कि, अगर पांचवी अनुसूचित क्षेत्र में सूदखोरी बंद है तो एक चिन्हित हो रहे हो रहे सूदखोर को प्रमाणित करते हुए वह उसके तथाकथित प्रचारित "ब्याज के लाइसेंस" को निरस्त कराते हुए संबंधित दांडिक प्रकरण दर्ज किया जावे.... किंतु ऐसा करने से बिहार या उत्तर प्रदेश से आए सूदखोरों का अघोषित जाल टूट जाता और यही थाना नौरोजाबाद की अघोषित बैंकिंग प्रणाली जिसमें दिखने में सब शामिल दिखते हैं चाहे वह बैंक हो या थाना पुलिस हो अथवा सूदखोर इस व्यवस्था को बनाए रखने के लिए अंतत: प्रयास बनाए रखे जाते हैं।
बहरहाल अब मामला पुलिस अधीक्षक उमरिया जिला से हटकर संवेदनशील पुलिस महानिरीक्षक शहडोल के समक्ष प्रस्तुत हुआ जिसका निराकरण फिलहाल 1 माह बाद भी न कर पाने की वजह भ्रामक तरीके से पुन: करीब 17लाख रुपए की हेराफेरी के मामले में औपचारिकता पूरी की जा रही .....?
यहां उल्लेख करना उचित होगा कि ऐसे ही एक मामले में सुहागपुर थाना शहडोल में गोरतरा की सनसतिया बैगा का मामला अंततः पुलिस और प्रशासनिक उच्चाधिकारियों के संज्ञान में आया। इसके बावजूद भी थाना सोहागपुर के लोगों ने सूदखोर के साथ मिलकर उसकी करीब 2 एकड़ जमीन में बेनामी संपत्ति का मामला दर्ज न कर, जातिसूचक गाली गलौज आदि का मामला दर्ज कर प्रकरण को पटाक्षेप करने का काम किया...। यह सही है सुहागपुर पुलिस सूदखोर और बेनामी संपत्ति का माफिया को जेल में बंद करने में कायम रहे और कानून का डर भी दिखाया बावजूद इसके वह यहां भी नौरोजाबाद थाना की पुलिस की तरह सूदखोर और बेनामी संपत्ति के माफिया के हित में काम करती प्रमाणित हुई ।क्योंकि यह अपराध की काली दुनिया में "अघोषित बैंकिंग प्रणाली" को बचाकर रखने का एक प्रयास दिखा। क्योंकि यहां भी बार-बार सनसतिया कहती रही कि उसकी संपत्ति बेनामी तौर पर अभिषेक सोनी नामक एक भूमाफिया ने धोखाधड़ी करके हड़प ली है और वह जान से मारने की भय का वातावरण बनाए रखता है...? बहरहाल..,।
देखना होगा की शहडोल के संवेदनशील पुलिस महानिरीक्षक के संज्ञान में आने के बाद भी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा घोषित आदिवासी हितों के लिए संरक्षित शुद्खोरी की नीति पर कोई कार्रवाई होती भी है या फिर सूदखोरी के इस कालरी क्षेत्र में और आदिवासी क्षेत्रों में अघोषित बैंकिंग प्रणाली से लूट का आलम जारी रहता है....? जिसने फिलहाल अभी तक तो सूदखोर को बचाकर रखने में थाना नौरोजाबाद कामयाब होता दिख रहा है...?
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