शनिवार, 25 अगस्त 2018

एशियाड , अपना सातवां गोल्ड भारत ने जीता


  

  एशियाड , अपना सातवां गोल्ड भारत ने जीता

            भारतीय युवा खिलाड़ियों के लिए, हार्दिक-शुभकामनाएं. बहुत-बहुत शुभकामनाएं

(वरिष्ठ पत्रकार त्रिलोकीनाथ की खास कलम से)

आज एशियाड का अपना सातवां गोल्ड भारत ने जीता. कल भी, पहले भी सुना था गोल्ड जीता, सिल्वर वगैरा भी किंतु मेरी रुचि है, वह जाग ही नहीं पाती. कि मैं खेल समाचार सुना या उसे देखूं. क्योंकि प्रभाषजोशी जैसे पत्रकार अब है ही नहीं; जो यह लिखते हो फ्रंट पेज में कि जब भारत विश्व रिकॉर्ड बना रहा था, तो दिल्ली में अपने कमरे में मैं मच्छर मार रहा था. क्योंकि लाइट बंद थी.”
      सच में देश की लाइट आज बंद है. और हम मच्छर भी नहीं मार रहै, क्योंकि डेंगू-वेगू... पता नहीं कैसे-कैसे मच्छर पैदा हो गए हैं, किसे-किसे मारे किसे-किसे भगाएं. मच्छर जहां जब चाहता है काट कर हमें भाग जाता है. हम उन्हें पहचानने में ही अपना समय व्यतीत कर देते हैं या फिर किसी किसी बड़ी बीमारी में फंस जाते हैं. ऐसा ही देश में हो रहा है. भारत की पत्रकारिता के पतन का शायद गंभीर दौर चल रहा है. यही कारण है कि एक-आध TV चैनल NDTV जैसे अथवा पुण्यप्रसून बाजपेई पत्रकार पैदा होते हैं और उन्हें कौन मच्छर काटता है, यह तो चिकित्सक बता सकते हैं.

 कोई शक भी नहीं है इसलिए भारत की अंतिम-पंक्ति के अंतिम-व्यक्ति की नागरिकता के दर्जे के हम-लोग सिर्फ सुन सकते हैं और देख सकते हैं, जो हो रहा है; उसे रोक सकते हैं, जब वोट का वक्त आएगा तो एक वोट भी डाल सकते हैं. तब तक हमारी मानसिकता गुलामों की तरह हो जाती है. क्योंकि पत्रकारिता बुरी तरह से बीमार है. सभी वीडियो चैनल, मीडियामालिक इन्हीं के लिए कॉर्पोरेट घराने हो गए हैं. इन्हीं के लिए भारत की संपूर्ण व्यवस्था की सांसें इन दिनों चल रही है .


   आध्यात्मिक की दुनिया में अपनी अपराध की सफलता के आयाम छू चुके, आसाराम, रामरहीम और फलाहारी प्रपन्नाचार्य जैसे बाबा सैकड़ों की गिनती में प्रमाणित हो चुके हैं. कि वे अपराध का डिग्री-धारी व्यक्ति हैं. बाबा रामदेव जैसे नए कारपोरेट बाबा का जन्म भी हो चुका है. तो फिर हिंदू-मुस्लिम,सवर्ण-पिछड़ा-दलित, गाय-गंगा, काशी-मथुरा-अयोध्या के राम, मंदिर-मस्जिद के सभी कार्ड बीते 4 साल में जम के खेले जा चुके हैं. बचा-खुचा  उच्चतम न्यायालय में 21वीं सदी का आरक्षण की दलित-मानसिकता का खेल में भारतीय संसद में चार-दलित और एक गैर-दलित ने मिलकर फतवा भी जारी कर दिया. जिससे  गैरदलितों में भय का वातावरण तथा दलितों में गर्व का वातावरण पैदा हो गया. भारत दलित और गैर-दलित दो-जातियों में बट भी गया.

      दुर्भाग्य से यह समयचक्र भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेई को अपने आगोश में लिया. यह भी एक बड़ा इवेंट  सत्ताधारी भारतीयजनता पार्टी के लिए बना.  मृत्यु-उत्सव का जश्न मनाने की घोषणा हो गई. सत्ताधारी संगठन की ताकत से भारतरत्न अटलबिहारी वाजपेई के कथित अस्थि-विसर्जन का ब्रांड पैदा किया गया. हिंदू विधाओं के विपरीत जगह-जगह अस्थि कलश  की यात्रा निकाली गई.
    क्योंकि मैं ब्राह्मणों में गर्ग ब्राह्मण हूं, इसलिए मुझे श्रुतियों में बताया गया कि यह हिंदू-विधाओं के खिलाफ है. कई भाजपा के लोग इस मृत्यु-उत्सव में जमकर ठहाके लेते जाने की खबरें और जश्न मनाने की खबरें भी सामने आई...? कैसे सातदिवस का राजकीय शोक, शोक-दिवस किसी के लिए शुभदा का इवेंट बनाया जा सकता है, यह बाजारवाद खुल कर दिखाया.  पतन के दौर की पतित-अवस्था और उस पर भी मानसिक-प्रताड़ना को जमकर प्रचार प्रसार भारतीय पत्रकारिता ने अपने तरीके से किया. तो कारपोरेट मीडिया-घराने के भोंपू TV चैनल्स जमकर भोंकते भी रहे. इसी दौर में प्रकृति की प्रताड़ना ने जैसे दंडित करने के लिए भारत के केरल राज्य में दुख का पहाड़ ला दिया, बाढ़ हिला दिया. संपूर्ण चिंतन-मंथन स्थिति में उसके लिए भी स्वदेशी और विदेशी मदद उसी प्रकार से विवादित रहे, विवादित बनाया गया. जैसे इमरान के प्रधानमंत्री बनने पर सिद्धू का निमंत्रण जमकर सिद्ध किया गया.


     इस सबके बीच में इतना हो हल्ला हुआ कि कब एशियाड शुरू हो गया हो गया, खेलकूद हो गए, कब हमारे खिलाड़ी चांदी और स्वर्ण पदक बरसाते रहे, हमें पता ही नहीं चला. हो सकता है कुछ रिकॉर्ड भी बनते रहे हो. किंतु हम और अंधियारे की घटा में भारत में विवादों के भारत में कुछ इस प्रकार से फंसे रहे कि हम को अलग-अलग प्रकार के मच्छर बुरी तरह से काटते रहे. हम उसमें व्यस्त रहे .खेल की दुनिया में स्वस्थ एशियाड के रोमांचकारी खेल से मोहताज हो गए, खेल की दुनिया में बरसते स्वर्ण और रजत ताम्र पदक को हम अनुभव नहीं कर पाए. कि वह कब, कैसे बरस रहे हैं. क्योंकि अंधेरा घना है, लाइट तो चालू है..... इसके बावजूद मच्छर भी काट रहे हैं. यह दुखद है, बहरहाल हार्दिक शुभकामना है कि मेरे देश के बच्चे इस अंधियारे से बाहर स्वर्ण और रजत पदक बरसा रहे हैं. मुझे उन पर गर्व है. रहकर.. ठहरकर..., मैं जरूर उन्हे अंतर्राष्ट्रीय-महाराज मल्टी-नेशनल के Google महाराज हमें अपनी संजय-दृष्टि से उसे दोबारा देखने का अवसर दें .


 पुन: बहुत-बहुत बरसते पदों के लिए हार्दिक-बधाई : इन स्वर्ण और रजत पदक को से भारत की राजनीति कुछ सीख पाती.  अन्यथा जो हो रहा है, भारतरत्न के साथ. इस देश के साथ, वह भी समय चक्र का एक पल है. जो गुजर ही जाएगा. तो भारतीय युवा खिलाड़ियों के लिए, हार्दिक-शुभकामनाएं. बहुत-बहुत शुभकामनाएं क्योंकि भविष्य इन युवाओं की खिलंदड़ स्टाइल पर टिका है, यह तो तय है. जिस प्रकार से भारतीय-राजनीति खेल खेल रही है.....

सोमवार, 20 अगस्त 2018

19 अगस्त 2018 में “विश्व छायांकन दिवस” पर फोटो



                                    19 अगस्त 2018 में                                     विश्व छायांकन दिवस पर फोटो

 

जब कोई फुटपाथ में चाय बेचकर, प्रधानमंत्री के रूप में ठेले में पकौड़ा बेचने की दुकान का उद्योग का सपना लिए विश्व-आर्थिक-मंच पर अपना सपना साकार करने जा सकता है, तो हम आदिवासी-निवासी क्षेत्र के रहने वाले भी फोटो शेयर करने के बारे में सोच शायद किसी को पसंद आ जाए...?

     Facebook में पोस्ट करूंगा. विचार  आया.  दुर्भाग्य से परिवार में के बड़े भाई केदारनाथ जी की मृत्यु हो. बहरहाल अपने अग्रज की सीधी- साधी-ईमानदार पूरी जिंदगी को समर्पित फोटो को भारत की स्वतंत्रता दिवस के सप्ताहांत प्रस्तुत कर रहा हूं. जो यह दर्शाती है कि शहडोल के गांधीचौक में, वहां पर दो फ्लेक्सी 15 अगस्त को शहडोल जिले के नेतृत्व का दावा करने वाले लोग, स्वतंत्रतादिवस को लगाएं.
 नाम नहीं लूंगा किसी का, एक फोटो में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरागांधी के चर्चित आपातकालीन दौर में, जिसे नकली-स्वतंत्रता-दिवस का आंदोलन माना जा सकता है, 80 के दशक में जेल में जबरदस्ती बंद कर दिए गए शहडोल के स्वर्गीय हो चुके नेताओं को समर्पित थी, तो दूसरी फोटो बदली-हुई-राजनीति की परिभाषा में जन्म लिए नेता थे, जन्म-दिन की बधाई थी.,




दोनों ही स्थानीय लीडरशिप ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम जो कि हजार साल की गुलामी के बाद अनगिनत शहीदों के बलिदान से जन्मा था, को समर्पित....ना कोई फ्लेक्सी स्वतंत्रता-दिवस के लिए समर्पित थी और ना ही उन शहीदों के लिए




. यही है 21वीं सदी में वैचारिक-गुलामी की राजनीति का वातावरण.
 मुझे लगा यही विश्व-छायांकन-दिवस का वास्तविक छायाचित्र.
 बहरहाल यह वैचारिक गुलामी हम सबके लिए, स्वतंत्रता नहीं; दिवालियापन की उद्घोषणा भी है.
हर हाथ में फोटो खींचने के लिए अगर मोबाइल है, तो कृपया साल भर फोटो खींचिए. कुछ देश के लिए.., कुछ नगर के लिए...., कुछ अपने लिए... और कुछ विश्व के लिए, और जब 19 अगस्त को विश्व-छायांकन-दिवस आवे, उसे जरूर आपस में शेयर करें. आपकी सर्वोच्च सोच को हम सब समझ सके. शायद छायांकन से ही हम परिभाषित हो सके.

भारतीय संसद महामारी कोविड और कैंसर का खतरे मे.....: उपराष्ट्रपति

  मुंबई उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड की माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  राम राज्य में और अमृतकाल के दौर में गुजर रही भारतीय लोकतंत्र का सं...